मुगल सेना के ब्रह्मास्त्र थे छत्तीसगढ़ के हाथी
रायपुर।मध्यकाल में छत्तीसगढ़ के हाथी मुगल सेना के ब्रह्मास्त्र थे। इनके बल पर उन्होंने युद्ध के मैदान में नामी गिरामी राजाओं को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। इस बात की तस्दीक इतिहास के पन्नाें और वन विभाग के दावों हो सकती है, क्योंकि छत्तीसगढ़ हाथियों का गढ़ था, जिन्हें पकड़कर मुगलों के महावत ले जाते थे। प्रशिक्षित करने के बाद युद्ध और ऊंची-ऊंची इमारतों के निर्माण कार्यों में इस्तेमाल करते थे। 500 साल पूर्व इनकी संख्या 3 से 4 हजार थी, लेकिन धीरेधीरे इनकी कम होती गई। इसके पीछे कारण था कि इनके पूर्वज प्रदेश के सीमावर्ती राज्यों में अपने ठिकाने बना लिए। एलीफेंट प्रोजेक्ट के अधिकारी के मुताबिक मुगल जिन हाथियों को यहां से ले गए, उनके दल के कुछ सदस्य उनकी पकड़ में नहीं आ पाए। इस दल के हाथियों की वीरता और आक्रामकता के कारण राजाओं और महापुस्र्षों के नाम पर इनका नामकरण बीते वर्षों में हुआ। लेकिन प्राकृतिक और जलवायु परिवर्तन के चलते धीरे धीरे इनके व्यवहार में अब परिवर्तन आने लगा है। जिनका नामकरण शांत महापुरुषों के नाम पर हुआ था, वे उग्र होने लगे। अभी हाथियों की संख्या 237 तक है।
घुसपैठ करने वाले हाथी भी इनके वंशज
छत्तीसगढ़ में घुसपैठ करने वाले हाथियों का दल भी यहां के हाथियों के वंशज हैं। क्योंकि अगर कोई मादा हाथी अपने दल से बिछड़ती है तो उससे होने वाली संतानें कई वर्षों बाद वहां एक बार जरूर पहुंचती हैं। ऐसे हाथी आंध्रप्रदेश और ओडिशा में भी हैं।
महापुरुषों के नाम पर इन दलों का नामकरण
1-ओशक दल में 21 हाथी,
2-गुरु घासीदास दल, अपना दल व सहज दल में 30 हाथी
3-बांकी दल, नवजात, ईब दल व बहरादेव दल में 50 हाथी
4-बुद्ध दल एवं कोरबा दल में 36 हाथी
5-रम दल, छाल दल और शांत दल में 53 हाथी
6-कुदमुरा दल में 33 हाथी सहित 55 अन्य हाथी हैं, जिनके अन्य स्थानों की ओर आने-जाने से संख्या बढ़ती और घटती है।
इनका कहना है
महापुरुषों के नाम पर हाथियों के दलों के नाम इनके स्वभाव के कारण रखे गए थे। छत्तीसगढ़ के जंगलों में हाथियों की अधिकता थी। इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि मुगल अपनी सेना में शामिल करने के लिए यहां के हाथियों को पकड़कर ले जाते थे।
केके बिसेन, मुख्य वन संरक्षक, सरगुजा वनवृत्त, एलीफेंट प्रोजेक्ट