Tamor Pingla Reserve sets example of Co-Existence

गुस्ताखी माफ : सह अस्तित्व का सिद्धांत इसलिए जरूरी

कभी राजा अपने दलबल के साथ शिकार खेलने के लिए जंगल जाता था. अब भालू, हाथी, बाघ, तेंदुआ भोजन की तलाश में गांव आते हैं. हाथियों को गांव और खेत-खलिहान से दूर रखने के लिए तमाम कोशिशें की जाती हैं. वन विभाग ने सोलर बिजूका, करेंट फेंसिंग, मधुक्खी बक्सा, सबकुछ करके देख लिया, कोई फायदा नहीं हुआ. दरअसल, हम इंसानों की फितरत ही ऐसी है. हमें दूध चाहिए पर गाय भैंस नहीं. शेर, भालू, चीता, हाथी चाहिए पर जंगल नहीं. हमें सिर्फ चाहिए, और चाहिए. यह भूख कभी मिटती नहीं. जब जंगली जानवर भोजन की तलाश में गांव घुसते हैं तो जान-माल का नुकसान भी होता है. इसलिए हम हाथियों को भगाने के लिए कभी-कभी उनकी जान भी ले लेते हैं. किसी भी समस्या को इस तरह खत्म नहीं किया जा सकता. क्या किया जा सकता है, क्या करना चाहिए, इसका नजीर पेश किया है सूरजपुर के तमोर पिंगला वन विभाग ने. 607 वर्ग किमी के इस जंगल में पिछले 7-8 सालों में विशाल चारागाह क्षेत्र तैयार किये गये हैं. बरगद, पीपल, मोयन, कटहल और गलगला जैसे पेड़ लगाए गए हैं. यहां पानी की भी पर्याप्त व्यवस्था है. इसलिए अब यहां हाथियों की आबादी 22 से 70 हो चुकी है. ये हाथी जंगल छोड़कर बाहर जाते, जरूरत भी नहीं है. दो पैर वाले जानवर से कौन पंगा लेना चाहेगा. इस प्रयोग ने सह-अस्तित्व के सिद्धांत को भी सिद्ध कर दिया है. जब तक उभय पक्ष की जरूरतें नहीं समझी जाएंगी, केवल भगाओ, भगा-दो, मार दो के नारों से कुछ नहीं होने वाला. हमने हाथियों की जरूरत समझी, हाथियों ने हमें अकेला छोड़ दिया. परियोजना की सफलता ने वन विभाग को इतना उत्साहित कर दिया कि अब गुरु घासीदास अभयारण और तमोर पिंगला सेंचुरी को मिलाकर टाइगर रिजर्व बनाने की योजना बनाई जा रही है.

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