Will Ummeed be able to deliver

स्टूडेंट सुइसाइड : क्या खरा उतरेगी “उम्मीद”

2011 से 2021 के बीच विद्यार्थियों की आत्महत्या के मामलों में 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. ये आंकड़े एनसीआरबी ने जारी किये हैं. मेडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी के लिए मशहूर कोटा शहर में इस साल अब तक 27 विद्यार्थियों ने आत्महत्या कर ली है. केन्द्र सरकार ने इन बढ़ते मामलों का संज्ञान लिया है. सरकार ने इसके लिए “उम्मीद” गाइडलाइन की घोषणा कर दी है. “उम्मीद” के तहत विद्यार्थियों को तनाव से बचाने और नकारात्मकता को दूर करने की सामूहिक जिम्मेदारी निश्चित की गई है. यह जिम्मेदारी पालक, शिक्षक एवं स्कूल प्रबंधन की होगी कि वे विद्यार्थी में तनाव के स्तर की निगरानी करें और समय पर हस्तक्षेप करें. इसके तहत स्कूलों को वेलनेस टीम बनानी होगी जिसमें वाइस प्रिंसिपल, हेडमास्टर, शिक्षक, विद्यार्थी, वार्डन, अभिभावक और काउंसलर शामिल होंगे. अच्छा लगता है कि देश का शीर्ष नेतृत्व विद्यार्थियों के मानसिक तनाव के प्रति संवेदनशील है. वह विद्यार्थियों को तनाव मुक्त करना चाहता है. पर कैसे? इसका उसे कोई अंदाजा तक नहीं है. देश में बहुत कम ढंग की नौकरियां रह गई हैं. इन तक पहुंचने के लिए लोग शीर्ष संस्थानों में प्रवेश लेना चाहते हैं. माना कि पिछले कुछ वर्षों में मेडिकल, इंजीनियरिंग और प्रबंधन के शीर्ष संस्थानों की संख्या में वृद्धि हुई है पर यह आबादी के मुकाबले कुछ भी नहीं है. इसलिए इन संस्थानों में प्रवेश के लिए विद्यार्थी जद्दोजहद करता है. कई बार परिवार इसके लिए कर्ज लेने को मजबूर हो जाते हैं. 17-21 आयुवर्ग का विद्यार्थी बेहद संवेदनशील होता है. उसे परिवार की दिक्कतें और अपनी असफलता दोनों मिल कर कचोटती हैं. शिक्षा और सख्ती को लेकर जनमत भी बंटा हुआ है. एक तरफ वो लोग हैं जिन्हें लगता है कि विद्यार्थी को इस उम्र में हैण्ड-होल्डिंग की जरूरत होती है. कदम-कदम पर उसे यह प्रतीत होना चाहिए को शिक्षक और माता-पिता उसके साथ हैं, सफलता में भी और विफलता में भी. वहीं दूसरी तरफ वो लोग हैं जो विद्यार्थियों को लगातार केवल इसलिए प्रताड़ित करते रहना चाहते हैं ताकि वह भावी जीवन की मुश्किलों के लिए तैयार हो सके. ऐसे लोग “सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट” की अवधारणा में भी यकीन करते हैं. उन्हें लगता है कि जो डर गया वह तो समझो वैसे ही मर गया. विद्यार्थियों को कोई यह नहीं बताता कि अच्छी नौकरी के लिए डाक्टर या इंजीनियर बनना एकमात्र विकल्प नहीं है. शिक्षक, व्याख्याता, प्राध्यापक से लेकर प्रशासनिक सेवाओं तक में इसके समानांतर सम्मान और उपार्जन के सैकड़ों विकल्प उपलब्ध हैं. दरअसल, जिसकी लगभग पूरी जिन्दगी किताब चाटते बीती हो, उसके उद्यमी बनने की संभावना बहुत कम होती है. ढूंढता तो वह नौकरी ही है चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों न हो. वैसे भी हमारी शिक्षा पद्धति केवल विषय पढ़ाती और रटाती है. उच्च शिक्षित बोदा बच्चा नौकरी के नाम पर भी ठगा जाता है. जरूरत विद्यार्थियों के साथ-साथ पूरे देश का माइंडसेट बदलने की है.

Display pic credit : royalharbinger.com

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