संतोष रूंगटा समूह में सबसे ज्यादा रिसर्चर्स

dolguiभिलाई। संतोष रूंगटा समूह के विद्यार्थियों में शोध करने वालों की संख्या आज छत्तीसगढ़ के किसी भी अन्य अभियांत्रिकी महाविद्यालय से ज्यादा है। इस संस्था से जुड़े विद्यार्थी जानते हैं कि शोध से न केवल आत्मसंतुष्टि और पहचान मिलती है बल्कि रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों को पैकेज भी औरों के मुकाबले ज्यादा का मिलता है। संतोष रूंगटा समूह में शोध को मिले इस बूस्ट के पीछे शास्त्रार्थ जैसे आयोजनों की महति भूमिका है। उक्त उद्गार संतोष रूंगटा समूह के चेयरमैन संतोष रूंगटा ने रूंगटा कॉलेज आॅफ इंजीनियरिंग एण्ड टेक्नालॉजी (आरसीईटी) में 2-दिवसीय इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस शास्त्रार्थ के प्रथम दिवस पत्रकारों से चर्चा करते हुए व्यक्त किए। Read MoreRungta College of Engineering and technologyसमूह में शास्त्रार्थ का यह लगातार तीसरा वर्ष है। मौके पर रूंगटा ग्रुप आॅफ इंस्टीट्यूशन्स के चेयरमेन संतोष रूंगटा, डायरेक्टर टेक्निकल डॉ. सौरभ रूंगटा, डायरेक्टर एफएण्डए सोनल रूंगटा, डायरेक्टर आरसीईटी-भिलाई डॉ. एस.एम. प्रसन्नकुमार, आरईसी-भिलाई के प्रिंसिपल डॉ. अजय तिवारी, आरसीईटी-रायपुर के प्रिंसिपल डॉ. बी.व्ही. पाटिल, आरईसी-रायपुर के प्रिंसिपल डॉ. पंकज कुमार, आरसीपीएसआर के प्रिंसिपल डॉ. डी.के. त्रिपाठी, प्रबंधक जनसंपर्क सुशांत पंडित सहित समस्त विभागों के डायरेक्टर्स, विभागाध्यक्ष तथा फैकल्टीज उपस्थित थे।
पत्रकारों से चर्चा करते हुए देश विदेश से आए प्रमुख वैज्ञानिकों ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मेक इन इंडिया और डिजिटल इंडिया के सपने को साकार करने के लिए हमें तेजी से काम करने की जरूरत है। वैज्ञानिकों ने कहा कि शोध में आगे बढ़ने के लिए दुनिया भर में हो रहे शोध पर नजर रखने की जरूरत है। इससे हम शोध को वहां से आगे बढ़ा सकते हैं। इससे न केवल संसाधन और वक्त की बचत होगी बल्कि हम दौड़ में औरों के साथ रह पाएंगे। उन्होंने वर्तमान में सिर्फ दो फीसदी शोधार्थियों की संख्या को बढ़ाने के लिए अनुकूल वातावरण पैदा करने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि भविष्य में केवल वहीं उच्च शिक्षा संस्थान जीवित रह पाएंगे जहां शोध के लिए बेहतर माहौल हो। उन्होंने शोध के लिए बेहतर वातावरण उपलब्ध कराने की दिशा में रूंगटा समूह के प्रयासों की सराहना भी की।
मेक इन इंडिया की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए उन्होंने हीरो और हॉण्डा का उदाहरण दिया। भारतीय हीरो कंपनी ने जापानी हॉण्डा के साथ भारत में मोटरसाइकिल बनाना शुरू किया। इससे जापान की तकनीकी श्रेष्ठता का लाभ मिला और हम भी इसे सीखते गए। हीरो हॉण्डा आने से पहले गाड़ियों का माइलेज 18 से 34 हुआ करता था जो बढ़कर 65 हो गया। आज हीरो और हॉण्डा अलग अलग मोटरसाइकिल बना रहे हैं और एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा भी कर रहे हैं।
डिजिटल इंडिया की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि पहला कम्प्यूटर जहां एक विशाल कमरे में फिट होता था और सीमित काम कर पाता था वहीं आज हमारे पाकेट में समाने वाला मोबाइल उससे कहीं ज्यादा एफिशिएन्ट और काम के एप्लिकेशन्स से लोडेड है। हम इस पर लगभग सभी काम कर सकते हैं।
भारत की आवश्यकताओं की चर्चा करते हुए
आईआईटी दिल्ली के प्रो. बीके पाणिग्राही ने बताया कि शोधार्थी को अपने डोमेन में सिद्ध होना चाहिए तभी और वह मल्टीडिसिप्लीनरी शोध में आगे बढ़ सकता है। उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि एक कार डिजाइन को पूर्णता प्रदान करने के लिए मैकानिकल इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रानिक्स इंजीनियरिंग, कम्प्यूटर इंजीनयरिंग सभी विधाओं की जरूरत पड़ती है। यही बात और विधाओं पर भी लागू होती है। उन्होंने बताया कि रिसर्च से आज मेडिकल सेक्टर में भी अत्याधिक लाभ हो रहा है। अब आप ्नेअपने मोबाइल फोन से अपनी आंख की पुतली की फोटो खींचकर उसे एप्लिकेशन के जरिए एनालाइज कर यह जान सकते हैं कि क्या आपका शुगर लेवल क्या कहता है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में रोबोटिक्स क्षेत्र में रोबोट्स में इमोशनल इंटेलिजेंस डेवलप करने पर अत्याधिक शोध कार्य हो रहे हैं। प्रो. पाणिग्रही ने इवोल्यूशनरी एल्गोरिथ्म फॉर सिंगल आॅब्जेक्टिव एण्ड आॅटमाईजेशन एण्ड इट्स इंजीनियरिंग एप्लिकेशन्स विषय पर अपना व्याख्यान दिया।
फ्रांस से आये प्रो. अलेक्जे़ण्डर डॉल्गी ने बताया कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में वैश्विक स्तर पर भविष्य में रोजगार की असीम संभावनायें हैं। प्रो. एम.के. तिवारी ने मल्टीडिसिप्लिनरी एप्लीकेशन को आज की जरूरत बताते हुए कहा कि आज का समय ऐसा है जबकि इंजीनियरिंग की सभी ब्रांचेस एक साथ मिल जुलकर कार्य करें तभी कार्य संभव हो पाता है। अत: मल्टी-डिसिप्लिनरी एप्रोच बेहद जरूरी हो गई है। एमआईआर लैब, यूएसए से आये वैज्ञानिक प्रो. अजीत एब्राहम ने कंप्यूटर साइंस तथा आईटी के क्षेत्र में हो रहे रिसर्च कार्यों का उल्लेख करते हुए कहा कि इस क्षेत्र में क्रांति आ गई है तथा नित नये शोधकार्य हो रहे द्वितीय सत्र में गुड़गांव से आये प्रो. एस.एस. अग्रवाल ने इंटरेक्टिव मैन मशीन कम्यूनिकेशन विषय पर अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि अब यह संभव हो गया है कि आप अपनी भाषा में मोबाइल पर बात करते रहें और विदेश में बैठा कोई व्यक्ति अपनी भाषा में आपसे बातें करता रहे। दोनों भाषाओं का एक दूसरे में अनुवाद कर उसे वाइस के रूप में प्रस्तुत करने का काम कम्प्यूटर करेगा। उन्होंने बताया कि इसके लिए जापान में चल रहे शोध को उनकी संस्था ने हिन्दी के वाइस सैम्पल्स उपलब्ध कराए हैं। बाद में देश की सभी भाषाओं और बोलियों को इसमें शामिल किया जाएगा।
कार्यक्रम के संयोजक द्वय डॉ. सत्यप्रकाश दुबे तथा डॉ. मनीषा अग्रवाल ने बताया इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस के दौरान वैश्विक स्तर पर हो रहे शोधकार्यों तथा इंजीनियरिंग की नवीनतम तकनीकों को जानने हेतु प्रतिभागियों में खासा उत्साह दिखा तथा विषय विशेषज्ञों से जानकारी प्राप्त करने हेतु युवाओं ने खासा रूझान दिखाया। देश-विदेश से 500 शोध पत्र प्राप्त हुए हैं जिनका ओरल प्रेजेण्टेशन शास्त्रार्थ के दूसरे दिन अर्थात आज किया जायेगा।
गौरतलब है कि यह एक 7-ट्रैक मल्टी-डिसिप्लिनरी इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस है जिसमें कॉन्फ्रेंस के दूसरे दिन इंजीनियरिंग की विभिन्न ब्रांचों सहित बेसिक साइंस, मैनेजमेंट तथा ूमनिटीज से संबंधित शोध पत्रों का प्रस्तुतीकरण होगा।

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