MJ College trip to Gidhwa Parasda Bird Sanctuary

प्रवासी पक्षियों को मेहमान मानते हैं यहां के लोग, नहीं करते उनका शिकार

एमजे कालेज का भ्रमण दल पहुंचा गिधवा परसदा, की ग्रामीणों से बातचीत

भिलाई। एमजे कालेज का भ्रमण दल शनिवार को छत्तीसगढ़ के प्रथम एवं एकमात्र प्रवासी पक्षी विहार स्थल पहुंचा. गिधवा-परसदा और उसके आसपास के पांच-छह गांवों में नवम्बर से मार्च तक प्रवासी पक्षियों के मेला भरता है. स्थानीय ग्रामीण इन विदेशी पंछियों को अपना मेहमान मानते हैं तथा उनका शिकार करना तो दूर, उनके विहार में किसी भी प्रकार का विघ्न नहीं डालते. बल्कि ऐसा करने वालों पर गांव वाले डांड भी लगाते हैं. छत्तीसगढ़ की पहुना संस्कृति की यह एक जीवंत मिसाल है.
बेमेतरा जिले के नवागढ़ तहसील स्थित गिधवा-परसदा, नगधा, एरमशाही, बुन्देली आदि क्षेत्र जलीय एवं स्थल जैव विविधता से परिपूर्ण हैं. यह क्षेत्र पारिस्थितिकीय व स्वस्थ्य पर्यावरण के लिये उपयुक्त है. लगभग छह किलोमीटर भौगोलिक विस्तार के साथ यह स्थल मुख्यतः जलीय नमी युक्त क्षेत्र है. गिधवा-परसदा में दो बड़े तथा दो मध्यम आकार के जलाशय हैं, नजदीकी ग्राम एरमशाही में भी पांच जलाशय स्थित हैं. गिधवा-परसदा जलीय तंत्र में भरपूर जलीय खाद्य वनस्पति व जीव होने के कारण प्रवासी पक्षियों के लिए यह पसंदीदा स्थल होता है. अध्ययनों में यहां पक्षियों की कुल 143 प्रजातियां पाई गई हैं. इनमें 26 स्थानीय, 11 विदेशी प्रवासी प्रजातियां तथा 106 स्थानीय आवासीय प्रजातियां पक्षी पायी गयी हैं.


छत्तीसगढ़ की विरासत एवं सांस्कृतिक परम्पराओं से विद्यार्थियों का परिचय कराने के लिए महाविद्यालय की निदेशक डॉ श्रीलेखा विरुलकर के निर्देश पर इस भ्रमण का आयोजन किया गया था. प्राचार्य डॉ अनिल कुमार चौबे के मार्गदर्शन में आयोजित इस भ्रमण दल में 60 से अधिक सदस्य शामिल थे. महाविद्यालय की राष्ट्रीय सेवा योजना की सहायक कार्यक्रम अधिकारी शकुन्तला जलकारे के नेतृत्व में गए इस दल में बायोटेक की एचओडी सलोनी बासु एवं दीपक रंजन दास ने भी भागीदारी दी.
विद्यार्थियों ने जब ग्रामीणों से प्रवासी पक्षियों के बारे में जानना चाहा तो उनका कहना था कि इस वीरान इलाके को प्रवासी पक्षी अपने कलरव से मुखर कर देते हैं. स्वर्ग जैसा आनंद मिलता है. इनमें से अधिकांश की आवाजें बत्तखों और हंस से मिलती जुलती है. पक्षी जलक्रीड़ा करते, भोजन करते इतना कोलाहल करते हैं कि उससे देखने-सुनने के लिए वे घंटों इन इलाकों में बैठे रहते हैं. इन पक्षियों के जीवन में कोई विघ्न न पड़े इसलिए यहां पटाखे फोड़ना तक वर्जित है. अगर किसी ने इनपर पत्थर भी फेंका तो गांव वाले उनपर दंड लगा देते हैं. पक्षी का शिकार करने पर 500 रुपए तक का दंड लगाया जाता है. वे हमारे पहुना हैं, इनका भोजन, विश्राम और सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है. यह उनका भी गांव है जहां वे बिना रास्ता भटके साल में एक बार जरूर आते हैं.

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