थोड़ी सी जानकारी बचा सकती है सैकड़ों जानें
अपोलो बीएसआर में बेसिक लाइफ सपोर्ट और एडवांस्ड कार्डियक लाइफ सपोर्ट पर कार्यशाला
भिलाई। व्यक्ति का शरीर कभी भी, कहीं भी रोगग्रस्त हो सकता है। हमेशा यह जरूरी नहीं कि मरीज के पास कोई प्रशिक्षित स्वास्थ्य प्रदाता उपस्थित हो। ऐसे में यदि थोड़ी सी जानकारी व्यक्ति के पास हो तो वह चिकित्सकीय सहायता के पहुंचने तक मरीज को जीवित और बेहतर स्थिति में रखने में कामयाब हो सकता है। इस प्रशिक्षण को बेसिक लाइफ सपोर्ट या बीएलएस कहते हैं तथा इसका प्रशिक्षण कोई भी सामान्य नागरिक प्राप्त कर सकता है। Read More
उक्त उद्गार अपोलो बीएसआर में बीएलएस एवं एसीएलएस पर आयोजित कार्यशाला को संबोधित करते हुए बीएलएस-एसीएलएस इंस्पेक्टर एवं मेकाहारा रायपुर में एनीस्थिसियोलॉजी विभाग की सहायक प्राध्यापक डॉ प्रतिभा जैन ने व्यक्त किए। उन्होंने बताया कि यह ज्ञान समाज सेवियों, शिक्षकों, खिलाड़ियों, अग्निशमन कर्मियों, पुलिस या ऐसे किसी भी व्यक्ति के लिए बड़े काम का है जो लोगों के बीच काम करते हैं।
उन्होंने कहा कि सबसे पहले मरीज को आरामदायक स्थिति में लाना चाहिए। यदि उसे सांस लेने में परेशानी हो रही हो तो उसके सिर को ऐसे रखना चाहिए ताकि उसकी सांस की नली खुल जाए। मरीज को चित लिटाएं। उसकी ठोढ़ी को थोड़ा सा उठाकर गर्दन को सीध में ले आएं । इसके उसके कपड़ों को यथासंभव ढीला कर दें। यदि सांसों का चलना बंद हो गया हो तो उसके सीने को सांस चलने की रफ्तार से क्रमश: दबाएं और ढीला छोड़ें। इसे कार्डियोपल्मोनरी रेससिटेशन (सीपीआर) कहते हैं। इससे हृदय को अपना काम करने में मदद मिलती है और रक्तसंचार बना रहता है। इसके साथ-साथ मुंह से मुंह लगाकर या उपकरण की मदद से कृत्रिम सांस दी जा सकती है। डॉ जैन ने कहा कि यह प्रक्रिया तब तक चलती रहनी चाहिए जब तक कि मरीज अपने आप सांस लेना न शुरू कर दे या फिर चिकित्सकीय मदद न पहुंच जाए।
कार्यशाला में उपस्थित नर्सेज, वार्ड बायज, एम्बुलेंस के ड्राइवरों तथा अन्य स्वास्थ्य कर्मियों को उन्होंने सीपीआर देने का तरीका प्रायोगिक रूप से समझाया।
कार्यशाला के दूसरे सत्र में उन्होंने एडवांस्ड कार्डियक लाइफ सपोर्ट के बारे में बताया। यह प्रशिक्षण स्वास्थ्य सेवा प्रदाता के लिए था। इसमें कृत्रिम श्वांस देने का उपकरण, डीफिब्रिटेलर सहित उन सभी उपकरणों एवं दवाओं की जानकारी भी उपलब्ध कराई गई जिनकी मरीज की प्राण रक्षा के लिए जरूरत पड़ती है।
डॉ प्रतिभा जैन ने इसके बाद सभी प्रशिक्षुओं से क्रमवार सवाल-जवाब कर यह जानने का भी प्रयास किया कि वे विषय को कितना समझे हैं। साथ ही उन्होंने यह विश्वास भी दिलाया कि जब भी उनकी मदद की जरूरत पड़ेगी वे फिर इनके बीच आना चाहेंगी।
कार्यशाला के अंत में अपोलो बीएसआर के मेडिकल डायरेक्टर डॉ एपी सावंत ने इस प्रशिक्षण को सभी लोगों के बहुत उपयोगी बताते हुए कहा कि आज हम सभी यहां से काफी कुछ सीखकर या अपनी जानकारियों को ताजा करके जा रहे हैं। इसका लाभ हमें मरीजों को देने के साथ ही अधिक से अधिक लोगों को बीएलएस की जानकारी देनी है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों की जान बचाई जा सके। उन्होंने डॉ प्रतिभा जैन के प्रति कृतज्ञता भी जताई जिन्होंने काफी सरल तरीके से यह प्रशिक्षण दिया।
कार्यक्रम के संयोजक अपोलो बीएसआर के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डॉ पार्थ गोस्वामी ने सभी उपस्थिति लोगों से इस कार्यशाला में प्राप्त ज्ञान को औरों तक ले जाने की अपील की।
क्या आपके मोबाइल में आईसीई नम्बर है?
डॉ प्रतिभा जैन ने इस अवसर पर कहा कि हममें से प्रत्येक को अपने मोबाइल फोन में एक नम्बर आईसीई के नाम से सेव करके रखना चाहिए। इसे हम ‘इन केस आॅफ इमरजेंसी’ न बर कहते हैं। सभी स्वास्थ्य कार्यकर्ता घायल, विशेषकर बेहोश मरीज के मोबाइल पर सर्वप्रथम इस नम्बर की तलाश करते हैं। यह नम्बर उस व्यक्ति का होना चाहिए जिसे आप किसी भी हादसे की स्थिति में सबसे पहले सूचित करना चाहेंगे। यह नम्बर आपके पति/पत्नी, पिता-माता, भाई-बहन या ऐसे किसी खास दोस्त का हो सकता है जो तत्काल उपलब्ध हो सके।