इंसानों के गर्म खून से अपने अंडे सेती है मादा मच्छर : डॉ पाण्डे

एमजे कालेज ऑफ़ नर्सिंग में विश्व मच्छर दिवस का आयोजन

भिलाई। मादा मच्छर इंसानों के गर्म खून से अपने अंडे सेती है। कोई भी मच्छर अपना पेट भरने के लिए इंसानों को नहीं काटता। पेट भरने के लिए तो वह फूलों के रस पर आश्रित रहता है। मनुष्यों को आम तौर पर तीन प्रकार के मच्छर काटते हैं। सभी अलग अलग स्थानों पर पाए जाते हैं और इनके काटने से बीमारियां भी अलग अलग होती हैं। एमजे कालेज ऑफ़ नर्सिंग में आयोजित ‘विश्व मच्छर दिवस’ के अवसर पर डॉ विवेक पाण्डेय ने यह जानकारी दी। डॉ पाण्डेय ने कहा कि इंसानों को केवल मादा मच्छर ही काटती है क्योंकि उसीके पेट में अंडे होते हैं।भिलाई। मादा मच्छर इंसानों के गर्म खून से अपने अंडे सेती है। कोई भी मच्छर अपना पेट भरने के लिए इंसानों को नहीं काटता। पेट भरने के लिए तो वह फूलों के रस पर आश्रित रहता है। मनुष्यों को आम तौर पर तीन प्रकार के मच्छर काटते हैं। सभी अलग अलग स्थानों पर पाए जाते हैं और इनके काटने से बीमारियां भी अलग अलग होती हैं। एमजे कालेज ऑफ़ नर्सिंग में आयोजित ‘विश्व मच्छर दिवस’ के अवसर पर डॉ विवेक पाण्डेय ने यह जानकारी दी। डॉ पाण्डेय ने कहा कि इंसानों को केवल मादा मच्छर ही काटती है क्योंकि उसीके पेट में अंडे होते हैं। भिलाई। मादा मच्छर इंसानों के गर्म खून से अपने अंडे सेती है। कोई भी मच्छर अपना पेट भरने के लिए इंसानों को नहीं काटता। पेट भरने के लिए तो वह फूलों के रस पर आश्रित रहता है। मनुष्यों को आम तौर पर तीन प्रकार के मच्छर काटते हैं। सभी अलग अलग स्थानों पर पाए जाते हैं और इनके काटने से बीमारियां भी अलग अलग होती हैं। एमजे कालेज ऑफ़ नर्सिंग में आयोजित ‘विश्व मच्छर दिवस’ के अवसर पर डॉ विवेक पाण्डेय ने यह जानकारी दी। डॉ पाण्डेय ने कहा कि इंसानों को केवल मादा मच्छर ही काटती है क्योंकि उसीके पेट में अंडे होते हैं।मादा एनाफिलीज के काटने से मलेरिया, एडिस इजिप्ती के काटने से डेंगू और क्यूलेक्स के काटने से फाइलेरिया या हाथी पांव होता है। एनाफिलीज जहां ठहरे हुए गंदे पानी में अंडे देती है वहीं एडिस इजिप्ती साफ पानी में अंडे देती है। क्यूलेक्स झाड़ियों में पनपते हैं। एडीस और क्यूलेक्स दिन में काटते हैं जबकि एनाफिलीज रात में काटते हैं। मच्छरों से बचने का एकमात्र प्रभावी तरीका मच्छरदानी का उपयोग है।
उन्होंने बताया कि मच्छरों से बचने के लिए नीम का धुआं कुछ ही समय के लिए कारगर होता है। धुआं छंटते ही मच्छर वापस आ जाते हैं। बिजली से चलने वाले रिपेलेंट इंसानों में सांस की बीमारी पैदा कर सकते हैं। त्वचा पर लगाई जाने वाली दवा भी अच्छी नहीं होती।
आरंभ मेें महाविद्यालय की प्राचार्य सी कन्नम्मल ने बताया कि सन 1897 में ब्रिटिश डाक्टर सर रोनाल्ड रॉस ने मलेरिया के स्रोत मच्छर का पता लगाया था। 1930 में उन्होंने इस दिवस को विश्व मच्छर दिवस के रूप में मनाए जाने की वकालत की। तभी से दुनिया भर में 20 अगस्त को विश्व मच्छर दिवस मनाया जाता है।
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