Literature, Society

साहित्य, संस्कृति और समाज के बदलते स्वरूप पर कार्यशाला

दुर्ग। शासकीय विश्वनाथ यादव ताम्रकार स्नातकोत्तर दुर्ग के हिंदी विभाग द्वारा 11 एवं 12 जून 2021 को हिंदी साहित्य के शोधार्थियों एवं स्नातकोत्तर कक्षा के विद्यार्थियों हेतु दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला के प्रथम दिवस का उद्घाटन करते हुए महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ आर एन सिंह ने कहा कि समाज, साहित्य एवं संस्कृति यह तीनों का एक दूसरे से संबंध है। गतिशीलता इनका स्वभाव है। शोधार्थियों को इस गतिशीलता को ध्यान में रखते हुए विषय की गहराई को समझने की क्षमता विकसित करनी चाहिए। कार्यशाला में विषय विशेषज्ञों द्वारा इस पर विस्तार से प्रकाश डाला जाएगा जिससे शोधार्थी लाभाविंत होंगे। इस दिशा में हिंदी विभाग का प्रयास सराहनीय है। कार्यशाला के आरंभ में हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं संयोजक डॉ अभिनेश सुराणा ने सभी वक्ताओं एवं प्रतिभागियों का स्वागत अपने वक्तव्य द्वारा किया।
प्रथम दिवस के मुख्य वक्ता रायपुर के डॉ रमेश अनुपम ने हिंदी अनुसंधान की चुनौतियां की चर्चा करते हुए कहा कि जो यथार्थ हमें समाज में दिख रहा है, वही सत्य नहीं है, इस यथार्थ के पीछे भी बहुत सारे यथार्थ छिपे हैं, आज समाज किस संक्रमण से गुजर रहा है यह भी जानना आवश्यक है। उन्होंने आगे समाज के बदलते स्वरूप की चर्चा करते हुए कहा कि किसी भी देश का केवल समाज नहीं बदलता बल्कि वह अपने साथ साहित्य और संस्कृति में भी बदलाव लाता है। अतः समाज का बदलाव साहित्य और संस्कृति में दिखाई देता है। दूसरे वक्ता महाविद्यालय के प्राध्यापक डॉ जयप्रकाश साव ने हिंदी अनुसंधान की चुनौतियों के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि शोधार्थी की भाषा शुद्ध होनी चाहिए क्योंकि भाषा मनुष्य की बुनियादी आवश्यकता है। शोध के लिए व्यवस्थित भाषा अतिआवश्यक है। अगर शोधार्थी की भाषा व्यवस्थित नहीं है तो शोध एक कर्मकांड बनकर रह जाएगा।
कार्यशाला के द्वितीय दिवस के अतिथि वक्ता डॉ भुवाल सिंह ठाकुर ने अपने वक्तव्य में कहा कि हिंदी अनुसंधान की सबसे प्रमुख चुनौती है कि शोधार्थी अधिक से अधिक किस प्रकार से पुस्तकों से जुड़े तथा वे किताबों के प्रति अनुराग पैदा करे। उन्होंने आगे कहा कि शोध करते समय विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं को नियमित रूप से पढ़ें ताकि विश्व, देश और दुनिया में व आसपास घट रही घटनाओं को जाने एवं समझे। कार्यशाला के दूसरे वक्ता विख्यात साहित्यकार, समीक्षक, प्राध्यापक डॉ सियाराम शर्मा थे। श्री शर्मा ने कहा कि कोई भी गतिशील समाज ठहरा हुआ नहीं होता है। वर्तमान परिदृश्य में चल रही घटनाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आज मिथकों को इतिहास में और इतिहास को मिथकीय परिदृश्य में बदलने का प्रयास किया जा रहा है। हमें मिथक और इतिहास को अच्छे से समझने की आवश्यकता है। एक शोधार्थी को इतिहास, समाज विज्ञान, अर्थशास्त्र, राजनीतिकशास्त्र और दर्शनशास्त्र का ज्ञान होना चाहिए।
कार्यशाला के प्रथम दिवस का संचालन हिंदी विभाग के प्रो. थानसिंह वर्मा एवं द्वितीय दिवस का संचालन शासकीय महाविद्यालय मचान्दूर के प्राध्यापक डॉ अंबरीश त्रिपाठी ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ रजनीश उमरे एवं डॉ बलजीत कौर ने किया। इस कार्यशाला में हिंदी विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक डाॅ. शंकर निषाद, डॉ कृष्णा चटर्जी, डॉ सरिता मिश्रा, कुमारी प्रियंका यादव का सहयोग सराहनीय रहा। तकनीकी सहयोग हेतु शोधार्थी श्री सौरव सर्राफ एवं श्री मृत्युंजय द्विवेदी का महत्वपूर्ण योगदान किया। इस दो दिवसीय कार्यशाला में देश के विभिन्न राज्यों झारखंड, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली से अनेक अध्यापक एवं हिंदी के लगभग 300 शोधार्थीगणों ने अपनी सहभागिता दी।

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