गुस्ताखी माफ : जब गुरू करे शिष्या से गंदी बात
बातें हैं बातों का क्या…! किसी की अच्छी बात गंदी लगती है तो किसी-किसी की गंदी बात भी अच्छी लगने लगती है. गंदी बात कभी-कभी मजे की बात भी बन जाती है. कभी सच्ची बात चुभती है तो कभी झूठी बात भी भाने लगती है. यह सब स्थान-काल-परिस्थिति और व्यक्तिविशेष पर निर्भर करता है. बातें किसकी अच्छी लगेंगी और किसकी बुरी, यह मनुष्य का पूर्वाग्रह तय करता है. जिस बात को लेकर मां पर झल्लाया जा सकता है, वही बात प्रेमिका कहे तो आदमी बिछ जाता है. पर बात यहां गुरू-चेले की हो रही है. छत्तीसगढ़ कराटे एसोसिएशन के अध्यक्ष पर आरोप लगा है कि वह खिलाड़ियों से गंदी बात करता है. अश्लील मैसेज, फोटो और वीडियो भेजता है. ऐसी बातें बड़ी और गंभीर हो सकती हैं. मुंह से कही गई बात से तो फिर भी मुकरा जा सकता है, पर गंदी बात का मैसेज, फोटो और वीडियो भेजना तो सबूत छोड़ जाता है. आईटी एक्ट के तहत भी यह जुर्म है. ऐसा किया है तो सजा भी भुगतनी पड़ेगी. अब पुलिस उसके साथ गंदी बात करेगी. मीडिया भी कर सकती है. सोशल मीडिया पर जो धुनाई होगी, वह अलग. वैसे खिलाड़ियों के साथ गंदी बात करने का यह कोई पहला मामला नहीं है. ऐसे आरोप कोच से लेकर टीम मैनेजर, सेलेक्शन बोर्ड के अधिकारियों से लेकर फेडरशन के खूसटों तक, सभी पर लगते रहे हैं. दिल्ली के जंतर-मंतर पर देश की नामचीन कुश्ती खिलाड़ी मोर्चा खोले बैठी हैं. उन्होंने गंदी बात के साथ-साथ नाबालिग खिलाड़ियों के दैहिक शोषण का भी आरोप लगाया है. अब तक खेलों के संचालक ही करियर खराब करने की धमकी देकर अपनी जायज-नाजायज बातें मनवाते रहे हैं. पर नए कानूनों की मौजूदगी में उनका यह दांव उलटा पड़ सकता है. महिला खिलाड़ियों से गंदी बात खुद खूसटों का करियर खराब कर सकती हैं, उनके सामाजिक और पारिवारिक जीवन को नर्क बना सकती हैं. वैसे, इस मामले में देश की पहली अंतरराष्ट्रीय महिला पहलवान की टिप्पणी आई है. विदेश में सेटल हो चुकी इस खिलाड़ी ने कहा है कि किसी भी एथलीट या खिलाड़ी के साथ बलात्कार करना संभव नहीं है. फिर ये लड़कियां तो पहलवान हैं. अवश्य उनकी सहमति रही होगी. हो सकता है, वह सही कह रही हों पर मोहतरमा भूल रही हैं कि प्रलोभन देकर, धमकी देकर या बलपूर्वक ली गई सहमति को सहमति नहीं माना जाता. ऊपर से इस मामले में नाबालिग लड़कियां शामिल हैं जो किसी भी स्थिति में अपनी सहमति नहीं दे सकतीं. ऐसे मामलों में पीड़ित के बयान को ही परिस्थितजन्य साक्ष्य के आधार पर सबूत मान लिया जाता है. देश का खेल ढांचा ही ऐसा है कि इसमें कोच, फेडरेशन और आयोजक की भूमिका सबसे बड़ी होती है. फेडरेशन बहुत ज्यादा ताकतवर है. बिना कोई परिणाम दिये भी फेडरेशन में जमे हुए लोग सालों-साल वहां बने रह सकते हैं. खिलाड़ियों का भविष्य उनकी मर्जी पर निर्भर होता है. इसीलिए तो ‘चक दे इंडिया’ में एक खिलाड़ी कोच के आगे जिप खोलने लगती है. पर यह ‘कश्मीर फाइल’ या ‘केरला स्टोरी’ नहीं है. इसीलिए इसपर कोई बवाल नहीं उठता. सनातन कलंकित नहीं होता.