रहस्य, रोमांच और आस्था का प्राकृतिक हिल स्टेशन मुरेरगढ़
मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर। जिले की गोद में स्थित मुरेरगढ़ एक ऐसा पर्यटन स्थल है, जहां प्रकृति की अनुपम सुंदरता, ऐतिहासिक विरासत और गहरी धार्मिक आस्था का अद्भुत संगम देखने को मिलता है. लगभग 2000 फीट ऊँचाई पर स्थित यह पहाड़ी एमसीबी जिले की सबसे ऊँची चोटी मानी जाती है और प्राकृतिक हिल स्टेशन के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान रखती है. इसे जनकपुर क्षेत्र भी कहा जाता है जो मिथिला संस्कृति और माता सीता से जुड़ी आस्था का जीवंत प्रतीक है. जो इतिहास, रहस्य, रोमांच और आध्यात्मिक चेतना को संजोए हुए है.
मुरेरगढ़ वह स्थान है जहां आदिमानव की कला, रियासतकाल का इतिहास और प्रकृति की अनुपम सुंदरता एक साथ मौजूद हैं, यहां की पहाड़ियां सिर्फ पत्थर और जंगल नहीं, बल्कि सभ्यता की जीवित किताबें हैं. यहां प्रागैतिहासिक शैलचित्र देखने को मिलते हैं. मुरेरगढ़ के शिखर पर मौजूद प्राचीन किले के अवशेष आज भी यह संकेत देते हैं कि यह क्षेत्र कभी सामरिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण रहा होगा. स्थानीय लोग इस पर्वत को सिद्ध बाबा पर्वत के नाम से पूजते हैं. महाशिवरात्रि, नवरात्रि और दीपावली जैसे पर्वों पर यहां हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं.
मुरेरगढ़ की दूरी जिला मुख्यालय मनेन्द्रगढ़ से लगभग 105 किलोमीटर है. केल्हारी, चुटकी, भंवरखोह होकर यहां पहुंचा जा सकता है. दुर्गम लेकिन रोमांचक रास्तों से होकर जब कोई मुरेरगढ़ की चोटी पर पहुँचता है, तो नीचे फैली हरियाली और ऊपर खुला आकाश मन को एक अलग ही दुनिया में ले जाता है. मुरेरगढ़ पर्वत शिखर पर स्थित प्राचीन किले के अवशेष इसके गौरवशाली अतीत की मूक गवाही देते हैं. पर्यटन एवं पुरातत्व विशेषज्ञों के अनुसार यह किला संभवतः रियासतकाल में बालंदशाह राजा द्वारा निर्मित गढ़ी रहा होगा, जो भग्न अवस्था में है, लेकिन इसके अवशेष यह बताते हैं कि यह स्थल कभी सैन्य और प्रशासनिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा होगा.
मुरेरगढ़ की सबसे बड़ी विशेषता इसकी प्राकृतिक संरचना है पहाड़ी में बनी प्राकृतिक गुफाएं, वर्षभर जलयुक्त रहने वाला प्राचीन कुआं, पुराने तालाब, गुफाओं से निकलने वाला मीठा और पीने योग्य जल, चारों ओर फैली घनी हरियाली और शांति, यह सब मिलकर मुरेरगढ़ को प्रकृति प्रेमियों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं बनाते.
मुरेरगढ़ और जनकपुर क्षेत्र की पहाड़ियों में प्रागैतिहासिक शैलचित्र पाए जाते हैं, जो इस स्थल को और भी विशिष्ट बनाते हैं विशेष रूप से कोहबाहुर शैलाश्रय में मिले शैलचित्र लाल गेरू से निर्मित हिरण, भैंसा, छिपकली जैसे वन्यजीवों के चित्र आदिमानव के शिकार, जीवनशैली और पर्यावरण को दर्शाते दृश्य ये शैलचित्र मध्यपाषाण काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक मानव सभ्यता की यात्रा को दर्शाते हैं और छत्तीसगढ़ की समृद्ध पुरातात्विक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं.
मुरेरगढ़ नेचर टूरिज्म, एडवेंचर टूरिज्म, हेरिटेज टूरिज्म तीनों के लिए अत्यंत उपयुक्त स्थल है, यदि यहां सड़क, सुरक्षा, ठहराव और मूलभूत सुविधाओं का विकास किया जाए, तो यह स्थान छत्तीसगढ़ के प्रमुख हिल स्टेशनों में गिना जा सकता है.
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