भगवद्गीता में भी है कठपुतलियों का जिक्र

प्रख्यात कठपुतली कलाकार किरण से वार्तालाप
kiran-moitra-puppetभिलाई। कठपुतलियों (puppets) का अस्तित्व आदिकाल से ही रहा है। हालांकि ज्ञात इतिहास में इसकी जन्मभूमि मिस्र को माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि भारत में कठपुतलियां ईसा से 5 सौ साल पहले से मौजूद हैं। भगवद्गीता में जिक्र आता है कि मनुष्य ईश्वर की इच्छाओं की कठपुतली है जिसे सत्-रज् और तम् द्वारा संचालित किया जाता है। आधुनिक भारत में कठपुतलियां विभिन्न रूपों में मौजूद हैं।उक्त जानकारी शिक्षा हेतु कठपुतली की संचालक किरण मोइत्रा ने दी। उन्होंने कहा कि पौराणिक एवं ऐतिहासिक गाथाओं को रोचक ढंग से प्रस्तुत करने के लिए कठपुतलियों का उपयोग किया जाता था। कठपुतलियां जनशिक्षा के भी काम आती थीं। हाल के दशकों में कठपुतलियों ने जनजागरण का काम रोचक ढंग से संभाल रखा है।
वे बताती हैं कि भारत के अलग अलग प्रांतों में अलग अलग किस्म की कठपुतलियां उपयोग में लाई जाती हैं। स्ट्रिंग पपेट और रॉड पपेट इसमें सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं। इसके अलावा ग्लव पपेट होते हैं जिन्हें हाथ पर पहना जाता है। शैडो पपेट्स पर्दे के पीछे रहते हैं और उनका साया पर्दे पर दिखाई देता है। भारत में कुल सात प्रकार की कठपुतलियां पायी जाती हैं जिसमें से पांच प्रकार की कठपुतलियां उनके पास हैं।
किरण यहां मैत्रीबाग में एक शो करने आई थीं। इसमें स्ट्रिंग पपेट थे जो मंच पर नृत्य के जरिए संदेश दे रहे थे। वहीं बॉडी पपेट्स को दो कलाकारों ने पहन रखा था। औसत से अधिक कद की ये कठपुतलियां भी नृत्य के जरिए संदेश दे रही थीं।
पिछले 17 सालों से कठपुतलियों का शो कर रही किरण ने बताया कि कठपुतलियों का सबसे बड़ा गुण यह है कि यह लोगों का ध्यान आकर्षित करते हैं। एक बार आपने ध्यान आकर्षित कर लिया तो संदेश देना आसान हो जाता है। इसमें हम हास्य को जोड़ देते हैं ताकि देखने वाले का मनोरंजन भी साथ में होता चले।
उन्होंने बताया कि शासन की विभिन्न योजनाओं को गांव गांव तक पहुंचाने में उनकी संस्था भागीदारी करती है। मैत्रीबाग का कार्यक्रम भी महिला एवं बाल विकास विभाग के द्वारा प्रायोजित था। इसे प्रनाम ने यहां आमंत्रित किया था। उन्होंने कहा कि लोकशिक्षण के लिए कठपुतलियों के उपयोग को बढ़ाने के लिए वे अपनी टीम के साथ दिन रात लगी रहती हैं।

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