अपने बच्चों से संवाद बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती, संजीदा बनें : दीपक रंजन

केम्प-1 की महिला स्व सहायता समूह प्रमुखों को दिए टिप्स भिलाई। बच्चे जीवन की सबसे बड़ी पूंजी हैं। अपने बच्चों से ज्यादा कीमती दुनिया में कुछ भी नहीं। परन्तु बच्चों को अच्छे से अच्छा देने की कोशिश में माता-पिता कुछ इतने व्यस्त हो गए हैं कि बच्चे उनसे दूर होते जा रहे हैं। एक परिवारों में उनके बीच संवादहीनता की स्थिति बन रही है। यह अनेक मुसीबतों की जड़ है। इसलिए बच्चों के साथ संवाद बनाए रखें, भले ही इसके लिए आपको अपनी तरफ से पहल करनी पड़े।

भिलाई। बच्चे जीवन की सबसे बड़ी पूंजी हैं। अपने बच्चों से ज्यादा कीमती दुनिया में कुछ भी नहीं। परन्तु बच्चों को अच्छे से अच्छा देने की कोशिश में माता-पिता कुछ इतने व्यस्त हो गए हैं कि बच्चे उनसे दूर होते जा रहे हैं। एकल परिवारों में उनके बीच संवादहीनता की स्थिति बन रही है। यह अनेक मुसीबतों की जड़ है। इसलिए बच्चों से संवाद बनाए रखें, भले ही इसके लिए आपको अपनी तरफ से पहल करनी पड़े। भिलाई। बच्चे जीवन की सबसे बड़ी पूंजी हैं। अपने बच्चों से ज्यादा कीमती दुनिया में कुछ भी नहीं। परन्तु बच्चों को अच्छे से अच्छा देने की कोशिश में माता-पिता कुछ इतने व्यस्त हो गए हैं कि बच्चे उनसे दूर होते जा रहे हैं। एक परिवारों में उनके बीच संवादहीनता की स्थिति बन रही है। यह अनेक मुसीबतों की जड़ है। इसलिए बच्चों के साथ संवाद बनाए रखें, भले ही इसके लिए आपको अपनी तरफ से पहल करनी पड़े।उक्त बातें मोटिवेशनल स्पीकर एवं शिक्षक दीपक रंजन दास ने केम्प-1 में महिला स्व सहायता समूह प्रमुखों के बीच कहीं। साक्षरता अभियान, प्रौढ़ शिक्षा अभियान और स्व सहायता समूहों के गठन के क्षेत्र में अग्रणी समाज सेवी बी पोलम्मा की अगुवाई में आयोजित इस कार्यक्रम में एमजे कालेज के प्राचार्य डॉ कुबेर सिंह गुरूपंच भी उपस्थित थे।
दीपक ने कहा कि आज परिवार के खर्चों में हाथ बंटाने के लिए महिलाएं भी जद्दोजहद कर रही हैं। बच्चों की जरूरतें पूरी करना ही उनकी प्राथमिकता बन गई है। इस उधेड़बुन में बच्चों के साथ उनका संवाद टूट रहा है। जहां पेरेन्ट्स को यह शिकायत है कि बच्चा उनका कहना नहीं मानता, वहीं बच्चों को भी शिकायत है कि पेरेन्ट्स उनकी बात नहीं सुनते।
इसकी शुरुआत तब होती है जब बच्चा 6-7 साल का होता है। फोन पर सहेली या रिश्तेदार से बात करते समय यदि बच्चा आवाज दे तो उसे इशारे से चुप करा दिया जाता है। बाजार में कोई मिल जाती है तो आप उससे बातें करने लगती हैं, बच्चा चिड़चिड़ाता है। बच्चे से केवल उसकी पढ़ाई लिखाई के बारे में ही बातें होती हैं। बच्चे की कोई शिकायत आती है और आप उसे बोलने का मौका दिए बिना उसे डांटने लगती हैं। यह सब बच्चे को एक गलत संकेत देता है।
आइंदा बच्चा आवाज दे तो फोन को कुछ सेकण्ड के लिए होल्ड पर डालें, यदि बच्चा बाजार से जल्दी लौटना चाहता है तो उसकी इच्छा को तरजीह दें, कोई शिकायत या चुगली लगाए तो बच्चे को बोलने दें और उसकी बातों पर भरोसा करें। इससे रिश्ते में विश्वास कायम रहेगा और बच्चा अच्छी बुरी सभी बातें आपसे शेयर करेगा।
16-17 वर्ष की उम्र में बच्चा सबसे नाजुक मोड़ पर होता है। उसके पास सूचनाएं अधिक होती हैं। इसलिए यदि वह सब्जेक्ट या करियर के चुनाव को लेकर कुछ कहता है तो उसे गंभीरता से सुनें। उसके बारे में अधिक से अधिक जानकारी हासिल करें। बच्चे से उसपर चर्चा करें। बच्चे के चयन के अच्छे और बुरे दोनों पक्षों को उसके सामने रखें। बच्चा निश्चय ही आपकी बात सुनेगा।
महिलाओं ने ध्यानपूर्वक सभी बातों को सुना तथा अपने बच्चों से संबंधित बातों को सामने रखा। द्विपक्षीय संवाद से सभी का संतोषजनक हर ढूंढ लिया गया।
एमजे कालेज के प्राचार्य डॉ गुरुपंच ने कहा कि विषय के चयन को लेकर जागरूक होने की जरूरत है। आज सभी क्षेत्रों में अच्छा करियर है। यदि बच्चे में किसी विशिष्ट गुण या लक्षण दिखाई देता है तो उसे उस क्षेत्र में आगे बढ़ने देने में कोई बुराई नहीं है। परिवार का सपोर्ट मिलेगा तो बच्चा निश्चय ही असाधारण सफलताएं अर्जित करेगा।
अंत में श्रीमती पोलम्मा ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि यह चर्चा बेहद सामयिक और उपयोगी रही। यह आज घर-घर की समस्या है। बच्चे मां के ही ज्यादा करीब होते हैं। यह एक अटूट बंधन है। इसे कायम रखकर हम समाज से अनेक बुराइयों को समाप्त कर सकते हैं।

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