Critical Spine Surgery of 57 year old at Hitek Hospital

बोझा उठाते जख्मी हुई थी गर्दन, अब जाकर हुई सर्जरी

भिलाई। अनुसुइया की गर्दन में सात साल पहले लगी चोट का असर अब जाकर सामने आया। इसी साल जनवरी में उसकी तकलीफ बढ़ गई और धीरे-धीरे बायां हाथ और बायां पैर सुन्न पड़ गया। उसे गंभीर अवस्था में हाईटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल लाया गया। उसकी गर्दन की हड्डी अपनी जगह पर घूम गई थी। सर्जरी के बाद अब उसकी स्थिति बेहतर है तथा हाथ पैर में जान लौटने लगी है।
हाइटेक के न्यूरोसर्जन डॉ दीपक बंसल ने बताया कि 57 वर्षीय अनुसुइया को 8 फरवरी को हाइटेक लाया गया था। जांच करने पर पता चला कि उसकी रीढ़ का सबसे ऊपरी मनका, जो खोपड़ी से जुड़ता है, अपने स्थान पर घूम गया है। दूसरे मनके का एक हिस्सा इसमें फंसा होता है जिससे सटकर रक्तवाहिका सिर को जाती है। हड्डियों के घूम जाने के कारण नसों पर दबाव पड़ रहा था और रक्तसंचार एवं संवेदनाएं बाधित हो रही थी। मेडिकल भाषा में इसे रोटेटरी एटलांटो एक्सियल डिस्लोकेशन कहते हैं। फांसी देते समय यही मनके टूट जाते हैं और नसों पर दबाव पड़ने के कारण व्यक्ति की मौत हो जाती है।
उन्होंने बताया कि यह एक लंबी चलने वाली सर्जरी होती है जिसमें मनके को यथास्थान बैठाने के बाद उसे वहीं फिक्स करने के लिए नसों को बचाते हुए स्क्रू लगाना होता है। मरीज की कमजोर शारीरिक स्थिति को देखते हुए यह एक कठिन चुनौती थी। पर निश्चेतना विशेषज्ञ डॉ पल्लवी शेण्डे के साथ मिलकर उन्होंने मरीज को 16 फरवरी को सर्जरी के लिए ले लिया। सर्जरी सफल रही। 14 दिन बाद मरीज के बाएं हाथ और पैर में जान लौटने लगी है। वह मुट्ठी बांधने की कोशिश कर रही है और पैरों की उंगलियों को भी हिला पा रही है। हालांकि अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए उसे अभी थोड़ा वक्त लगेगा। आज उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।
परिजनों ने बताया कि अनुसुइया सिंगनवाही, ब्लाक डौण्डीलोहारा, जिला बालोद की निवासी है। लगभग सात साल पहले एक दिन वह सिर पर बोझा लेकर जा रही थी कि एकाएक बोझा का संतुलन गड़बड़ा गया था और वह बोझा सहित गिर पड़ी थी। कई दिनों तक वह गर्दन सीधी नहीं कर पाई थी। पर गरीब को आराम कहां। धीरे-धीरे वह फिर काम पर लौट आई थी। इस वर्ष जब कड़ाके की सर्दी पड़ी तो उसकी तकलीफ बढ़ने लगी। पर जब उसे लकवा मार गया तब उसे लेकर हाइटेक पहुंचे। मुख्यमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के कारण ही वे इलाज कराने में सफल हुए। काश जब चोट लगी थी तभी इलाज करा लिया होता।

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