शाश्वत, सुन्दर, अनुपम, अतुलनीय ”स्वयंसिद्धा”

भिलाई। शीर्षक ही बता रहा है कि अपने भावों को व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं मिल रहे। एक छोटे से लाइट एंड साउंड एक्ट में छोटे-छोटे बच्चे आखिर ऐसा क्या कर गए कि दर्शकों का मन भीग गया? भावातिरेक में दर्शक कभी तालियां बजाते तो कभी कपोलों पर ढलक आए आंसुओं को पोंछते। हम बात कर रहे हैं शाश्वत संगीत अकादमी के वार्षिक उत्सव की। प्रसंग था नारी के आत्मनिर्णय के अधिकार का। प्रसंग था ‘स्वयंसिद्धा’ का।special-child swayamsiddhaकहानी शुरू होती है कोख में बेटी के आने से। पति और सास को बेटा चाहिए। वे चाहते हैं कि कन्या भ्रूण की हत्या कर दी जाए। पर बहू नहीं मानती। डाक्टर भी मना करती है। पर बहू को धोखे में रखकर उसे गर्भपात की दवा दे दी जाती है। पर भ्रूण नहीं गिरता। जन्म होता है बेटी का। उसे उठाकर कूड़ेदान में फेंक दिया जाता है। यह बच्चा एक स्पेशल चाइल्ड है। वह दोबारा गर्भधारण करती है और इस बार भी बेटी ही होती है। सास और पति के तानों से तंग आकर वह अपनी मां के पास लौट जाती है। एकाकी मां से वह कहती है कि वह उनपर बोझ नहीं बनेगी। वह काम करेगी और अपने बच्चों की परवरिश के साथ-साथ अपनी मां की भी देखभाल करेगी। शुरू होता है एक सफर और एक बेटी डाक्टर बन जाती है। उधर उसका पति दूसरा ब्याह कर लेता है। वहां एक पुत्र का जन्म होता है जो लाड़ प्यार में बिगड़ जाता है। एक पुत्री भी होती है जो स्पेशल चाइल्ड है। एक दिन बेटा मोटरसाइकिल भगाते हुए एक्सीडेंट कर बैठता है। नियति की मार, उसका इलाज उसकी अपनी बहन करती है और उसे मौत के मुंह से खींच लाती है। उसके पिता को जब इस बात का पता चलता है तो उसे बहुत आत्मग्लानि होती है।
नाट्यकार निर्देशक सोनाली चक्रवर्ती सभी किरदारों, विशेषकर स्पेशल चाइल्ड के किरदार को उकेरने में सफल रही हैं। नाटक इस बात पर जोर देता है कि नारी आधी आबादी नहीं बल्कि वह पूरी आबादी है जो आधी आबादी को जन्म देती है। नाटक इस बात पर भी जोर देता है कि चूंकि बच्चे को जन्म मां देती है इसलिए उसके बारे में कोई भी निर्णय लेने का अधिकार सिर्फ उसे है। नाटक का एक मजबूत पक्ष स्पेशल चाइल्ड की देखभाल और उसकी संवेदनशीलता से जुड़ा है।
दृश्य जो मन को छू गए
स्पेशल चाइल्ड के आवेग प्रचंड होते हैं। अप्रसन्न होने पर वे उग्र हो जाते हैं। एक अकेली मां उसे किस तरह संभालती है, इसका बेहद सजीव चित्रण किया गया है। चिकित्सक की सलाह पर वह अपनी बच्ची को लेकर पार्क में जाती है। वहां बच्चे उसके साथ खेलने से इंकार कर देते हैं। तब वह वहां बिखरा हुआ कचरा उठा-उठाकर डस्टबिन में डालने लगती है। उसकी इस हरकत को देखकर उसकी मां के साथ ही दर्शक भी रो पड़ते हैं। वह बताती है कि स्वच्छता का यह पाठ उसने टीवी से सीखा। एक अन्य दृश्य में उसकी सौतेली बहन को गुंडे छेड़ते हैं। वह तत्काल 1091 पर महिला सेल को कॉल करती है। पुलिस की रक्षा टीम मौके पर पहुंचती है और गुंडे को उठा ले जाती है।
गीत-संगीत ने बांधा समा
शाश्वत संगीत अकादमी के इस वार्षिकोत्सव में बच्चों ने एकल व समूह गीतों से समा बांध दिया। अकादमी की संचालक सोनाली चक्रवर्ती ने कहा कि हमें केवल प्रतियोगिता जीतने के लिए नहीं बल्कि अपनी खुशी के लिए भी नृत्य, गीत और संगीत को अपनाना चाहिए। शाश्वत की प्रस्तुतियां विशेष रहीं।
स्वयंसिद्धा
स्वयंसिद्धा ऐसी महिलाओं का एक ग्रुप है जो अपनी गृहस्थ होने की जिम्मेदारियों को निभाने के साथ ही अपने आप को भी उभारने का प्रयास करती हैं। स्वयंसिद्धा ग्रुप में लेखक, नाटककार, संगीतकार, नृत्यगुरू, साहित्यकार, अध्यापक, प्राध्यापक, प्राचार्य से लेकर गृहिणियां शामिल हैं।
दर्शकों को दिए टिप्स
सोनाली चक्रवर्ती ने बताया कि उन्होंने अपने पति के लगभग 40 सहकर्मियों के परिवारों को जोड़ लिया है। अब पार्टी पति की हो या पत्नी की, कोई वहां बोर नहीं होता। उन्होंने बताया कि कुछ लोग उम्र के ढलान पर हैं पर नए सिरे से नृत्य संगीत के अपने शौक को पूरा करने उनके पास आते हैं। हॉबी हमें आंतरिक खुशी देती है। हम खुश रहते हैं तो पूरा परिवार खुश रहता है। उन्होंने दर्शकों से भी इस सूत्र को अपनाने का आग्रह किया।
इनकी रही मौजूदगी
कार्यक्रम में मशहूर साहित्यकार एवं कवयित्री संतोष झांझी, स्वामी श्री स्वरूपानंद महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ हंसा शुक्ला, इप्टा से जुड़े वरिष्ठ रंगकर्मी राजेश श्रीवास्तव, पुलिस अधिकारी और रक्षा टीम की मुखिया नवी मोनिका पाण्डेय, पार्षद मोनिका चंद्राकर सहित अनेक लोग उपस्थित थे।

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