पसमांदा होने का दर्द : जात भी गंवाई और भात भी नहीं खाया

सामाजिक शोषण और उत्पीड़न से बचने के लिए पंथ बदलने वाले अधिकांश लोगों पर यह कहावत लागू होती है – “जात भी गंवाई और भात भी नहीं मिला”. यह बात … Read More