अनोखा मंदिर : माउंटआबू के अर्बुदांचल में पूजा जाता है शिवजी का अंगूठा
अचलगढ़। माउंटआबू में अचलगढ़ दुनिया की इकलौती ऐसी जगह है जहां भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है। मंदिर में भगवान शिव के अंगूठे के निशान देखे जा सकते हैं। माउंटआबू को अर्धकाशी भी कहा गया है। भगवान शिव के अर्बुदांचल में वास करने का स्कंद पुराण में प्रमाण मिलता है। माउंटआबू की गुफाओं में आज भी सैकड़ों साधु तप करते हैं। कहते हैं कि यहां की गुफाओं में शिवजी का वास है जो प्रसन्न होने पर साक्षात दर्शन देते हैं। माउंटआबू की पहाड़ियों पर स्थित अचलगढ़ मंदिर पौराणिक मंदिर है जिसकी भव्यता देखते ही बनती है।
पौराणिक कहानी है कि जब अर्बुद पर्वत पर स्थित नंदीवर्धन हिलने लगा तो हिमालय में तपस्या कर रहे भगवान शंकर की तपस्या भंग हुई। इसी पर्वत पर भगवान शिव की प्यारी गाय कामधेनु और बैल नंदी भी थे। लिहाजा पर्वत के साथ नंदी व गाय को बचाना था। भगवान शंकर ने हिमालय से ही अंगूठा फैलाया और अर्बुद पर्वत को स्थिर कर दिया। नंदी व गाय बच गई और अर्बुद पर्वत भी स्थिर हो गया। पहाड़ी के तल पर 15वीं शताब्दी में बना अचलेश्वर मंदिर में भगवान शिव के पैरों के निशान मौजूद हैं।
मेवाड़ के राजा राणा कुंभ ने अचलगढ़ किला एक पहाड़ी के ऊपर बनवाया था। किले के पास ही अचलेश्वर मंदिर है। अचलेश्वर महादेव मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग पाताल खंड के रूप में दृष्टिगोचर होता है, जिसके ऊपर एक तरफ दाहिने पैर के अंगूठे का निशान उभरा हुआ है।
गर्भगृह के बाहर वाराह, नृसिंह, वामन, कच्छप, मत्स्य, कृष्ण, राम, परशुराम, बुद्ध व कलंगी अवतारों की काले पत्थर की भव्य मूतिर्यां स्थापित हैं। यहां पर भगवान के अंगूठे के नीचे एक प्राकृतिक गढ्ढा बना हुआ है। इस गढ्ढे में कितना भी पानी डाला जाएं लेकिन यह कभी भरता नहीं है इसमें चढ़ाया जाने वाला पानी कहां जाता है यह आज भी एक रहस्य है।
अचलेश्वर महादेव मंदिर परिसर के चौक में चंपा का विशाल पेड़ है। बायीं ओर दो कलात्मक खंभों पर धर्मकांटा बना हुआ है। इस क्षेत्र के शासक राजसिंहासन पर बैठने के समय अचलेश्वर महादेव से आशीर्वाद प्राप्त कर धर्मकांटे के नीचे प्रजा के साथ न्याय की शपथ लेते थे।