गनियारी में जेएसएस : एम्स के इन युवा चिकित्सकों ने बदली छत्तीसगढ़ की सूरत
रायपुर। एम्स से पोस्टग्रेजुएट चार चिकित्सकों के इस दल ने छत्तीसगढ़ के गनियारी में स्वास्थ्य सेवाओं का एक ऐसा मॉडल पेश किया है जिसका अनुकरण पूरे देश में किये जाने की जरूरत है। इस टीम ने जनस्वास्थ्य पर काम करते हुए 14 साल में 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर को 140 से घटाकर 62 और नवजात शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) को 120 से घटाकर 40 करने में सफलता प्राप्त की। इस दल के नेता डॉ योगेश जैन से छत्तीसगढ़ विधानसभा के श्यामाप्रसाद मुखर्जी सभागार में मुलाकात हुई। वे मायाराम सुरजन फाउंडेशन, नेशनल फाउंडेशन फार इंडिया के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित स्वास्थ्य प्रथम कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए पहुंचे थे। इस दल के प्रणेता डॉ योगेश जैन बचपन में महात्मा गांधी से प्रभावित थे। एम्स के पढ़ने के दौरान उन्हें एक मित्र ने शीला जुरब्रिग रचित ‘रक्कूस स्टोरी’ पढ़ने के लिए दी। यह पुस्तक स्वास्थ्य पर गरीबी का असर और महिलाओं के स्वास्थ्य पर केन्द्रित था। तमिलनाडु के ग्रामीण परिवेश पर आधारित इस पुस्तक ने उनका भविष्य तक कर दिया।
शिशु रोग में एमडी करने के बाद उन्होंने स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ रचना विवाह भी इसी शर्त पर किया कि वे गांव में जाकर रहेंगे। बिलासपुर के तत्कालीन आयुक्त हर्षमंदर ने 1999 में उन्हें जमीन उपलब्ध कराई और प्रोजेक्ट शुरू हो गया।
डॉ योगेश के साथ उनके साथी विशेषज्ञ चिकित्सक डॉ रमन कटारिया, डॉ अनुराग भार्गव, डॉ विश्वरूप चैटर्जी ने अपनी अपनी प्रोफेसर की नौकरी छोड़कर गनियारी को अपना पड़ाव बना लिया। माधवी, अन्जु, माधुरी, सत्यमाला ने टीम को मजबूती दी।
ग्रुप में महिला चिकित्सक की मौजूदगी ने इनके संघर्ष को पंख दिये और जल्द ही इनका काम फैलने और दिखने लगा। उन्होंने सबसे पहले महिलाओं के स्वास्थ्य को सुधारने का संकल्प लिया ताकि प्रसव के दौरान होने वाली मौतों एवं उन्य जटिलताओं को कम किया जा सके। सन 2000 से 2014 के बीच इनके काम ने वह मुकाम हासिल कर लिया कि देश के साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठनों की उनपर नजर पड़ी।
सितम्बर 1999 में भारत सरकार ने जन स्वास्थ्य सहयोग को तीन वर्षों के लिए 67 लाख रुपए का अनुदान दिया। इसमेें प्रत्येक चिकित्सक के लिए 10-10 हजार रुपए का मासिक वेतन शामिल था। सन 2000 में टाटा ट्रस्ट की इनपर नजर पड़ी। टाटा ट्रस्ट की जैसमीन पावरी गनियारी पहुंची और उनके काम को देखा। टाटा ट्रस्ट ने टीम को 4.5 करोड़ रुपए का अनुदान स्वीकृत कर दिया।
एम्स के इन विशेषज्ञों ने सारा काम आपस में बांट लिया और एक पूर्ण यूनिट की तरह काम शुरू कर दिया। अनुराग ने जहां क्लिनिकल कार्यों की जिम्मेदारी उठा ली, वहीं रमन एवं रचना ने सर्जरी को संभाल लिया। विश्वरूप ने लैब की जिम्मेदारी ली तो अंजू और योगेश ने शिशु रोग विभाग का भार उठा लिया।
आज जन स्वास्थ्य सहयोग तीन ग्रामीण सब सेन्टर का संचालन करता है जहां सातों दिन 24 घंटे की सेवाएं उपलब्ध हैं। ये सब सेन्टर 70 आदिवासी गांवों को कवर करते हैं। जेएसएस द्वारा प्रशिक्षित स्वास्थ्य कार्यकर्ता 32738 लोगों की सेहत की मानिटरिंग करते हैं। जेएसएस द्वारा तीन लाख से अधिक लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं।
जेएसएस तीन स्तरों पर काम करता है। निचले स्तर पर ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं जो लगभग 35000 लोगों को कवर करते हैं। इससे उपर सब-सेन्टर हैं जिनके अधीन 1.35 लाख लोग आते हैं। सबसे ऊपर रेफरल रूरल अस्पताल है जो 15 लाख लोगों को कवर करता है।