आलू-प्याज के साथ लगती हैं झोलाछाप डॉक्टरों की भी दुकानें

छिंदवाड़ा। जिला मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूर आदिवासी गांव कटकुही में डाक्टरों का भी साप्ताहिक बाजार लगता है। प्रत्येक शुक्रवार लगने वाले हाट में आलू-प्याज की दुकानों के बीच डाक्टरों की भी दुकान लगती है। गले में स्टेथोस्कोप और हाथ में इंजेक्शन लिए ये डाक्टर दवाओं के साथ यहां अपनी टेबल लगाते हैं।छिंदवाड़ा। जिला मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूर आदिवासी गांव कटकुही में डाक्टरों का भी साप्ताहिक बाजार लगता है। प्रत्येक शुक्रवार लगने वाले हाट में आलू-प्याज की दुकानों के बीच झोलाछाप डाक्टरों की भी दुकान लगती है। गले में स्टेथोस्कोप और हाथ में इंजेक्शन लिए ये डाक्टर दवाओं के साथ यहां अपनी टेबल लगाते हैं। इन चिकित्सकों के पास कोई डिग्री नहीं है। इनका दावा है कि ये अपने अनुभव से बीमारियों को ताड़ लेते हैं और उसका सस्ता इलाज भी कर देते हैं। मरीज ठीक नहीं हुआ या उसकी हालत और बिगड़ गई तो वह सरकारी अस्पताल जा ही सकता है। वैसे इस क्षेत्र मे सरकारी आयुर्वेदिक अस्पताल भी है पर वहां जाने पर भी डाक्टर नहीं मिलते। वहीं दीनदयाल चलित अस्पताल भी हर शुक्रवार को आता है, लेकिन वो बाजार क्षेत्र के बाहर ही खड़ा रहता है जिसमें इक्का दुक्का मरीज ही आते हैं। इसलिए लोग हाट में ही इलाज करवा लेते हैं। बताया जाता है कि इस बाजार में नकली और स्तर हीन दवाइयों की अच्छी खपत है।
इस धंधे को रोकने प्रशासन ने इस साल एसडीएम रोशन राय ने एक टीम बनवाई। जिसमें बीएमओ, थाना प्रभारी को शामिल किया गया, लेकिन साल भर में टीम ने एक या दो ही बार कार्रवाई की जिसके कारण झोलाछाप डॉक्टरों के हौसले बुलंद हैं। लापरवाही की हद ये है कि डिस्पोजेबल इंजेक्शन के बजाय कांच के सीरींज का इस्तेमाल किया जाता है, सुई को पानी से गर्म कर लिया जाता है। वहीं झोपड़े में ही बॉटल लगा दी जाती है। एक्सपायरी डेट की दवा का भी इस्तेमाल धड़ल्ले से किया जाता है।

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