Super Flop Bio-Diesel Scheme of Chhattisgarh

इस सुपर-फ्लॉप योजना पर सरकार ने फूंक दिये 3-4 सौ करोड़

रायपुर। छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने एक सुपर फ्लॉप योजना पर करोड़ों रुपए फूंक दिये थे। 2005 में इस योजना पर काम शुरू हुआ और 2016 में अफसरों ने स्वीकार कर लिया कि यह योजना पूरी तरह फ्लॉप हो गई है। पर किसी जिम्मेदार पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। योजना से जुड़ी कंपनियां गायब हो गईं और किसी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। इस सुपर फ्लॉप योजना का नारा था – ‘डीजल नहीं अब खाड़ी से, डीजल मिलेगा बाड़ी से।’
बाड़ी में डीजल पैदा करने के लिए प्रदेशभर में एक लाख 65 हजार हेक्टेयर सरकारी जमीन पर रतनजोत के 27.74 लाख पौधे लगाए गए थे। सरकार ने दावा किया था कि 2014-15 तक रतनजोत योजना डीजल के मामले में आत्मनिर्भर कर देगा। पर हकीकत यही है कि इन पौधों से एक बार भी बीज की तुड़ाई नहीं हुई। रतनजोत के फल और बीज खाकर स्कूली बच्चे बीमार पड़ते रहे, मरते रहे।
बायोडीजल की टाइमलाइन
साल 2003 में बायोडीजल का कंसेप्ट आया। 2005 में छत्तीसगढ़ बायोफ्यूल डेवलपमेंट अथॉरिटी (सीबीडीए) का गठन किया। 2008 में क्रेडा ने इंडियन ऑल कॉर्पोरेशन लिमिटेड और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड के साथ एग्रीमेंट साइन किया। इन पेट्रो कंपनियों को जमीन लीज पर दी गईं। 6 हजार हेक्टेयर में पौधरोपण किया गया। कृषि, वन, उद्यानिकी, पंचायत एवं ग्रामीण विकास के तहत भी लाखों पौधे रोपे गए। रोजगार गारंटी समेत सभी सरकारी योजनाओं के तहत रतनजोत के पौधे ही रोपे गए। 2010 में कुछ दिनों तक पूर्व मुख्यमंत्री की गाड़ी बायोडीजल से चली। फिर बायोडीजल मिला ही नहीं। 2010 में वन विभाग ने अपने पौधा रोपण की सूची से रतनजोत को बाहर कर दिया। 24 अगस्त 2016 में विधानसभा की लोकलेखा समिति के समक्ष अफसरों ने इस योजना के असफल होने स्वीकारा है। जिन कंपनियों के साथ एग्रीमेंट हुआ, वे भाग गईं। उन पर कोई कार्रवाई भी नहीं हुई।

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