अपने भक्तों से आखिर क्या कहना चाहती हैं मल्हार की मां डिडनेश्वरी
बिलासपुर जिले का एक छोटा सा कस्बा है मल्हार. अरपा, लीलागर और शिवनाथ नदी के बीच बसा मल्हार कभी कलचुरियों का गढ़ रहा है. यहां मां डिडनेश्वरी देवी का प्रसिद्ध मंदिर है. इस मूर्ति से एक खास तरह की ध्वनि निकलती है जिसे लोग माता रानी का चमत्कार मानते हैं. भक्तों का मानना है कि मां उनसे कुछ कहती हैं जिसे केवल वही समझ सकता है जो आध्यात्मिक रूप से मां से जुड़ा हो. 1991 में जब यह मूर्ति चोरी हो गई तो कई घरों में चूल्हे नहीं जले. लोगों ने बाजार हाट को भी बंद कर दिया. जब डेढ़ माह बाद मूर्ति वापस लौटी तब जाकर मल्हारवासियों ने चैन की सांस ली.
डिडनेश्वरी देवी की मूर्ति कलचुरी संवत 900 की है. डिडिनदाई का शाब्दिक अर्थ छत्तीसगढ़ी में कुमारी देवी होता है. काले ग्रेनाइट से बनी मां डिडनेश्वरी प्रतिमा कुंवारी रूप में शिव को पति के रूप में पाने के लिए तपस्या रत हैं. पद्मासन में विराजित देवी के नेत्र मुंदे हुए हैं. मल्लासुर दैत्य का संहार करने वाले शिवर का एक नाम मल्लारी भी है जिनके नाम पर नगर मल्हार कहलाया. देवी कलचुरि राजवंश की आराध्या भी रही. मल्हार को राजा वेणु ने बसाया था. देवी की कृपा से राजा वेणु का यश देवलोक तक जा पहुंचा और तब राजा वेणु के प्रताप से ही मल्हार में कंचन की बारिश हुई थी.
यहां छत्तीसगढ़ सहित देशभर से लोग दर्शन के लिए पहुंचते हैं. चैत्र और शारदीय नवरात्रि में यहां विशेष पूजा अर्चना होती है. बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. 1985 से हर वर्ष यहां पर मल्हार महोत्सव का आयोजन भी किया जाता है. मंदिर की देखरेख के लिए छत्तीसगढ़ शासन द्वारा लोक न्यास ट्रस्ट मां डिडिनेश्वरी मंदिर का गठन किया है.
मंदिर का निर्माण 10वीं से 11वीं सदी के बीच कलचुरि शासकों ने करवाया. प्राचीन मंदिर ध्वस्त हो चुका था. 1954 में निषाद समाज ने मंदिर का जीर्णोद्धार किया. सन 2000 में मंदिर का नये सिरे से जीर्णोद्धार किया गया. इसके बाद गर्भगृह का नए सिरे से निर्माण किया गया. जीर्णोद्धार के बाद गर्भगृह में विष्णु के 24 अवतारों में से एक वामन अवतार की स्थापना की गई. आसपास की दीवारों पर नृत्यरत पार्वती, कुबेर, सरस्वती, नटराज शिव, प्रेमी युगल अप्सराएं एवं शिवजी की मूर्तियों में कलचुरी काल का वैभव झलकता है.
जब चोरी हो गई थी मां डिडनेश्वरी की प्रतिमा
साल 1991 के अप्रैल माह की 19 तारीख को मां डिडनेश्वरी की प्रतिमा चोरी चली गई. देर रात चोरों ने मंदिर में सो रहे पुजारी और उसके दामाद से पिस्तौल अड़ाकर मंदिर खुलवा लिया. फिर उन्हें मंदिर के भीतर बंधक बना दिया और मूर्ति लेकर फरार हो गए. तब इस मूर्ति की कीमत 14 करोड़ रुपए आंकी गई थी जो आज बढ़कर 20 करोड़ रुपए से अधिक हो चुकी है. प्रतिमा की चोरी के बाद मल्हार में मातम पसर गया. कई घरों में चूल्हे नहीं जले. दुकानें, हाट बाजार बंद हो गए. अखंड जसगीत कीर्तन शुरू हुआ जो प्रतिमा के मिलने तक जारी रहा. चोर इस प्रतिमा को यूपी ले गए थे. बिलासपुर पुलिस ने उनका पता लगाकर मूर्ति बरामद कर ली. 31 मई को ये मूर्ति वापस बिलासपुर पहुंची. बिलासपुर से मल्हार तक ये प्रतिमा एक विशाल जुलूस के रूप में पहुंची. रास्ते में जगह-जगह पूजा, आरती हुई.
पुरातात्विक धरोहरों का शहर मल्हार
मल्हार के आसपास पूरा क्षेत्र प्राकृतिक व पुरातात्विक धरोहरों से भरपूर है. मल्हार के केवट मोहल्ले में जैन तीर्थंकर सुपावनाथ के संग नौ तीर्थंकर मूर्ति स्थापित हैं. गांव वाले उसे नंदमहल कहते हैं. मंदिर, पत्थर, मूर्तियों के अलावा यहां पर पुरातत्व संपदाएं देखने को मिलती हैं. उपलब्ध ऐतिहासिक प्रमाणों के मुताबिक करीब चार सौ वर्ष ईसा पूर्व यहां मौर्य वंश का शासन था जिसके अवशेष महासमुंद जिले के तुरतुरिया तथा बलौदाबाजार भाटापारा जिले के डमरू में पाए गए हैं. इसके बाद सातवाहनों का शासनकाल रहा, इसके समय का काष्ठ स्तंभ बिलासपुर के किरारी ग्राम से प्राप्त हुआ. तीसरी सदी में वाकाटक वंश, चौथी सदी में गुप्त वंश, पांचवी सदी में राजर्षि तुल्य वंश, इस काल में नल वंश का भी शासन रहा. इसके बाद शरभपुरीय वंश एवं पाण्डु वंश और कलचुरि वंश का शासनकाल रहा. हैहयवंशी कलचुरि कहलाए, इनका शासनकाल सबसे लंबा लगभग 800 वर्ष का रहा.
कैसे पहुंचें मल्हार
देश के किसी भी कोने से मल्हाल तक सड़क, हवाई और रेलमार्ग से पहुंचा जा सकता है. रायपुर से इसकी दूरी लगभग 160 किलोमीटर है. बिलासपुर जिला मुख्यालय से इसकी दूरी 40 किलोमीटर और ब्लाक मुख्यालय मस्तूरी से 14 किलोमीटर है. हावड़ा मुंबई रेल रूट पर रायपुर, बिलासपुर रेलवे स्टेशन पहुंचने के बाद आसानी से मल्हार पहुंचा जा सकता है.