लता ताई के बिना अधूरा है गायकी का सफर – शैली बिदवईकर
भिलाई। शहर की बेटी शैली बिदवईकर का मानना है कि सुगम संगीत का सफर बिना लता ताई के अधूरा होता है. आप कितना भी पॉप गा लो, फास्ट नम्बर्स कर लो, पर जब तक लता ताई के गीतों को आवाज नहीं दे देते, न आपको सुकून मिलता है और न ही श्रोता को. वे संगीत की देवी थीं, साक्षात मां सरस्वती थीं. उनके गीतों का गाना भी अपनी तरह की एक साधना है. वर्षों बाद भिलाई पहुंची शैली ने महात्मा गांधी कला मंदिर में शनिवार शाम विश्वकर्मा जयंती के उपलक्ष्य में अपनी प्रस्तुति दी. हिन्दी, मराठी, तमिल, तेलुगू और बंगला भाषा में गीत प्रस्तुत कर उन्होंने समा बांध दिया.
कलामंदिर का प्रेक्षागृह शैली के करीबियों से भरा पड़ा था. उसका बचपन यहीं बीता था. शिक्षा दीक्षा डीपीएस में हुई. शहर के नामचीन कलाकार प्रभंजय चतुर्वेदी, दीपेन्द्र हालदार से उन्होंने संगीत की शिक्षा ली है. डीपीएस दुर्ग के प्राचार्य, शिक्षक-शिक्षिकाएं, परिवार के लोग, पुराने सहपाठी, समाज के करीबियों के अलावा शहर के संगीत प्रेमी यहां जुटे थे. इनके बीच आकर शैली अभिभूत हो गई. उसने कहा कि यह वर्षों बाद घर वापसी जैसा है. मुझे लग रहा है कि मैं स्कूल के वार्षिकोत्सव में अपनी प्रस्तुति दे रही हूँ. फर्क केवल इतना है कि स्कूल के मंच पर उन दिनों फिल्मी संगीत की अनुमति नहीं थी.
कलामंदिर के इसी मंच से एक बाल कलाकार के रूप में अपना सफर शुरू करने वाली शैली ने इसके बाद स्टार प्लस के वाइस ऑफ इंडिया, छोटे उस्ताद और सोनी टीवी के उस्तादों के उस्ताद से अपनी पहचान बनाई. आज वे मुम्बई फिल्म इंडस्ट्री की एक जानी पहचानी हस्ती हैं. उनके कई एल्बम रिलीज हो चुके हैं. हाल ही में उनकी नई कृति “कादल विदयी” सामने आई है जो संगीत प्रेमियों के बीच धूम मचा रही है. उन्हें “संयोग द कोइंसिडेंस” में भी सुना जा सकेगा.
शैली से बातचीत टुकड़ों में होती रही. दीपेन्द्र हालदार जी के सौजन्य से पहली मुलाकात विंग्स में हुई. शैली ने कार्यक्रम के बाद वक्त देने का वादा किया. भिलाई इस्पात संयंत्र के क्रीड़ा, मनोरंजन एवं नागरिक सेवा विभाग द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में उन्होंने अपने साथी कलाकार स्वप्निल के साथ कुछ युगल प्रस्तुतियां भी दीं. कार्यक्रम के बाद लगभग एक घंटे तक बीएसपी के अधिकारी, स्कूल के टीचर्स, क्लास मेट्स, मोहल्ले के फैन, परिवार और समाज के लोगों के साथ सेल्फी और फोटो सेशन करने में ही निकल गया. पर इस इंतजार का एक लाभ यह भी हुआ कि उनके व्यक्तित्व के अन्य पहलुओं की तरफ भी ध्यान गया.
कार्यक्रम के बाद शैली बातचीत के बीच उसी चुस्ती और फुर्ती के साथ अपना सामान भी समेटती रही जैसे कोई कुशल गृहिणी घर के सौ काम एक साथ करती है. टुकड़ों में होती रही बातचीत में शैली ने बताया कि संगीत की चर्चा घर पर ही थी. उनके पिता हालांकि सीएसईबी में अधिकारी हैं पर संगीत को भी उतना ही वक्त देते हैं. वे तबला वादन के साथ-साथ कंठशिल्पी भी हैं. यहीं से गायन की तरफ रुचि जागृत हुई और फिर सफर शुरू हो गया. बीएसपी के मंच पर आयोजित होने वाली प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती रही. कलामंदिर के इसी मंच पर उसने बीएसपी की एक संगीत प्रतियोगिता जीती थी. आज उसी मंच पर एक सफल गायिका के तौर पर प्रस्तुति देना, बेहद रोमांचकारी है.
शैली ने इस अवसर पर स्व. लता मंगेशकर एवं स्व केके (कृष्णकुमार कुन्नथ) को उनके गीतों को स्वर देकर श्रद्धासुमन अर्पित किए. जब उनसे पूछा गया कि वे एक के बाद इतने गीत किस तरह गा पाती हैं, जबकि अधिकांश गायक दो या अधिक से अधिक तीम गीतों के बाद कंठ को विश्राम देते हैं तो वह हंस पड़ी. शैली ने कहा कि वह अभी इतनी बड़ी नहीं हुई है. उसे तो लोगों का दिल जीतना है. दर्शकों के दिलों तक पहुंचने का उसके पास एक ही रास्ता है, गीतों का. वह ज्यादा से ज्यादा गीत सुनाने की कोशिश करती हैं. प्रतिदिन रियाज और इस तरह के कार्यक्रमों ने वोकल कार्ड्स को तैयार कर दिया है. जब आवाज थकने लगती है तो वे 10 मिनट का एक ब्रेक ले लेती हैं. इतना वक्त वह चुपचाप बैठ जाती हैं. किसी से बात भी नहीं करतीं और फिर दोबारा मंच पर धमाल मचाने के लिए तैयार हो जाती हैं.
एक सवाल के जवाब में शैली ने कहा कि हालांकि कुछ बालीवुड पत्रिकाएं उन्हें फिल्मी पॉप गायिका के रूप में संबोधित करते हैं पर सच यही है कि पुराने हिन्दी गाने उनके दिल के ज्यादा करीब हैं. इन गीतों के सुर, बोल और तान दिल से दिल का रिश्ता तय कर देते हैं. उनके लिए संगीत खुशियां बांटने का एक जरिया है.