किशोरावस्था के परिवर्तनों की समझ पैदा करना जरूरी – डॉ सावंत
भिलाई। किशोरावस्था में न केवल शरीर व्यापक परिवर्तनों के दौर से गुजरता है बल्कि व्यक्ति को अनेक मानसिक एवं सामाजिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। यही वह उम्र है जब एक स्वस्थ मन एवं शरीर के विकास की नींव पड़ती है। अतः श्रेष्ठ भावी जीवन के लिए इन परिवर्तनों की समझ किशोरों के साथ ही उनके माता-पिता को भी होना जरूरी है। यह बातें किशोरों की स्वास्थ्य समस्याओं पर एमजे कालेज ऑफ नर्सिंग में आयोजित राज्य स्तरीय सेमीनार को संबोधित करते हुए एडॉलसेन्ट हेल्थ अकादमी की राज्य इकाई के अध्यक्ष डॉ एपी सावंत ने व्यक्त किये।
एएचए इंडियन अकादमी ऑफ पीडियाट्रिक्स की एक इकाई है। डॉ सावंत ने कहा कि 10 से 19 वर्ष के बीच की आयु किशोरावस्था है। इस दौरान न केवल शरीर में परिवर्तन होते हैं बल्कि किशोर मानसिक उथल पुथल के दौर से भी गुजरता है। शरीर के साथ साथ विचार भी पुष्ट होते हैं तथा वह अपने आसपास की दुनिया से एक नए ढंग से जुड़ रहा होता है। परिवर्तनों के इस दौर में वह भावनात्मक रूप से टूट सकता है, भावावेग में आत्महत्या कर सकता है। अपरिपक्व और असुरक्षित यौन संबंधों के कारण भी वह मुसीबत में पड़ सकता है।
एएचए की राज्य सचिव डॉ सीमा जैन ने किशोरावस्था में होने वाले परिवर्तनों की चर्चा करते हुए तनाव के विभिन्न कारकों, तनाव के प्रकारों तथा किशोरों की देखभाल में माता पिता की भूमिका पर विस्तार से अपनी बात रखी।
16 मई को आयोजित इस सेमीनार की मेजबानी मोनिका ने की। बीएससी नर्सिंग चतुर्थ सेमेस्टर की छात्राओं ने स्वागत गान प्रस्तुत किया। शिव नारायण साहू ने मुख्य अतिथि डॉ एपी सावंत एवं एएचए की राज्य सचिव डॉ सीमा जैन का स्वागत किया। बीएससी नर्सिंग चतुर्थ सेमेस्टर की छात्राओं ने खूबसूरत सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया।
इस अवसर पर एमजे कालेज ऑफ नर्सिंग के प्राचार्य डैनियल तमिल सेलवन, उप प्राचार्य सिजी थॉमस, सभी व्याख्याता एवं प्राध्यापकगण, एमजे कालेज –फार्मेसी के प्राध्यापकगण सहित 300 से भी अधिक विद्यार्थी उपस्थित थे। अंत में धन्यवाद ज्ञापन प्रीति अनन्त ने किय।