Dr Kishore Dutta speaks on exam stress

परीक्षा के लिए रात जागना पड़ सकता है भारी – डॉ किशोर दत्ता

भिलाई। परीक्षा की तैयारी के दौरान रात-रात भर जागना भारी पड़ सकता है। इसके कारण दिमाग में कोहरा छा सकता है और कंफ्यूजन इस लेवल तक बढ़ सकता है कि हम उत्तर लिख ही न पाएं। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण हैं। हमारा दिमाग तभी जानकारियों को व्यवस्थित कर पाता है जब हम पर्याप्त नींद लेते हैं। जब हम नींद को टालते हैं तो पढ़ा हुआ सबकुछ गड्डमड्ड हो जाता है। यह बातें टाइम मैनेजमेंट एवं कम्युनिकेशन गुरू डॉ किशोर दत्ता ने कहीं।Seminar by Dr Santosh Rai Instituteडॉ किशोर दत्ता एमजे कालेज एवं डॉ संतोष राय इंस्टीट्यूट द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित सेमिनार को संबोधित कर रहे थे। होटल अमित पार्क में आयोजित इस सेमीनार में एमजे कालेज की निदेशक डॉ श्रीलेखा विरुलकर, प्राचार्य डॉ अनिल कुमार चौबे, आईक्यूएसी प्रभारी अर्चना त्रिपाठी, शिक्षा संकाय की प्रभारी डॉ श्वेता भाटिया, फार्मेसी कालेज के प्राचार्य डॉ टिकेश्वर कुमार, एमजे कालेज ऑफ नर्सिंग के प्राचार्य डैनियल तमिल सेलवन, डॉ संतोष राय इंस्टीट्यूट के प्रमुख डॉ संतोष राय, डॉ मिट्ठू, सीए केतन ठक्कर, सीए प्रवीण बाफना सहित बड़ी संख्या में विद्यार्थी शामिल थे।
Seminar by MJ Collegeडॉ दत्ता ने कहा कि मानव स्वभाव टालू प्रवृत्ति का होता है। हम चीजों को तब तक टालते हैं जब तक इमरजेंसी जैसी स्थिति नहीं बन जाती। यही वजह है कि जिस पेपर से पहले सबसे बड़ा गैप होता है, अकसर उन्हीं के बिगड़ने की आशंका ज्यादा होती है। परीक्षा हो या जीवन समय प्रबंधन बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि सबसे पहले अपना वार्षिक टारगेट सेट कर लें। फिर उसे पूरा करने के लिए माहवारी टारगेट सेट करें और फिर दैनिक कार्यों की सूची बनाकर प्राथमिकता तय कर लें। इनमें से जो सबसे ज्यादा जरूरी हों केवल उन्हीं कार्यों को पूरा करने पर फोकस करें। जो कार्य दूसरों को सौंपे जा सकते हैं, उनमें स्वयं न उलझें और गैरजरूरी कार्यों को सूची से हटा दें। आप देखेंगे कि काम का दबाव कम हो गया है। आप बेहतर फोकस के साथ काम कर पा रहे हैं। टारगेट पूरे हो रहे हैं और आपके पास स्वयं को देने के लिए भी काफी वक्त है।
उन्होंने बताया कि सफलता केवल कठिन परिश्रम से नहीं आती। ऐसा होता तो मजदूर सबसे ज्यादा सफल होता। हम देखते हैं कि अकसर सफल लोग आमोद प्रमोद के लिए भी समय निकाल ही लेते हैं। इसका कारण यही है कि वे सबसे ज्यादा जरूरी कार्यों को ही स्वयं करते हैं। शेष काम अधीनस्थों को बांट देते हैं और गैर जरूरी कार्यों को सूचा से निकाल देते हैं।
कठिन और नापसंद कार्यों को दिन में सबसे पहले करने की सलाह देते हुए डॉ किशोर दत्ता बताते हैं कि इसे ईटिंग द फ्रॉग (मेंढक निगलना) भी कहते हैं। इसे सुबह सबसे पहले करना चाहिए। इस समय हमारा मूड सबसे अच्छा होता है। दिमाग तरोताजा रहता है। इस समय कठिन कार्य भी आसान लगते हैं और हम उन्हें पूरा कर पाते हैं। कठिन और नापसंद कार्यों को सुबह-सुबह कर लेने के बाद हम दिन भर तनाव मुक्त रहते हैं और कार्यों को बेहतर ढंग से अंजाम दे पाते हैं।

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