नाट्य कलाकारों के दशावतार (3)
गतांक से आगे …4 – नरसिंह अवतार ….. ये कलाकार हमेशा बहस के मूड में रहते हैं। शाम के वक्त रिहर्सल के समय ये अपने रौद्र रूप में निर्देशक को रिहर्सल रूम की देहरी पर फाड़कर मार डालने की हद तक बहस करते हैं। ये अपने गंभीर, मरने के , रोमेंटिक दृश्य वाले रोल को भी रौद्र रस से सराबोर कर देते हैं। अपनी रौद्र रस संवाद अदायगी के बाद ये दर्शकों को शांत बैठा देखकर आखें लाल करके गुस्से से घूरते हैं कि…. हे मुरख नादान दर्शकों तालियां क्यों नहीं बजा रहे हो??
कुछ नरसिंह अवतारी कलाकार अपने ताली बजाने वालों का खुद इंतजाम कर लेते हैं। इस मामले में इन्हे आत्मनिर्भर कहा जा सकता है।
5 ) वामन अवतार – ये अपने तीन डगों में पूरी नाट्य विधा को नाप लेने का दंभ भरते हैं। ये विश्व स्तरीय नाट्य लेखकों , निर्देशकों के नाम ….आयनेस्को , यूजीन ओ नील , ब्रेटोल्ट ब्रेख्ट , गोर्की , चेखव , बादल दा , विजय तेंदुलकर , फ्रांट्स काफ्का , डारियो फो , मोहन राकेश , कालीदास , भास , भारती , भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाम हनुमान चालीसा जैसे दन दना दन बोलकर पहले तीन अवतार कलाकारों को प्रभावित करने में सफल होते हैं। इस बुद्धिकोशल की वज़ह से निर्देशक आने के पूर्व सारे कलाकार इनकी डींगे सुनकर ज्ञान प्राप्त करते हैं। ये नाट्य दल तोड़ देने की क्षमता रखते हैं। सावधान …..!
6 ) परशुराम अवतार – तुनक मिजाजी ये कलाकार अपने रोल को छोड़ कर सबके किरदारों में अपनी टांग अड़ाते हैं। कितना ही महत्वपूर्ण रोल इनको दो ये संतुष्ट नहीं हो सकते। परेशान होकर कई बार निर्देशक कह देता है…यार तू ही डायरेक्ट कर ले। उस दिन ये पूरी टीम को चाय पिलाते हैं। … दूसरे दिन फिर बहस ….कभी कभी तो वे निर्देशक और कलाकार को मारने पर उतारू हो जाते हैं। हमेशा इनकी भृकुटियां तनी हुई रहती हैं। बिना झंझट के ये संस्था नहीं त्यागते ।
नाट्य मंचन के समय ये अक्सर प्रेस , फोटोग्राफर , मेक अप मेन , लाइट वालों , माइक वालों से उलझते दिखाई देते है …ताकि दर्शक ये महसूस करें कि ये भी कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति है। इनके पास हमेशा …..”अरे कई संस्था वाले पीछे पड़े हैं ” का फरसा हमेशा मौजूद रहता है।
( चौथी किश्त कल )