एक झलक दिखाकर जो गई बिजली तो फिर नहीं आई

एक झलक दिखाकर जो गई बिजली तो फिर नहीं आई दंतेवाड़ा। गीदम ब्लॉक का ग्राम हारला अपने पंचायत मुख्यालय से भी कटा हुआ है। जोड़ातरई पंचायत के इस आश्रित गांव में सालों पहले लगे खंबे और तार में इस साल मार्च माह में बिजली दौड़ी। पांच दिन यहां उत्सव जैसा माहौल रहा। पर इसके बाद जो बिजली गुल हुई तो फिर लौट कर नहीं आई। ग्रामीण तार और घरों में लटके बल्ब देखकर ही खुश हैं। कई जगह तार नीचे तक झूल रहे हैं। लोग इन तारों पर कपड़े सुखा रहे हैं। दंतेवाड़ा। गीदम ब्लॉक का ग्राम हारला अपने पंचायत मुख्यालय से भी कटा हुआ है।  जोड़ातरई पंचायत के इस आश्रित गांव में सालों पहले लगे खंबे और तार में इस साल मार्च माह में बिजली दौड़ी। पांच दिन यहां उत्सव जैसा माहौल रहा। पर इसके बाद जो बिजली गुल हुई तो फिर लौट कर नहीं आई। ग्रामीण तार और घरों में लटके बल्ब देखकर ही खुश हैं। कई जगह तार नीचे तक झूल रहे हैं। लोग इन तारों पर कपड़े सुखा रहे हैं। पहाड़ी पर बसे छह पारा वाले इस गांव की जनसंख्या 555 है। यहां सड़क आज तक नहीं बन पाई है। राशन और जरूरी सामान के लिए करीब नौ किमी पैदल जाना होता है। बीमारी में देशी उपचार का ही सहारा है। गांव में प्राथमिक स्कूल और आंगनबाड़ी तो हैं पर शिक्षक हफ्ते में दो-तीन दिन ही आ पाते हैं। बारिश के दिनों में वे हारला की बजाए नागुल और गीदम में रहते हैं। स्कूल में एक ही शिक्षक होने से बच्चों को आठवीं पास गांव का युवक सहयोग कर रहा है। जनप्रतिनिधि केवल चुनाव के दौरान महुआ और बकरा पहुंचाने आते हैं।
गीदम ब्लाक मुख्यालय से करीब दस किमी दूर ग्राम पंचायत जोड़ातराई है। उसके आश्रित ग्राम हारला तक दो पहाड़ी नाले और जंगल के रास्ते करीब पांच किमी पैदल चलकर पहुंचना होता है। ग्रामीणों ने अपनी सुविधानुसार पत्थर-मिट्टी को बांधकर रास्ता बनाया है, जो बारिश में बह जाता है। पहाड़ी नाले उफान पर होते हैं और गांव टापू बन जाता है। ब्लॉक मुख्यालय तो दूर पंचायत मुख्यालय तक पहुंचने में भी उन्हें मुश्किल होती है। राशन के लिए जोड़ातरई पहुंचने भारी मशक्कत करनी पड़ती है।
चट्टानों में पेड़ फंसाकर करते हैं नाला पार
बारिश में दोनों पहाड़ी नाले तेज बहाव के साथ उफान पर होते हैं। ऐसे टापू बने गांव के लोगों को गांव से बाहर निकलने के लिए जान जोखिम में डालनी पड़ती है। वे पहाड़ी नाले के चट्टानों पर लंबे पेड़ों को काटकर फंसाते हैं। फिर उसी पेड़ और चट्टानों के सहारे पहाड़ से नीचे उतरते हैं। ग्रामीण बुधराम बताता है कि एक बार नाला पार करने के दौरान वह बह गया था। चट्टानों से टकराकर घायल भी हुआ था। इसी के चलते आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और शिक्षक भी नियमित रूप से गांव नहीं पहुंच पाते हैं।
बास्तानार ले जाते हैं बीमार को
हारला तक सरकारी महतारी और संजीवनी एंबुलेंस नहीं पहुंचती। गंभीर रुप से बीमार और गर्भवती को डोला में बिठाकर पहाड़ी से नीचे उतरना पड़ता है। ग्रामीण बीमारों को गीदम की बजाए बास्तानार हॉस्पिटल पहुंचाना बेहतर समझते हैं। इसके लिए वे मरीज को डोला में बिठाकर करीब पांच किमी दूर कावड़ीपदर ले जाते हैं। यहां एंबुलेंस पहुंचती है तो फिर 15 किमी दूर मूतनपाल या फिर बास्तानार सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र जाते हैं जबकि गीदम हॉस्पिटल पहुंचने के लिए सात किमी का पहाड़ी रास्ता तय करने के बाद ग्राम जोड़ातराई पहुंचा जा सकता है।

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