India offers new treatment of diabetes

नई दवा : जीवन में कड़वाहट घोलती खून में दौड़ती चीनी

लखनऊ। मधुमेह के नाम में भले ही शहद की मिठास हो किन्तु यह रोगी के जीवन में करेले से भी ज्यादा कड़वाहट घोल देती है। भारत में इसके 7 करोड़ 40 लाख ज्ञात मरीज हैं। जिस रफ्तार से इसके मामले बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए भारत को दुनिया का डायबिटिक कैपिटल भी कहा जाता है। सीमैप ने इसके इलाज का नया तरीका ढूंढा है। सीमैप को मीठी मुलेठी की जड़ों से मधुमेह की दवा बनाने में सफलता मिली है।केंद्रीय औषधि एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) ने मुलेठी की जड़ों में मिलने वाले एक तत्व से इसकी असरकारक दवा बनाई है। यह दवा मुलेठी की जड़ों में मिलने वाले ‘आइसोलिक्विरिटिजेनिन’ से बनाई गई है। खास बात यह है कि इसे फाइटो फार्मास्यूटिकल्स ड्रग की श्रेणी में बनाया गया है, जिसे वैश्विक स्तर के मानकों पर जांच कर मान्यता मिलती है।
यह सच है कि कुछ लोगों ने अपने खान-पान पर नियंत्रण और दिनचर्या में बदलाव लाकर मधुमेह पर नियंत्रण पाया है, लेकिन अब भी एक बड़ा तबका मधुमेह से ग्रसित है और दवाओं पर निर्भर है। अंतरराष्ट्रीय डायबिटीज फेडरेशन द्वारा की गई गणना में 2019 तक दुनिया भर में लगभग 47 करोड़ व्यक्तियों को डायबिटीज से पीड़ि‍त पाया गया। उनके अनुसार यह आंकड़ा वर्ष 2045 तक 70 करोड़ तक पहुंचने की आशंका है।
वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) की प्रयोगशाला सीमैप के प्रधान विज्ञानी डा. ए पी यादव ने बताया कि आइसोलिक्विरिटिजेनिन पर शोध में हमने मधुमेह विरोधी (एंटी डायबिटिक) गुण पाए थे। इस शोध को संस्थान ने कुछ समय पहले अंतरराष्ट्रीय शोध पत्र ‘फाइटोमेडिसिन’ में प्रकाशित किया था। जिसके बाद फाइटो फार्मास्युटिकल मिशन के तहत उन्हें यह दवा बनाने की अनुमति मिली। डा. यादव ने बताया कि इसका पहला ट्रायल ट्रांसजेनिक चूहों पर किया गया है। इसमें 90 दिनों तक उन्हें यह दवा खिलाई गई है। 14 से 28 दिनों में इस दवा के बेहतरीन परिणाम नजर आए हैं। इस दवा की सबसे अच्छी बात यह है कि इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। उन्होंने बताया कि ‘आइसोलिक्विरिटिजेनिन’ के अब तक मुलेठी की जड़ों में ही पाए जाने की पुष्टि हुई है। अन्य पौधों में इसको ढूंढऩे की प्रक्रिया जारी है।
सीएसआइआर की प्रयोगशाला जब भी किसी नई तकनीक या दवा इजाद करती है तो उसे फार्मा उद्योग को सौंपा जाता है। जिससे उसका उत्पादन वृहद स्तर पर हो सके और यह ज्यादा से ज्याद लोगों तक पहुंच सके। शोध के प्रथम चरण में चूहों पर किए गए रिसर्च में संस्थान ने पहले ही प्रयास में सफलता पाई है। अब इसके क्लीनिकल ट्रायल की तैयारी शुरू हो गई है, जिसके लिए आवश्यक अनुमति और कार्यवाही जारी है। डॉ त्रिवेदी ने बताया कि ड्रग के पेटेंट की प्रक्रिया जारी है। उन्हें आशा है कि इस ड्रग के बाजार में उतरने के बाद मधुमेह रोगियों को राहत मिलेगी।
सीमैप की पहली दवा : मधुमेह के लिए सीमैप की खुद के प्रयास से बनी पहली दवा होगी। इससे पहले सीमैप ने एबीआरआइ के साथ मिलकर शुगर की आयुर्वेदिक दवा बीजीआर-34 बनाई थी। यह दवा काफी सफल है। यह दवा पूरी तरह से सीमैप के शोध और प्रयास का सुफल है।

Pic Courtesy : dw.com

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