साफ्ट टारगेट होती हैं स्कूल, कॉलेज और हॉस्टल की लड़कियां
भिलाई। स्कूल, कॉलेज और हॉस्टल की लड़कियां यौन उत्पीड़न की सॉफ्ट टारगेट होती हैं. कभी संकोच वश तो कभी समाज या परिवार के डर से वे चुप रहती हैं. वे विरोध भी करती हैं तो तभी जब पानी नाक से ऊपर आ जाता है. न तो वे घर वालों से कुछ कह पाती हैं और न ही पुलिस द्वारा उपलब्ध कराई गई सुविधाओं का लाभ उठाती हैं.
ये बातें एमजे कालेज फार्मेसी विभाग की छात्र-छात्राओं ने कहीं. कम्यूनिकेशन स्किल के तहत समूह चर्चा के लिए उन्हें यही विषय दिया गया था. उन्होंने विभिन्न प्रकार के यौन उत्पीड़नों की चर्चा करते हुए कहा कि लड़कियां केवल इसलिए चुप रहती हैं कि कहीं बात सार्वजनिक न हो जाए, कहीं परिवार वाले पढ़ाई न छुड़वा दें, कहीं जग हंसाई न हो जाए. कुछ मामलों में वे इसलिए चुप रहती हैं कि कहीं इससे उनकी पढ़ाई-प्रैक्टिकल या सेशनल मार्क्स न खराब हो जाएं.
आरती यादव और करिश्मा ने कहा कि प्रैक्टिकल और सेशनल मार्क्स के लिए लड़कियां एक हद तक सबकुछ बर्दाश्त करती हैं. खुशबू ने कहा कि विरोध करना या न करना परिस्थिति पर निर्भर करता है. रक्षा ने कहा कि घर से दूर हास्टल में रहकर पढ़ने वाली लड़कियां छात्रावास अधीक्षकों तथा सीनियर्स के हाथों यौन उत्पीड़न का शिकार होती हैं. पर दूसरा उपाय नहीं होने के कारण चुप रहती हैं. स्वाति सोनी ने कहा कि लड़कियों के चुप रहने से अपराधियों के हौसले बढ़ते हैं. इसलिए समय रहते आवाज उठानी चाहिए. पूजा ने भी उसकी बात का समर्थन किया.
वहीं छात्र राहुल ने कहा कि सभी एक जैसे नहीं होते. किसी भी प्रकार के खऱाब बर्ताव की शिकायत अपने साथियों से और फिर सामूहिक रूप से उच्च अधिकारियों से करनी चाहिए. वक्त बदल गया है. आज समाज पीड़ित का साथ देता है. आकाश ने भी राहुल का समर्थन करते हुए कहा कि समस्या को अपने मित्रों के साथ साझा करना चाहिए. हिमांशु ने कहा कि किसी भी प्रकार के उत्पीड़न का विरोध करना चाहिए. दोस्तों की मदद लेनी चाहिए. अकेले में घुटघुटकर आत्महत्या करने से अच्छा है कि हम डटकर सामना करें और दोषी को सजा दिलाएं.
छात्रा दामनी और खुशबू ने कहा कि अकसर ऐसी बातों को परिवार वाले या तो मानते ही नहीं और मानते भी हैं तो चुप रहने के लिए कहते हैं. लड़कियां अकेली पड़ जाती हैं. वहीं कामिनी ने कहा कि आज की लड़कियां एक हद तक ही बर्दाश्त करती हैं. इसके बाद वह चण्डी का रूप धारण कर लेती है. पायल, लक्ष्मी और करीना ने कहा कि समाज भी अकसर लड़की को ही दोषी ठहराता है. इसलिए लड़कियां जब तक संभव हो सबकुछ बर्दाश्त कर लेती हैं. वहीं रंजना ने कहा कि कभी कभी परिवार से जुड़े लोग ही गंदी हरकत करते हैं पर संबंधों को बचाने के लिए वे चुप रहती हैं.
समूह चर्चा का निष्कर्ष यही निकला कि अधिकांश छात्राओं को अपने अधिकारों का और कानूनों की जानकारी तो है पर वे विशेष परिस्थितियों में ही उसका उपयोग करती हैं. एक छात्रा ने छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा बनाए गए अभिव्यक्ति ऐप की जानकारी दी तथा सभी छात्राओं को इसे डाउनलोड करके रखने को कहा.