डॉ साराभाई की जन्मशती पर एमजे कालेज में परिचर्चा का आयोजन

भिलाई। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के पितामह पद्मविभूषण डॉ विक्रम साराभाई की जन्मशती पर आज एमजे कालेज में एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ कुबेर सिंह गुरुपंच ने परिचर्चा की अध्यक्षता की। प्रभारी प्राचार्य डॉ अनिल चौबे ने उनके जीवन पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए उनके कृतित्व को रेखांकित किया। डॉ चौबे ने कहा कि डॉ साराभाई ने अपनी शुरुआत पीआरएल से की जहां वे कॉस्मिक किरणों का अध्ययन करते थे। यह एक बेहद छोटी शुरुआत थी जो आगे चलकर एक महत्वपूर्ण प्रतिष्ठान में बदल गई। उन्होंने इसरो, आईआईएम, नेहरू फाउंडेशन फार डेवलपमेंट, टेक्सटाइल इंडस्ट्री रिसर्च असोसिएशन की स्थापना कर अपनी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय दिया।भिलाई। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के पितामह पद्मविभूषण डॉ विक्रम साराभाई की जन्मशती पर आज एमजे कालेज में एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ कुबेर सिंह गुरुपंच ने परिचर्चा की अध्यक्षता की। प्रभारी प्राचार्य डॉ अनिल चौबे ने उनके जीवन पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए उनके कृतित्व को रेखांकित किया। डॉ चौबे ने कहा कि डॉ साराभाई ने अपनी शुरुआत पीआरएल से की जहां वे कॉस्मिक किरणों का अध्ययन करते थे। यह एक बेहद छोटी शुरुआत थी जो आगे चलकर एक महत्वपूर्ण प्रतिष्ठान में बदल गई। उन्होंने इसरो, आईआईएम, नेहरू फाउंडेशन फार डेवलपमेंट, टेक्सटाइल इंडस्ट्री रिसर्च असोसिएशन की स्थापना कर अपनी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय दिया।डॉ गुरुपंच ने कहा कि डॉ साराभाई जैसे प्रयोगधर्मी वैज्ञानिक लोगों को सीमित साधनों के बीच काम करने के लिए प्रेरित करते हैं। उन्होंने अनेक वैज्ञानिकों को मौका दिया और उनके साथ काम करते हुए उन्हें आगे बढ़ाया।
चर्चा में भाग लेते हुए सहा. प्राध्यापक सौरभ मंडल ने डॉ साराभाई को दूरदृष्टा बताते हुए कहा कि आज के युग में उनके द्वारा की गई खोज और उनके उपक्रमों का लाभ देश को मिल रहा है। देश और विज्ञान जगत सदा उनका ऋणी रहेगा।
सहा. प्राध्यापक दीपक रंजन दास ने कहा कि डॉ साराभाई ने युवकों पर भरोसा किया। डॉ कलाम को राकेट साइंटिस्ट बनाने में उनका योगदान था। डॉ साराभाई में इतना आत्मविश्वास था कि 1970 के दशक के भारत में भी वे स्पेस प्रोग्राम के लिए बजट स्वीकृत करा लेते थे।
धन्यवाद ज्ञापन श्रीमती चरनीत ने किया। इस परिचर्चा में शिक्षा संकाय, विज्ञान संकाय एवं वाणिज्य संकाय के सहा. प्राध्यापकगण ने हिस्सा लिया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *