This temple depicts rare events from Puranas

ब्रह्मा और विष्णु इस मंदिर में तलाश रहे शिवलिंग का छोर

पौराणिक काल का एक प्रसंग है. एक बार विष्णु और ब्रह्मा में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया. स्कंदपुराण में यह प्रसंग आता है. शिवजी ने दोनों की परीक्षा ली. ब्रह्मा के पक्ष में केतकी के फूल ने झूठी गवाही दी. शिवजी ने उसे श्राप दे दिया कि अब उसका उपयोग शिवलिंग के अभिषेक में कभी नहीं होगा. इस प्रसंग को दर्शाती एकमात्र प्रतिमा छत्तीसगढ़ के रतनपुर के महामाया मंदिर में संरक्षित है. सन 1045 में निर्मित इस मंदिर में अनेक पौराणिक प्रसंगों को चित्रित किया गया है.
स्कंद पुराण के अनुसार भगवान विष्णु और ब्रह्मा में अपनी अपनी श्रेष्ठता को लेकर बहस हो गई. वे शिवजी के पास पहुंचे. शिवजी ने दोनों की परीक्षा लेने की सोची. उन्होंने एक प्रचंड ज्योतिर्मय लिंग प्रकट कर दिया. यह इतना विशाल था कि इसका ओर-छोर दिखाई नहीं देता था. उन्होंने ब्रह्मा और विष्णु से कहा कि जो पहले इसके पाद या मस्तक देखकर लौटेगा, वही विजयी होगा. ब्रह्मा हंस रूप में शिवलिंग का मस्तक देखने उड़ चले वहीं विष्णु वराह रूप में शिवलिंग का आधार तलाशने निकल पड़े.
भगवान विष्णु और ब्रह्मा की यह तलाश 10 हजार वर्षों तक जारी रही जिसके बाद थक-हार कर वे शिवजी के पास लौट आए. ब्रह्मा ने लौटकर झूठ बोल दिया कि उन्होंने शिवलिंग का शीर्ष भाग देख लिया है. केतकी के पुष्प ने उनके पक्ष में गवाही दी. शिवजी को पता था कि ब्रह्मा झूठ बोल रहे हैं और केतकी की गवाही भी झूठी है. उन्होंने केतकी को श्राप दे दिया कि अब कभी भी उससे शिवलिंग का अभिषेक नहीं किया जा सकेगा. स्कंद पुराण के इस प्रसंग को दर्शाती दुनिया की एकमात्र प्रतिमा रतनपुर के महामाया मंदिर कुंड के दूसरी ओर बने कंठी देऊल मंदिर में संरक्षित है. इसमें ब्रह्मा हंस रूप में और विष्णु वराह रूप में विद्यमान हैं.
जब रावण ने शिवलिंग पर अर्पित किये थे शीश
एक अन्य पौराणिक प्रसंग में रावण के शीशदान को चित्रित किया गया है. रावण शिवजी के उत्कट उपासक थे. रावण प्रकाण्ड संगीतज्ञ थे. एक बार जब वे शिवजी की स्तुति में वीणा वादन कर रहे थे तो उसका तार टूट गया. उन्होंने तत्काल अपनी भुजा की एक नस को खींचकर वीणा पर चढ़ा दिया और संगीत के लय-ताल को टूटने नहीं दिया. शिव तांडव स्त्रोतम् की रचना भी रावण ने ही की थी. इसी रावण ने एक बार शिवजी की भक्ति में लीन होकर अपने शीश अर्पित कर दिये थे. रतनपुर के गज किले के प्रवेश द्वार पर यह प्रसंग अंकित है. इसमें शिवलिंग पर रावण के पांच-छह शीश (सिर) को चढ़ाया हुआ दिखाया गया है.


गंडई का अनूठा शिव मंदिर
राजनांदगांव के गंडई में स्थित 11 वीं सदी के शिव मंदिर में एक अनूठी प्रतिमा है. मंदिर के प्रवेश द्वार के ऊपर शिव के वाहन नंदी की पूजा पांचों पांडव और द्रौपदी, कुंती और माद्री कर रहे हैं. इस प्रतिमा के नीचे युधिष्ठिर को धर्मराज लिखा गया है. पांडवों के नंदी पूजन की प्रतिमा अद्वितीय है.

Pic Credit : bhaskar.com

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