इस दिव्यांग ने अकेले पहाड़ चीरकर बनाया रास्ता
तिरुअनंंतपुरम। दिव्यांग मेलेथुवेट्टील ससी ने तीन साल तक प्रतिदिन 6-6 घंटे की कड़ी मेहनत कर पहाड़ का सीना चीरकर रास्ता बना दिया। ससी को लकवा मार गया था और वह ठीक से चल भी नहीं पाता पर इरादे फौलाद से ज्यादा मजबूत थे। ससी ठीक से चल नहीं सकता, ज्यादा देर खड़ा नहीं रह सकता, चीजों को ठीक तरह से पकड़ भी नहीं पाता। पर अपने दृढ़ निश्चय, आत्मविश्वास और अविश्वसनीय धैर्य ने ससी ने ऐसी मिसाल पेश की कि आज हर कोई उसके बारे में जानने को उत्सुक है। ससी अपने घर के सामने स्थित एक पहाड़ को चीरकर रास्ता बना दिया। बीते 3 सालों से 63 वर्षीय ससी रोजाना 6-6 घंटे पहाड़ को खोदते रहे और आज उनकी मेहनत रंग लाई कि उन्होंने पहाड़ चीरकर 200 मीटर चौड़ा रास्ता बना दिया। माउंटेन मैन के नाम से प्रसिद्ध बिहार के दशरथ मांझी के बारे में ससी ने कभी सुना नहीं था लेकिन उन्होंने मांझी की तरह ही अविश्वसनीय काम कर दिया।
ससी के शरीर का दाहिना हिस्सा लकवाग्रस्त है और वे बमुश्किल दाएं हाथ और पैर का उपयोग कर पाते हैं। ससी ने ये सब इसलिए किया कि वे काम पर जा सके और अपने परिवार की मदद कर सके। ससी पेड़ पर चढ़कर परंपरागत रूप से नारियल तोडऩे का काम करते थे। लेकिन 18 साल पहले वे हादसे का शिकार हुए और काफी ऊंचाई से सीधे नीचे जमीन पर आ गिरे, जिससे उनके शरीर के दाहिने हिस्से में लकवा मार गया। वे महीनों बिस्तर पर रहे। घर चलाने के लिए उनके बच्चों ने पढ़ाई छोड़ काम करना शुरू किया।
ससी को चलने फिरने के लिए स्कूटर चाहिए थे। उन्होंने पंचायत में आवेदन किया। लेकिन अधिकारियों ने उसकी हंसी उड़ाई कि ससी क्या स्कूटर हवा में उड़ाकर ले जाएंगे क्योंकि उसके घर के सामने पहाड़ था। निराश ससी ने साल 2013 में फैसला किया कि वो खुद पहाड़ खोदकर रास्ता बनाएगा। ससी के लिए पहाड़ खोदने से बड़ी चुनौती उनकी शारीरिक दिव्यांगता थी क्योंकि औजार के रूप में उनके पास फावड़ा, गेती जैसे घरेलू औजार ही थे। लेकिन ससी ने ठान लिया था कि वे खुद को साबित करेंगे। ससी ने तय किया कि वे रोजाना सुबह 5 से 8.30 और फिर शाम 4 बजे से अंधेरा होने तक काम करेंगे। शुरूआत में उन्हें कई चोटें भी आईं लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। शुरु में लोगों ने ससी का मजाक उड़ाया, लेकिन बाद में जब काम दिखने लगा तो पड़ोसियों ने उसका उत्साहवर्धन किया। ससी ने तीन सालों तक लगातार काम कर वो चमत्कार कर दिखाया जिसके बारे में आम लोग सोच ही नहीं पाते। हालांकि ससी का संघर्ष समाप्त नहीं हुआ था और पंचायत से अब भी उसकी कोई मदद नहीं हो रही थी। उसकी कहानी जब ऑनलाइन वायरल हुई तो जनता के दबाव में पंचायत को ससी की मदद करना पड़ी।
ससी की दास्तान का सबसे सुखद पहलू ये रहा कि पंचायत ने उसकी कोई आर्थिक मदद भले ही ना की हो लेकिन आम जनता और इंटरनेट पर लोग उनसे जुड़े और उनकी भरपुर मदद की। लोगों ने ही उपहार में ससी को तीन पहिया स्कूटर दिया।