50 की उम्र के बाद परेशान कर सकती है बीपीएच प्रोस्टेट की बीमारी, लापरवाही पड़ सकती है भारी

BPH can lead to kidney failure - Dr Mahadikभिलाई। 50 की उम्र के बाद पुरुषों को बीपीएच यानी बिनाइन प्रोस्टेट हाइपरप्लासिया परेशान कर सकती है। बहुत से पुरुष इस व्याधी के साथ ही जी रहे होते हैं और उन्हें पता भी नहीं होता कि इस समस्या से निजात पाई जा सकती है। शोध के मुताबिक भारत में 50 वर्ष की उम्र पार कर पुरुषों में ये एक आम बीमारी हैं। इलाज में लापरवाही बरतने से मूत्राशय खराब हो सकता है। यहां तक कि किडनी भी फेल हो सकती है। हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल के यूरोलॉजी विशेषज्ञ डॉ रजत महाडिक बताते हैं कि जागरूकता के अभाव में अधिकांश मरीज तभी अस्पताल पहुंचते हैं जब समस्या गंभीर हो जाती है। शुरू-शुरू में केवल पेशाब करते समय जलन, पेशाब का रुक रुक कर आना, पेशाब का खुलकर न होना और बार-बार पेशाब लगना जैसी समस्याएं सामने आता है। यह समस्या प्रोस्टेट ग्रंथि का आकार के बढ़ने के कारण मूत्रनली पर दबाव पड़ने से उत्पन्न होती है। बीमारी का इलाज दवाइयों द्वारा तथा रिस्पांस न मिलाने पर ऑपरेशन द्वारा किया जाता हैं। आधुनिक शल्य क्रिया तकनीक से इसका इलाज बहुत आसान हो चुका है जिसके बाद शरीर पर कोई निशान भी नहीं रहता।
गंभीर हो सकती है समस्या
दुनिया के तीसरे सबसे बड़े अस्पताल सिंगापुर जनरल हॉस्पिटल से यूरोसर्जरी में फेलोशिप तथा साउथ के प्रसिद्ध हॉस्पिटल से एमसीएच करने के बाद डॉ महाडिक सम्प्रति हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल, भिलाई से जुड़े हैं। डॉ महाडिक बताते हैं कि मूत्रनलिका पर दबाव पड़ने और मूत्राशय में लगातार पेशाब के बने रहने से वहां दबाव बनता है। इससे मूत्राशय फैल सकता है, खराब हो सकता है। इससे किडनी से मूत्राशय को जोड़ने वाली नलिकाओं में भी विपरीत दबाव उत्पन्न होने लगता है। समस्या लंबे समय तक बनी रहने से किडनी फेल हो सकती है।
ऐसा हुआ तो तुरंत कराएं इलाज
डॉ महाडिक बताते है कि 40 से ऊपर आयु के पुरुषों को मूत्रविसर्जन से जुड़ी परेशानियों को गंभीरता से लेना चाहिए। यदि पेशाब में रुकावट आ रही हो, बार-बार पेशाब जाना पड़ रहा हो, पेशाब जाने के बाद भी पेट के निचले हिस्से में भारीपन महसूस हो, पेशाब रुक-रुक कर या जलन के साथ आए तो तुरन्त किसी योग्य यूरोलॉजिस्ट से सम्पर्क करना चाहिए। कुछ सामान्य सी जांचों से ही समस्या का पता लगाया जा सकता है। आरंभिक स्थिति में यह दवाइयों एवं दिनचर्या में परिवर्तन से कण्ट्रोल हो सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *