चीरपोटी में दीया ने लगाया व्यक्तित्व परिष्कार कार्यशाला

दुर्ग। युवाओ को झकझोरने वाली कुछ ऐसी ही पंक्तियों के साथ युवाओ को जागृत कर रही अखिल विश्व गायत्री परिवार की युवा शाखा दिव्य भारत युवा संघ दीया छतीसगढ़ द्वारा युग निर्माण योजना के अंतर्गत 20 दिसम्बर को युवा सम्मेलन उतई में 1008 वां एवं शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पुरई और रसमडा के राष्ट्रीय सेवा योजना के शिविर ग्राम चीरपोटी जिला दुर्ग में 1009 वां व्यक्तित्व परिष्कार कार्यशाला का आयोजन किया गया।दुर्ग। युवाओ को झकझोरने वाली कुछ ऐसी ही पंक्तियों के साथ युवाओ को जागृत कर रही अखिल विश्व गायत्री परिवार की युवा शाखा दिव्य भारत युवा संघ दीया छतीसगढ़ द्वारा युग निर्माण योजना के अंतर्गत 20 दिसम्बर को युवा सम्मेलन उतई में 1008 वां एवं शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पुरई और रसमडा के राष्ट्रीय सेवा योजना के शिविर ग्राम चीरपोटी जिला दुर्ग में 1009 वां व्यक्तित्व परिष्कार कार्यशाला का आयोजन किया गया।
divya bharat yuva sangh1दीया छतीसगढ़ के डॉ पी. एल.साव ने कहा कि हम सभी किसी न किसी महापुरुष को अपना आदर्श बनाते है, घर मे अपने छोटे भाई बहन या बच्चो से उनका आदर्श कौन है? पूछने पर हजारो की संख्या में नाम गिनाते है? पर उन हजारो की संख्या में हमारा नाम नहीं होता। ऐसी क्या कमिया है हममे की हमारे बच्चे, हमारे छोटे भाई बहन हमे अपना आदर्श नही मानते, यह बात समझने की जरूरत है, खुद को परिष्कृत करने की जरूरत है, ताकि आप दूसरों के लिए आदर्श बन सको।
डॉ योगेंद्र कुमार ने बीज की अवस्था को बताते हुए मनुष्य जीवन को समझाते हुए कहा कि बीज की पहली गति यह कि वह जमीन के अंदर जाकर एक वृक्ष के रूप में परिणित हो और अपने से हजारों बीज उत्पन्न करे, इसे बहादुरी की अवस्था कहते है ,दुसरी गति वह किसी इंसान के हाथ मे जाए अनाज या आटा बन कर भोजन बन जाये और मल मूत्र के रूप में त्याग दिया जाए,यह अवस्था विवशता की होती है, और तीसरी गति यह कि वह बोरा में ही छुपा रहे और घुन लग कर खराब हो जाये, यह अवस्था कृपणता की।
इसी प्रकार मनुष्य जीवन की भी 3 गति होती है, पहली गति की वह अपना जीवन किसी श्रेष्ठ कार्य में लगाये जिसका प्रतिफल ऐसा मिले जिससे लोक मंगल के लिए उपयोगी कार्य बने। दूसरी गति विवसता में अपने आप को किसी के हवाले होने दिया जाए और कठपुतली बनकर उनके इसारो में जिंदगी जीकर खत्म कर दिया जाए, तीसरी गति मनुष्य के जीवन की संकुचित स्वार्थियों की है। जिसमे वह हर काम से बचने की कोसिस करता है और बेकार होकर कीड़े मकोड़े की तरह मर जाता है । अब आपको चयन करना है कि कौन सी अवस्था श्रेष्ठ है।
कार्यक्रम में इंजी. सौरभ कांत ने कहा कि जितनी भी विपरीत परिस्थिति है उनसे सुधारने की जरूरत है और इन्हें सुधारने के लिए ऐसे व्यक्तित्वों की जरूरत है जिनका जीवन उन प्रकाश स्तंभों की तरह से हो जो भटके हुए को राह दिखा सके, जिनका जीवन उन टिमटिमाते दीपो की तरह से हो जो अंधेरे को चीरने का साहस रखते हो, जिनका जीवन उन नीव के पत्थरों की तरह से हो जो पूरी इमारत को अपने कंधों पर उठाने का सामथ्र्य रखते हो। आज समाज को ऐसे ही युवा की जरूरत है। इस लिए खुद को इस काबिल बना लो कि करो कुछ ऐसा की सब करना चाहे आपके जैसा। आपमे जो है वो किसी और में नही।

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