थाईपूसम पर निकली कावड़ी यात्रा

skandashram-bhilaiभिलाई। थाईपूसम के उपलक्ष्य में एक विशाल कावड़ी यात्रा प्रात: 09:00 बजे स्कंद आश्रम हुडको से प्रारम्भ हुई। भगवान कार्तिकेय को फूलों से सुसज्जित एक रथ में स्थापित किया था। पीछे 200 से अधिक पुरुष एवं महिलाएं भगवान कार्तिकेय के भजनों पर नृत्य करते हुऐ चल रहे थे। पुरुषों ने अपने कंधे पर कावड़ी ली हुई थी तथा महिलाएं कलश सिर पर रख अनुशासनबद्ध तरीके से चल रहीं थीं। स्कंद आश्रम से मुख्य अस्पताल से सेन्ट्रल एवन्यु से सेन्टर 9, 10, 8, 7 सेक्टर 6 से होकर गणेश मंदिर पहुंची जहां भगवान कार्तिकेय का रूद्र अभिषेक कर उन्हें पारम्परिक आभूषणों से सुसज्जित किया गया। सभी धर्म प्रेमी पुरुष तथा महिलाओं ने भगवान कार्तिकेय का आशीर्वाद ग्रहण किया। Read More
सारे भगतगण नंगे पैर इस पूरी यात्रा में शामिल हुए। स्कंद आश्रम के प्रमुख सूत्रधार तथा संस्थापक आचार्य मणिस्वामी तथा आचार्य एल आर के रेड्डी ने यात्रा का नेतृत्व किया। रथ को श्रृद्धालुगण रस्से से खींचते हुए सेक्टर 5 तक ले कर आये।
थाईपुसम के नेपथ्य में आसुरी शक्तियों का विनाश तथा धर्म की विजय पताका को ऊंचा बनाये रखने का इतिहास समाहित है। इतिहास में उल्लेखित कथा के अनुसार ताराकासु तथा सिगमावासु दो राक्षस भाई असूरी शक्ति के माध्यम से विनाश लीला को जारी रखे हुऐ थे तथा देव शक्तियों को निरन्तर नई चुनौतियों द्वारा इन भाईयों ने आतंक का वातावरण निर्मित किया था। इन आसुरी शक्तियों के विनाश के लिए भगवान कार्तिकेय ने इडकंप नामक अपने शिष्य को भेजा तो उसे देख कर दोनों राक्षस समुद्र के भीतर एक गुफानुमा चट्टान के पीछे छिप कर अपनी असूरी शक्तियों का प्रयोग करते रहे। देवता ने उस गुफानुमा चट्टान को अपने दोनों हाथों से कावड़ी के रूप में ऊपर उठाया तो राक्षसों ने अपना रूप बदलकर एक वृक्ष का रूप धारण कर लिया। भगवान कार्तिकेय के शिष्य ने अपनी देवीय शक्ति उपयोग करते हुए इस पेड़ के दो टुकड़े कर दिये। दो टुकड़ों में बटे राक्षसों ने भगवान कार्तिकेय का चरण स्पर्श कर गलतियों की माफी मांगी। भगवान ने अपनी शक्ति दो टुकड़े में बटे वृक्ष को प्राणी बनाते हुऐ एक को मुर्गा तथा दूसरे को मयूर का स्वरूप दे कर उपकृत किया। उसी समय से भगवान कार्तिकेय वाहन के रूप में दो प्राणी प्रतिस्थापित हो गये। आज भी दुनिया में जहां भी भगवान कार्तिकेय के मंदिर स्थापित है उसके बाहर इन दोनों प्राणियों की मूर्ती विराजित रहती है। यह प्रत्यक्ष प्रमाणित हुआ है कि जो भक्तगण कावड़ी अथवा कलश ले कर पैदल यात्रा करते है भगवान कर्तिकेय की उन पर असीम कृपा होती है तथा प्रभु उनकी मनोकामना पूर्ति करते है।

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