काम का सुख क्षणिक : माँ मंदाकिनी

didi-maa-mandakiniभिलाई। आनंद का अनुभव अंतर्मन से किया जाए तो वह परमसुख हो जाता है। पर जब आनंद की तलाश शरीर में की जाती है तो वह अधोगामी होती है और इससे चरम सुख की प्राप्ति कभी नहीं हो सकती। ऊध्र्वगामी आनंद ही पूर्णानन्द है।उक्त बातें विख्यात प्रवचनकर्ता दीदी माँ मन्दाकिनी श्री राम किंकर ने कहीं। उन्होंने कहा कि राम चरित मानस केवल राम की कथा नहीं है। ये हम सब के जीवन की कथा है। ये मन मानस की कथा है। सारे समाज की सारे विश्व की और किसी भी युग का हो प्रत्येक व्यक्ति के मन की कथा है। उन्होंने कहा कि काम के द्वारा व्यक्ति को सुख और आनंद मिलता है।
दीदी माँ मन्दाकिनी स्मृति गृह निर्माण सहकारी संस्था द्वारा स्मृति नगर में आयोजित 7 दिवसीय मानस प्रवचन के चौथे दिन श्रद्धालुओं को संबोधित कर रही थीं।
उन्होंने कहा कि आनंद लेने की दो विधाएँ हैं। पहली विधा में मनुष्य देह से ऊपर उठ कर मन और फिर मन से ऊपर उठ कर बुद्धि और चित्त तक पहुँचता है तो उसके आनंद का विस्तार हो जाता है। इस प्रक्रिया में मनुष्य अंतिम स्थिति में भगवत चिंतन में समाहित हो जाता है और परमानन्द को प्राप्त करता है। ये ऊध्र्वगामी विधा है। दूसरी विधा अधोगामी है जिसमे मनुष्य शरीर में रह कर शारीरिक सुख प्राप्त करने के प्रयास में लीन रहता है। ऐसी स्थिति में मनुष्य शरीर के निचले हिस्से को सुख प्राप्ति का साधन बनाता है। अधोगामी विधा ऐसी विधा है जिसमे परम आनंद या पूर्ण तृप्ति कभी नहीं मिल सकती। हमारे ऋषि मुनियों ने मनुष्य के मन का विवेचन किया और बताया की मानसिक आनंद पूर्णानंद है और शारीरिक आनंद क्षणिक आनंद है।

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