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साइंस कालेज में भारतीय ज्ञान परंपरा पर फैकल्टी डेव्हलपमेंट प्रोग्राम

दुर्ग। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंशा के अनुरूप भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में भारतीय ज्ञान परंपरा का अनुकरण करने के दृष्टिकोण से महाविद्यालय द्वारा प्रथम चरण में सात दिवसीय फैकल्टी डेव्हलपमेंट प्रोग्राम का शुभारंभ किया गया. इसका उद्देश्य भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनः वैज्ञानिक पध्दति से सत्यापित करते हुए स्थापित करना है. इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को नया आयाम दिया जा सकेगा.
महाविद्यालय का मानना है कि भारतीय ज्ञान परपंरा हेतु सर्वप्रथम शिक्षकों को प्रशिक्षित करना आवश्यक है। अतः प्रशिक्षण हेतु आगामी 7 दिनों में निम्नलिखित विशेषज्ञों को देश के विभिन्न भागों से आमंत्रित किया गया है – प्रो. राजीव प्रकाश, आईआईटी, भिलाई, डाॅ. राकेश मिश्रा, कामधेनु विश्वविद्यालय दुर्ग, प्रो. कृष्ण कुमार पाण्डेय कवि कुलगुरू काली दास संस्कृत विश्वविद्यालय महाराष्ट्र, डाॅ. यशवन्त अठभैया, कामधेनु विश्वविद्यालय दुर्ग, डाॅ. रूद्र भंडारी, पंतजलि विश्वविद्यालय, हरिद्वार, डाॅ. के.एस. लद्धा, मुंबई, प्रो. एम. अब्दुल करीम, बंगलुरू, डाॅ. सुब्रमण्या कुमार, के. बंगलुरू, डाॅ. व्ही.एम. पेन्डसे, नागपुर, डाॅ. ओ.पी. पाण्डेय, नई दिल्ली, प्रो. मधुसूदन पिना, महाराष्ट्र एवं डाॅ. बी.एच. हरिनाथ, पुणे।
20 से 27 सितम्बर 2023 तक आयोजित यह कार्यक्रम शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय के जैव-प्रौद्योगिकी, रसायन शास्त्र व भौतिक शास्त्र विभाग द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया जा रहा है। कार्यक्रम के प्रथम दिन प्राचार्य डाॅ. आर.एन. सिंह आईआईटी भिलाई के निदेशक, प्रोफेसर राजीव प्रकाश, डाॅ. राकेश मिश्रा, कामधेनु विश्वविद्यालय दुर्ग, डाॅ. प्रज्ञा कुलकर्णी, सूक्ष्मजीव विज्ञान, शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, दुर्ग से उपस्थित रहें। डाॅ. अनिल कुमार श्रीवास्तव ने प्रोग्राम पर प्रकाष डाला। साथ ही रूसा को धन्यवाद दिया। इस प्रोग्राम को आयोजन करने में डाॅ. आर.एन. सिंह प्राध्यापक, शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, दुर्ग ने नई षिक्षा नीति में प्ज्ञै पर ध्यान देनी की बात कही। मैकाले ने भी भारतीय ज्ञान परंपरा के दम पर भारत को विष्वगुरू माना।
डाॅ. राजीव प्रकाश, निदेशक, आईआईटी भिलाई ने आईकेएस की जरूरत पर प्रकाश डाला। आईकेएस के संक्रमण बाहरी आंगुतकों द्वारा होने पर आईकेएस पर पुनः जाने की आवश्यकता है। चन्द्रमा में कम बजट पर रोवर उतारना-भारतीय ज्ञान परंपरा, अपने ज्ञान पर शर्व करना बहुत जरूरी है। डाॅ. राकेश मिश्रा, कामधेनु विष्वविद्यालय, दुर्ग ने छत्तीसगढ़िया, मातृभाषा से उद्बोधन प्रारंभ किया। पंचगव्य-का महत्व बताते हुए उन्होंने गायों के नर्वस सिस्टम को समझाया। संस्कृत के श्लोक को आईकेएस से जोड़ते हुए एफडीपी को एकसाम्य किया।
डाॅ. प्रज्ञा कुलकर्णी, शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, दुर्ग ने अपनी 10 दिनों की नागपुर में आयोजित भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित प्रशिक्षण के ज्ञान को प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा सिर्फ परम्परा हो नहीं वरन एक रिवाज है जो कि कुछ पीढ़ियों दर पीढ़ियों तक पुनरावृत्ति न होने के वजह से इस परम्परा को नई शिक्षा नीति में अनिवार्य कर दिया है। डाॅ. अस्थाना ने संस्कृति, कल्चर, पुरातन ज्ञान को उदाहरण के साथ बता सभी को जागरूक किया। डाॅ. जगजीत कौर ने विभिन्न उद्वरणों के साथ दर्षन, ज्ञान, विद्या के संबंध को समझाया। डाॅ. ए.के सिंह ने प्रोग्राम के अंत में सभी को धन्यवाद ज्ञापन दिया। कार्यक्रम का सुसंचालन डाॅ. कुसुमांजलि देषमुख ने किया।

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