खाटू श्याम ने हाथ पकड़कर पहुंचाया इस मुकाम तक – अर्पिता पंडित
भिलाई। प्रख्यात भजन गायिका अर्पिता पंडित गीते ने आज कहा कि उन्हें स्वयं बाबा खाटू श्याम ने हाथ पकड़कर इस मुकाम तक पहुंचाया है। हालांकि बचपन से ही उन्हें गायन का शौक रहा है पर वे कभी प्रोफेशनल सिंगर बनेंगी, इस बार में सोचा नहीं था। पर कुछ घटनाओं ने उन्हें यह रास्ता दिखाया और वे पूरी निष्ठा के साथ उसपर चल पड़ीं। अब भजन ही उनकी पहचान है। सबकुछ बाबा की इच्छा पर है।
अर्पिता रायपुर में एक कार्यक्रम प्रस्तुत करने के बाद एमजे कालेज के आयोजन में शरीक होने पहुंची थीं। महाविद्यालय की निदेशक डॉ श्रीलेखा विरुलकर के विशेष आग्रह पर यहां पहुंची अर्पिता ने बताया कि अन्यान्य बच्चों की तरह उनका भी बचपन सामान्य ही था। राजनीति विज्ञान एवं अर्थशास्त्र विषयों के साथ स्नातक करने के बाद उन्होंने अंग्रेजी में एमए किया। इसी दौरान वे खरगौन म्यूजिकल ग्रुप से जुड़ गईं। शादी ब्याह में लोग गाने के लिए बुलाते तो वे चली जातीं। इस समय तक वे पूरी तरह से गीत संगीत और करियर की तैयारी में ही उलझी हुई थीं।
विवाह के बाद उनकी इच्छा खाटू श्याम के दर्शन की हुई। वे जोड़े से मन्नत मांगने वहां पहुंचे। राजस्थान के रिंगस पहुंचने के बाद उन्हें खाटू जाना था। रास्ता पता नहीं था। उस दिन दैवदुर्योग वश बसों की हड़ताल थी। तभी एक अन्य परिवार ने आकर स्वयमेव उन्हें खाटू पहंचाने का प्रस्ताव दिया। दोनों परिवार साथ साथ खाटू पहुंचे। यहां भी उस परिवार ने हाथ पकड़कर उन्हें मंदिर के रेलिंग तक पहुंचा दिया। यहां दर्शन के लिए दर्शनार्थियों को चार भागों में बांटा जाता है। संयोग से ही वे वीआईपी वाली कतार में शामिल हो गईं। भगवान के दर्शन तो सामने से किये ही इसके बाद वहां रखा नगाड़ा भी देखा। कहा जाता है कि नगाड़ों का दर्शन करने से ही दर्शन पूर्ण होता है। इसके बाद भी कई बार खाटू श्याम जाना हुआ, पर पहले हुए दर्शन के मुकाबले ये कुछ नहीं थे। इसलिए उनका मानना है कि पहली बार बाबा ने खुद हाथ पकड़कर दर्शन कराए थे। अब एक ही इच्छा है कि बाबा के साष्टांग दर्शन किये जाएं।
इसका बाद जो कुछ भी हुआ वह दैवीय संयोग की तरह ही हुआ। एक कार्यक्रम में उन्होंने खाटू श्याम की स्तुति की तो लोगों ने उन्हें सिर माथे पर बैठा लिया। यहीं से उनकी दिशा भी तय हो गई। 2016 से वे सिर्फ खाटू श्याम की भक्ति में लीन हैं और उनके ही भजन गाती हैं। आगे की कोई योजना नहीं है। जो भी बाबा की इच्छा होगी, वे हाथ पकड़कर करवा ही लेंगे। उन्होंने स्वयं को पूरी तरह खाटू श्याम को समर्पित कर दिया है। इसके साथ ही उनका नाम भी सार्थक हो गया है।