SSSSMV conducts survey on cancer prevalence

स्वरूपानंद के माईक्रोबायोलॉजी विभाग द्वारा कैंसर सर्वेक्षण

भिलाई। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय के माइक्रोबायोलॉजी विभाग की अध्यक्ष डॉ शमा अ बेग ने आरंभिक स्टेज में कैंसर की पहचान करने के लिए एक व्यापक सर्वेक्षण किया है। कैंसर इंडिया के सर्वे के अनुसार प्रतिवर्ष भारत में 12 लाख लोग कैंसर से ग्रस्त होते हैं जिनमें से 8 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है। आरंभिक चरणों में पता लगाने पर अधिकांश कैंसर का इलाज संभव है।
डॉ शमा ने बताया कि कैंसर विश्व की दूसरी घातक बीमारी है, यदि इसका पता जल्दी लग जाए तो इससे बचा जा सकता है। प्रथम चरण में कैंसर का पता लगने पर इसे मात दिया जा सकता है। सर्वे से स्पष्ट हुआ कि व्यक्ति को इस बीमारी के होने का अहसास हो जाये तो वह इसके नाम मात्र से टूट जाता है। सिर्फ मरीज नहीं अपितु उसका पूरा परिवार उसके संघर्ष के साथ दुःख और तकलीफें सहता है। कैंसर की जांच के लिए लोगों को प्रेरित करने तथा उनमें जागरूकता लाने के लिए यह सर्वे किया गया।
उन्होंने बताया कि दुर्ग जिले में इस रोग के आंकडे जानने हेतु 816 परिवारों का सर्वे किया गया। इस सर्वे के विश्लेषण से स्पष्ट हुआ कि 25.9 प्रतिशत परिवारों में कैंसर के मरीज है। जिनमें महिलाओं का प्रतिशत 37 है। महिलाओं में ब्रेस्ट, युट्रेस एवं सरवाइकल कैंसर अधिक पाया गया। पुरुषों में ओरल, थ्रोट, लंग, किडनी, ब्लड कैंसर एवं पैनक्रियाज़ कैंसर की अधिकता पायी गयी। इस सर्वे के अनुसार मरीजों को कैंसर का पता विभिन्न चरणों में लगा जैसे प्रथम चरण में 25.5 प्रतिशत लोगों को इस रोग के बारे में मालूम लगा और उन्होंने अपना ईलाज करवाना शुरु किया। 12.6 प्रतिशत मरीजों को द्वितीय चरण में 8.1 प्रतिशत को तृतीय एवं 17.1 प्रतिशत को अंतिम चरण में पता चला। 39.6 प्रतिशत लोगों को चरण की जानकारी नहीं है इसी अज्ञानता को दूर करने के लिये हमें प्रयासरत होना है।
सर्वे से यह भी स्पष्ट हुआ कि उपचार उपरांत 33 प्रतिशत लोगों के स्वास्थ्य में सुधार पाया गया है। 8.9 प्रतिशत मरीजों को कोई स्वास्थ्य लाभ नहीं है, 19.6 प्रतिशत मरीजों की उपचार के दौरान मृत्यु हो गयी और 38.4 प्रतिशत लोगों को उपचार की सही जानकारी नहीं है। हमें कैंसर को मात देने लोगों के बीच जागरुकता लानी होगी। जैसे लक्षणों के दिखते ही इसका परीक्षण कराये तो रोगी की जान बचायी जा सकती है। लोगों को नुक्कड़ नाटक, गीतों, चौपाल, नारे से कैंसर के लक्षणों के बारे में अवगत कराया जाये। जैसे किसी गांठ का ठीक नहीं होना, उसी जगह या आस-पास बार-बार फोडा होने पर उसका उचित परीक्षण कराये। सर्वे के विश्लेषण से यह भी ज्ञात हुआ कि कैंसर अब गांवों में भी पैर पसारने लगा है। अब यह बीमारी केवल शहरों तक ही सीमित नहीं रही, इसका मुख्य कारण रासायनिक पदार्थो की मिलावट एवं पर्यावरण प्रदूषण हो सकता है। लोगों के बीच इस भ्रम को भी दूर करना होगा कि कैंसर छूआछुत वाली बीमारी नहीं है अर्थात् कैंसर रोगी के साथ रहने खाने पीने से यह नहीं फैलता। नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम रिपोर्ट 2020 के अनुसार पिछले 4 वर्षो में कैंसर रोगियों की संख्या में लगभग 10 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। कैंसर से बचाव के उपायों को अपना कर हम कैंसर रुपी विकराल बीमारी को बढ़ने से रोक सकते है जैसे भोजन में हरी और पीली चीजों के उपयोग से ओरल कैंसर से बचाव होता है धूम्रपान, गुटखा एवं तम्बाखु का उपयोग बंद करें और मद्यपान से परहेज कर हम कैंसर से बचाव कर सकते है। डब्बा बंद खाद पदार्थो का सेवन न करें। रासायनिक पदार्थो के उपयोग से बचें, जैविक खाद् पदार्थो का उपयोग करें। खान-पान एवं समय से ईलाज करने संबंधी जानकारी सर्वे से संबंधित परिवारों को की गयी था उनसे आग्रह किया गया कि इस तथ्य को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाये।

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