Patients advised pacemaker were treated conservatively at Hitek

दवाओं के चलते बैठ गया था इन महिलाओं का दिल, हाइटेक में बची जान

भिलाई। दवाइयों के साइड इफेक्ट पर अगर ध्यान नहीं दिया गया तो ये मृत्यु का कारण भी बन सकते हैं. ऐसी ही दो महिलाओं का इलाज पिछले एक सप्ताह के दौरान हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल में किया गया. इनमें से एक को जहां पेस मेकर लगाने की सलाह के साथ रायपुर रिफर किया गया था वहीं दूसरी मरीज को पेस मेकर लगाना संभव नहीं था. केवल दवाइयों के फेरबदल से दोनों की जान बच गई.
हाइटेक के इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ असलम खान ने बताया कि इनमें से एक महिला की उम्र 60 साल थी जबकि दूसरी महिला 81 वर्ष की थी. इन दोनों महिलाओं का इलाज पहले दूसरे अस्पतालों में चल रहा था जहां उन्हें पेसमेकर की आवश्यकता बताई गई थी. पर जब उन्हें सेकण्ड ओपीनियन के लिए हाइटेक लाया गया तो कहानी कुछ और ही निकली.
उन्होंने बताया कि 81 वर्षीय बुधनी (परिवर्तित नाम) को ब्लड कैंसर था जिसके कारण हर 15 दिन में उन्हें रक्त चढ़ाना पड़ता था. इसके साथ ही उनके हृदय के वाल्व में खराबी थी. पर उम्र एवं सेहत को देखते हुए उनकी सर्जरी संभव नहीं थी. लगभग एक सप्ताह पहले उनकी धड़कनें इतनी कम हो गईं कि उन्हें रिकार्ड करना तक मुश्किल हो गया. ईसीजी में भी इक्का दुक्का बीट ही दिखाई दे रहे थे.
डॉ असलम खान ने बताया कि जांचने पर पाया गया कि उनके खून में पोटेशियम की मात्रा 8.8 हो चुकी थी. रक्त में पोटेशियम 6 से ज्यादा होने पर दिल की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है और 8.5 के बीद हृदय गति रुक सकती है. दरअसल, उन्हें पोटेशियम बढ़ाने की दवाइयां दी जा रही थीं. तत्काल उन्हें अस्थायी पेसमेकर लगाकर पहले हृदय गति को संभाला गया. पोटेशियम बढ़ाने की दवा को बंद कर पोटेशियम कम करने की दवा दी गई. दो तीन दिन में ही महिला की हालत में सुधार आ गया और आज उसे डिस्चार्ज कर दिया गया.
डॉ असलम ने बताया कि इसी तरह बीते शनिवार को 60 वर्षीय माधुरी (परिवर्तित नाम) को सेकण्ड ओपीनियन के लिए हाइटेक लाया गया. उसका इलाज एक अन्य अस्पताल में चल रहा था. जब उसके हृदय की गति बेहद धीमी हो गई तो उन्हें पेसमेकर लगवाने के लिए रायपुर रिफर कर दिया गया. मरीज का एक परिचित उसकी पर्चियां लेकर हाइटेक आया. डॉ असलम को पेसमेकर की जरूरत महसूस नहीं हुई पर उन्होंने मरीज को देखने के बाद ही ठोस निर्णय देने की बात कही.
इसके बाद मरीज को हाइटेक लाया गया. दरअसल, महिला का अलग-अलग जगहों पर इलाज चल रहा था. महिला को कभी भी न तो चक्कर आया था न ही आंखों के आगे अंधेरा छाया था. जांच करने पर पता चला कि उसे बीटा ब्लॉकर मेडिसिन दी जा रही थी. इस दवा के कारण धड़कनें सामान्य से कम हो जाती हैं. तत्काल इस दवा को बंद कर धड़कनों को बढ़ाने की दवा प्रेस्क्राइब की गई. तीन दिन बाद आज महिला की स्थिति पूरी तरह सामान्य है.
डॉ असलम ने बताया कि जब दिल की धड़कनें बहुत कम हो जाती हैं तो सबसे पहले इसके औषधीय कारणों का पता लगाना चाहिए. इन दवाओं में फेरबदल कर स्थिति ठीक की जा सकती है. ऐसे मरीज जिन्हें पेसमेकर या अन्य प्रोसीजर की सलाह दी गई हो, उन्हें भी एक सेकण्ड ओपीनियन अवश्य लेनी चाहिए. ऐसे में मरीज को अनावश्यक खर्च और प्रोसीजर के जोखिम से बचाया जा सकता है.
इन मरीजों में लगता है पेसमेकर
पेसमेकर उन्हीं मरीजों को लगाना चाहिए जिन्हें सीएचबी की शिकायत हो. ऐसी स्थिति में मरीज की आँखों के सामने अँधेरा छा जाने या बेहोश हो जाने जैसे लक्षण हो सकते हैं. यह एक इमरजेंसी होती है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *