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प्रेमचंद जयंती : स्वरूपानंद महाविद्यालय में रचनाकारों का हुआ सम्मान, बच्चों ने भी पढ़ी मुंशी जी की कहानियां

भिलाई। साहित्य सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर उनकी कृतियों की चर्चा करना और इसमें युवा पीढ़ी को शामिल करना प्रशंसनीय है। उनकी रचनाधर्मिता से प्रेरणा लेकर युवाओं को भी सामयिक साहित्य का सृजन करना चाहिए। उक्त टिप्पणी हेमचंद यादव विश्वविद्यालय दुर्ग के कुलपति डॉ शैलेन्द्र सर्राफ ने की। वे स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय में ‘अच्छे लोग’ संस्था द्वारा आयोजित प्रेमचंद जयंती समारोह को मुख्य अतिथि की आसंदी से संबोधित कर रहे थे। Pardesi Ram Vermaउन्होंने कहा कि हालांकि वे विज्ञान के छात्र हैं फिर भी मुंशी प्रेमचंद को उन्होंने पढ़ा है। जितनी बार वे मुंशीजी की रचनाओं को पढ़ते हैं उतने ही चकित हो जाते हैं। साधारण घटनाओं को मुंशी जी इस तरह कहानी में पिरो देते थे कि जीवन की बड़ी-बड़ी सीखें मिल जाया करती थीं। ये कहानियां आज भी प्रासंगिक हैं। इस कार्यक्रम में छात्र समुदाय को भी शामिल किया जाना सुखद है। उनकी रचनाधर्मिता इन बच्चों के लिए भी प्रेरक साबित हो सकती है। कौन जानता है कल इन्हीं बच्चों में से निकलकर नए साहित्यकार सामने आ जाएं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार परदेशी राम वर्मा ने मुंशी जी के बारे में रोचक जानकारियां प्रदान कीं। उन्होंने बताया कि मुंशीजी का नाम धनपत राय था। उन्हें नवाब राय भी कहा जाता था, हालांकि इसका उनकी माली हैसियत से कुछ भी लेना देना नहीं था। उन्होंने बताया कि मुंशी जी ने 8 साल की उम्र में ही अपनी माता को खो दिया था। इसके बाद उनके परिवार में विमाता का प्रवेश हुआ। उन दिनों पिता और पुत्र के बीच वैसे संबंध नहीं होते थे, जैसे आज होते हैं। पिता से बेटे दूर-दूर ही रहा करते थे। अभावों और झिड़कियों के बीच मुंशी जी का बचपन बीता। मैट्रिक पास करने के बाद वे शिक्षक हो गए।
श्री वर्मा ने बताया कि मुंशी जी की पहली रचना को ब्रिटिश सरकार ने नष्ट करवा दिया था। साथ ही यह भी कहा था कि यदि ऐसे साहित्य की रचना मुगल काल में हुई होती तो मुंशी जी को अपने हाथ गंवाने पड़ सकते थे। उन्होंने धनपत राय के साहित्य सृजन पर भी पाबंदी लगा दी। इसके बाद एक मित्र के सुझाव पर उन्होंने मुंशी प्रेमचंद के नाम से लिखना शुरू किया। यही नाम उनका चलन में रह गया।
उन्होंने मुंशी जी की विभिन्न कृतियों की चर्चा करते हुए कहा कि वे अपने जीवन के अनुभवों पर कहानियां और उपन्यास लिखते थे जो लोगों के दिलों में उतर जाते थे। उनकी कहानियां आज भी बेहद प्रासंगिक हैं।
समारोह को साहित्यकार डॉ जेआर सोनी ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम का संचालन अच्छे लोग संस्था के प्रमुख डॉ प्रशांत कानस्कर एवं प्रो. नीलम गांधी ने किया। धन्यवाद ज्ञापन महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ हंसा शुक्ला ने किया।
प्रतिभागी हुए पुरस्कृत
इस अवसर पर पोस्टर प्रतियोगिता के प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया गया। बीकॉम की कामिया चावला, बीसीए की बी लावन्या, सोनिया बारमासे तथा आयुषी मिश्रा को क्रमश: प्रथम, द्वितीय, तृतीय तथा सांत्वना पुरस्कार प्रदान किया गया।
इनका हुआ सम्मान
इस अवसर पर साहित्यकार डॉ प्रतिमा मिश्रा को साहित्य के क्षेत्र में, डॉ अंजना श्रीवास्तव को सामाजिक सरोकार और वाय अप्पल नायडू को स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में मुंशी प्रेमचंद साधना सम्मान दिया गया।

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