उस्ताद के इशारों पर बोल पड़ा तबला

pt. swapan choudhury, parthasarathi mukherjeeभिलाई। विश्वप्रसिद्ध तबला वादक एवं गुरु पंडित स्वपन चौधरी को अपने बीच पाकर भिलाई का संगीत जगत आज धन्य हो गया। जब उनकी उंगलियां तबले पर थिरकती हैं तो आनंद की लहरें उनके चेहरे पर प्रस्फुटित होती हैं। स्वर लहरियां उनके पूरे शरीर को, पूरे अस्तित्व को आलोडि़त करती प्रतीत होती हैं। चेहरे पर स्मित हास्य, आंखों से झांकती कोमलता उनके थापों में प्रतिध्वनित होती हैं। ऐसे ही तो नहीं उन्हें दुनिया भर में जीवित किंवदंती (लिविंग लीजेण्ड) कहा जाता है। आगे पढ़ें     वीडियो देखें
pt swapan choudhuriभिलाई को यह तोहफा दिया प्रसिद्ध तबला वादक पार्थसारथी मुखर्जी ने। अपने पिता एवं प्रथम गुरु पं. अशोक कुमार मुखर्जी म्यूजिक फाउंडेशन के बैनर तले उन्होंने पं. चौधरी को यहां एक कार्यशाला के लिए आमंत्रित किया। यहीं उन्हें देखने और सुनने का सौभाग्य मिला। सादगी एवं सरलता की प्रतिमूर्ति पं. चौधरी को देखकर एक बार भी ऐसा नहीं लगा कि ये वही दिग्गज तबला वादक हैं जिनका नाम दिल्ली से चेन्नई तक, मुंबई से कोलकाता तक, भारत से अमेरिका तक और दुनिया के हर उस देश में जहां भारतीय शास्त्रीय संगीत का चलन है, श्रद्धा और सम्मान के साथ लिया जाता है। इस बात का तनिक भी आभास नहीं हो रहा था कि ये वही स्वपन चौधरी हैं जो पंडित रविशंकर, सरोद के उस्ताद अली अकबर खां, उस्ताद विलायत खां, स्व. पं. निखिल बैनर्जी, उस्ताद अमीर खां, उस्ताद अमजद अली खां, पं. भीमसेन जोशी, पं. जसराज सहित सभी चोटी के कलाकारों के पसंदीदा तबला वादक हैं। यह सादगी संभवत: उन ऊंचाइयों का परिणाम है जो व्यक्ति को बहुत ऊंचा उठा देती है।
हुडको के गणेश मंदिर में उपस्थित बालक तबलावादकों के साथ चंद क्षणों में ही उन्होंने ऐसा तादात्म्य स्थापित कर लिया जो विस्मयकारी था। ऐसा लग रहा था जैसे वे ही इन बच्चों के गुरू हैं और इनका रोज का मिलना जुलना है। एक साथ 50 जोड़ा तबलों पर उंगलियां थिरक रही थीं और वे उनमें से प्रत्येक की आवाज को शायद अलग-अलग सुन पा रहे थे। ऐसा शायद इसलिए संभव हो पाया कि अपना पूरा जीवन उन्होंने तबला सीखने, सिखाने को ही समर्पित कर दिया। तीन दशक से भी अधिक समय से वे अली अकबर कालेज ऑफ म्यूजिक में विभाग के अध्यक्ष हैं। इसके साथ ही लगभग दो दशकों से वे कैलीफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ आट्र्स में भी प्राध्यापक हैं। नेशनल लाइफ टाइम अचीवमेन्ट अवार्ड, भारत संगीत रत्न, संगीत नाटक अकादमी अवार्ड के साथ ही वे अमेरिकन आर्टिस्ट अवार्ड अकादमी द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं। वे हॉल ऑफ फेम में नामित हैं।
pt swapan choudhury, pt parthasarathi mukherjeeआज से लगभग दो दशक पूर्व 1995 में वाशिंगटन के एक समाचोलक ने लिखा – स्वपन चौधरी एक ऐसे उस्ताद हैं जो लगातार यात्रा कर सकते हैं और लगातार कन्सर्ट कर सकते हैं। पं. चौधरी के एक साप्ताहिक कार्यक्रम की चर्चा करते हुए उन्होंने लिखा कि पं चौधरी अली अकबर कालेज में सोमवार, मंगलवार और बुधवार को 12 क्लास लेने के बाद गुरुवार को लास एंजेलिस पहुंच गए। दोपहर से रात तक वहां निरंतर प्रस्तुतियां देने के बाद शुक्रवार को कन्सर्ट के लिए पश्चिम वर्जीनिया जा पहुंचे। शनिवार को न्यूयार्क सिटी में दो रिकार्डिंग करवाई और रविवार को लिंकन सेन्टर में कन्सर्ट कर रहे थे। सोमवार को फिर वे अली अकबर कालेज में क्लास ले रहे थे। पं. चौधरी के हवाले से ही उन्होंने लिखा कि वे कोलकाता में संध्या 7 बजे से लेकर सुबह होने से पहले सात बड़े कन्सर्ट कर चुके हैं। 7 बजे पं. रविशंकर की संगत, फिर निखिल बैनर्जी, उस्ताद अमजद अली, पं. जसराज, फिर एक एकल वादन और फिर पं. चित्रेश दास और अंत में पं. भीमसेन जोशी… । पं. चौधरी के हवाले से ही उन्होंने लिखा कि यह इसलिए संभव हो पाता था क्योंकि कोलकाता में रात को ट्रैफिक जाम नहीं होता।
आज पं. स्वपन चौधरी 70 साल के हैं किन्तु उम्र उन्हें कहीं से भी छूकर नहीं गई है। गणेश मंदिर हुडको में लगभग 50 बच्चों को सुनते-सिखाते वे उसी आनंद का अनुभव कर रहे थे जो शायद कन्सर्ट में करते हैं। जैसे ही वे एक बैच से फारिग हुए उन्हें उनका प्रिय पेय चाय दी गई। पर उन्हें कहां इसका ख्याल था। वे तो अपने तबले में मगन हो गए थे। उनकी उंगलियां द्रुतगति से तबले पर नाच रही थीं और अधखुली आंखों से वे उसका आनंद ले रहे थे। संगीत को समर्पित ऐसी जीती जागती प्रतिमूर्ति को अपने बीच पाकर, भिलाई का संगीत जगत आज अभिभूत हो गया। (कार्यशाला की वीडियो के लिए यहां क्लिक करें)

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