विटामिन-डी की कमी से कैंसर का खतरा : 70% से ज्यादा लोगों में कमी
विटामिन-डी को सनशाइन विटामिन भी कहा जाता है। यह शरीर के लिए बेहद जरूरी है। यह हड्डियों और मांसपेशियों को मजबूत बनाता है। यह सेल्स ग्रोथ व ब्लड प्रेशर रेगुलेशन में भी मदद करता है। इसकी कमी होने पर बॉडी कैल्शियम को अब्जॉर्ब नहीं कर पाती है, जिससे हड्डियां कमजोर होने के साथ कई अन्य समस्याएं होने लगती हैं। विटामिन-डी की कमी से कुछ तरह का कैंसर हो सकता है।
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक भारत में 70% से ज्यादा लोग विटामिन D की कमी से जूझ रहे हैं। इसलिए कैंसर का जोखिम भी बढ़ रहा है। विटामिन-डी पूरे शरीर के लिए जरूरी है। यह कोशिकाओं के विकास को नियंत्रित करता है, इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है और इंफ्लेमेशन को कम करता है।
स्टडी के मुताबिक विटामिन-डी की कमी से कोलोरेक्टल कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर, फेफड़ों का कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर, पैंक्रियाटिक कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
कोलोरेक्टल कैंसर- स्टडी के मुताबिक, विटामिन-डी कोशिकाओं की असामान्य ग्रोथ को रोकता है। इसकी कमी से कोलोरेक्टल यानी आंतों के कैंसर यानी का खतरा बढ़ सकता है।
ब्रेस्ट कैंसर- नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में जनवरी, 2012 में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, महिलाओं में कम विटामिन-डी की कमी से ब्रेस्ट कैंसर का जोखिम बढ़ सकता है।
फेफड़ों का कैंसर- हेल्थ जर्नल मेडिसिन में नवंबर, 2017 में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, विटमािन-डी की कमी से इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है और कोशिकाओं में इंफ्लेमेशन बढ़ जात है। इसके चलते फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।
प्रोस्टेट कैंसर- नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में अक्टूबर, 2018 में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, पुरुषों में बहुत ज्यादा या बहुत कम विटामिन-डी लेवल होने पर प्रोस्टेट कैंसर हो सकता है।
पैंक्रियाटिक कैंसर- जर्नल ऑफ न्यूट्रिशन एंड मेटाबॉलिज्म में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, अगर विटामिन-डी बहुत कम हो गया है तो पैंक्रियाटिक कैंसर का खतरा ज्यादा हो सकता है।
क्यों हो रही है विटामिन-डी की कमी?
विटामिन-डी की कमी का मुख्य कारण ये है कि लोग सूरज की रोशनी में बहुत कम समय बिताते हैं। लोग ज्यादातर समय घर या ऑफिस के अंदर रहते हैं, जिससे शरीर को प्राकृतिक रूप से विटामिन-डी बनाने के लिए जरूरी यूवीबी किरणें नहीं मिल पाती हैं। आउटडोर एक्टिविटीज की कमी और सनस्क्रीन का अत्यधिक इस्तेमाल भी इसका कारण हो सकता है। वायु प्रदूषण भी सूर्य की किरणों को आपकी त्वचा तक नहीं पहुंचने देता।
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