पुस्तक समीक्षा “उड़ान”- प्रभावित करती है भूपेन्द्र की सरल-सहज अभिव्यक्ति
भूपेन्द्र कुलदीप की पुस्तक “उड़ान” की सरलता और सहजता प्रभावित करती है। छोटे-छोटे संवादों के सहारे कथानक द्रुत गति से आगे बढ़ता है। पाठक इस तरह खो जाता है कि कब पुस्तक समाप्त हो जाती है, पता ही नहीं लगता। इसमें प्रेम है, पिता-पुत्र और पिता-पुत्री के बीच की संवेदनाएं हैं, मदद करने वाले मित्र है। छोटी-छोटी नौकरियां हैं और बड़े-बड़े सपने हैं। स्वाध्याय और परस्पर सहयोग से बड़े लक्ष्यों की प्राप्ति का रास्ता है। भूपेन्द्र उन सफल रचनाकारों में से हैं जिन्हें पढ़ते समय मन कुछ और पन्नों को पढ़ने के लिए व्याकुल हो जाता है। यह पुस्तक लेखक के अपने जीवन संघर्ष को अभिव्यक्त करती है।उड़ान एक ऐसे प्रतिभाशाली युवक की कथा है जो सामान्य परिवार से आता है। वह प्रतियोगिता परीक्षाओं के माध्यम से जीवन में एक अच्छा मुकाम बनाना चाहता है। तभी उसके जीवन में एक युवती का प्रवेश होता है। अलग-अलग समाज से होने के बावजूद दोनों का अंततः न केवल मिलन हो जाता है बल्कि परस्पर सहयोग और प्रेरणा से तमाम संघर्षों और अनिश्चितता के बावजूद वे जीवन में अपना एक मुकाम बनाने में सफल हो जाते हैं।
कहानी में कच्ची उम्र के प्यार की सोंधी खुशबू है, आनन-फानन फैसले लेने की अल्हड़ता है। चुपचाप दोस्त की सहायता से विवाह करने की मजबूरी है तो समाज भय से डरे सहमे माता-पिता का विवाह पश्चात घर आकर सुहाग और गृहस्थी की वस्तुएं दे जाने का दृश्य भी है। यह प्रसंग माता-पिता और संतान के बीच के चिरसंबंधों को पुनः स्थापित करता है।
पुस्तक पुरुषवादी समाज के भाइयों की उस मानसिकता पर भी आघात करती है जिसमें वे अपनी बहनों के भाग्य के नियंत्रक बनना चाहते हैं। यहां एक बार फिर पिता और पुत्री के बीच अव्यक्त प्रेम की झलक दिखाई देती है। पुस्तक में जीवन के उन प्रत्येक क्षणों को सहजता से पकड़ने की कोशिश की गई है जो लगभग हर किसी के जीवन में आती है। परीक्षा की तैयारी करते करते ऊब जाना। खर्चे पूरा करने के लिए दो-दो तीन-तीन नौकरियां करना और शाम तक थककर ऐसे चूर हो जाना कि पढ़ाई का ख्याल तक न आए। ऐसे में प्रेरक के रूप में पत्नी की भूमिका को बड़ी खूबसूरती से रेखांकित किया गया है। पुस्तक में कहीं भी पांडित्य का अनावश्यक प्रदर्शन नहीं है। पुस्तक पीएससी या अन्य प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयार करने वालों को कई टिप्स भी देती है। लेखक सम्प्रति हेमचंद यादव विश्वविद्यालय दुर्ग में उप कुलसचिव के पद पर पदस्थ हैं। उनकी तीन और पुस्तकें आ चुकी हैं जो नोशन प्रेस पर उपलब्ध हैं।