‘गीतारहस्य’ की शताब्दी पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

dr-mahesh-sharmaपं. सप्रे जी की अनुवाद सर्जना है, भारत की सांस्कृतिक गर्जना – आचार्य डॉ. शर्मा
भिलाई। ‘पूरे भारत वर्ष के साथ छत्तीसगढ़ को भी गर्व और गौरव का अनुभव होता है कि उसके सपूतों ने भी स्वतत्रंता आन्दोलन में महती भूमिका निभाई। बंगाल में बंकिमचन्द्र चटर्जी, महाराष्ट्र में लोकमान्य पं. बालगंगाधर तिलक की भाँति छत्तीसगढ़ में पं. माधवराज सपे्र बौद्धिक-सांस्कृतिक वातावरण बना रहे थे। आनन्दमठ का वन्दे मातरम् और तिलक जी का – स्वराज मेरा जन्म अधिकार है, और इसे मैं लेकर रहूँगा – जैसे अमर महामन्त्रों को कौन भुला सकता है?
तिलक जी द्वारा मराठी में रचित ‘गीता रहस्य कर्मयोगÓ की हिन्दी व्याख्या रायपुर में पं. माधवराव सप्रे जी ने की। यह कृति कर्मठ और देशभक्त भारतीयों को बड़ी प्रेरणा देती है। उस दौरान इसकी हजारों प्रतियाँ बिकीं। इसमें हृदय की क्षुद्र दुर्बलता और कायरता के विरुद्ध युद्ध का सन्देश दिया गया है। वेद कहते हैं विद्या वही है, जो मुक्ति का मार्ग दिखाये। गीता महाविद्या है, उसने देश को अंग्रेजों से महामुक्ति का मार्गदर्शन कराया।Ó संस्कृत और संस्कृति के प्रसिद्ध आचार्य डॉ. महेशचन्द्र शर्मा ने विगत दिनों द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में रायपुर में व्यक्त किये। यह पं. माधवराव सपे्र द्वारा लोकमान्य तिलक के ‘गीता रहस्य कर्म योगÓ के हिन्दी अनुवाद का शताब्दी वर्ष है।
संस्कृति विभाग, छ.ग. शासन, माधवराव सपे्र साहित्य शोध केन्द्र एवं पत्रिका ‘छत्तीसगढ़ मित्रÓ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम के विषय प्रवर्तक एवं विशेषज्ञ वक्ता के रूप में आचार्य डॉ. महेश शर्मा के वेदों, गीता और रामायण आदि की भाषा संस्कृत की विशेष महत्ता प्रतिपादित की। उन्होंनें कहा कि स्वतत्रंता आन्दोलन का बीजमन्त्र ‘वन्दे मातरम्Ó संस्कृत-बाँग्ला मिश्रित कालजयी रचना है। 2003 के अन्तर्राष्ट्रीय सर्वेक्षण में इसे 155 देशों के 7000 गीतों में इसे श्रेष्ठ माना गया। आचार्य डॉ. शर्मा ने बताया कि इसी क्रम में सप्रे जी के अन्य व्याख्या ग्रन्थ महाभारत मीमांसा, श्रीराम चरित, सार रूप में कह सकते हैं कि पं. माधव राव जी सप्रे का अनुवाद कार्य राष्ट्रभक्ति परक सांस्कृतिक अभिलेख है। उनकी अनुवाद सर्जना वस्तुत: भारत की सांस्कृतिक गर्जना है। हमें आत्मविद्या एवं दासबोध की महत्ता समझनी और समभावी होगी। इस महत्वपूर्ण सारस्वत समारोह में वरिष्ठ साहित्य समीक्षक डॉ. राजेन्द्र मिश्र, वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार रमेश नैयर, लखनऊ के संस्कृत विद्वान डॉ. विजय कुमार कर्ण, कोलकाता से हिन्दी के विद्वान डॉ. अरुण कुमार होता, संस्कति-पर्यटन-पुरातत्व विभाग के संचालक, राकेश चतुर्वेदी, सरावनादर्पण के सम्पादक गिरीश पंकज, भाषाविज्ञानी डॉ. चितरंजन कर एवं भाषाविद् डॉ. केशरी लाल वर्मा समेत अनेकानेक साहित्य, धर्म, संस्कृति मर्मज्ञों का भी विशेष मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। आयोजन समिति की ओर से पूर्व प्रशासक और लेखक डॉ. सुशील त्रिवेदी ने भूमिका रखी। प्रोफेसर डॉ. सुधीर शर्मा ने कार्यक्रम का सफल संचालन किया।

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