तमोर पिंगला : यहां बसे इंसानों को छोड़नी होगी बाघों के लिए जमीन
मनेन्द्रगढ़. प्राकृतिक बदलाव एवं इंसानों के हस्तक्षेप के कारण दुनिया के नक्शे से अनेक जीव जन्तुओं का सफाया हो चुका है. बाघों की गिनती भी ऐसे ही वन्यप्राणियों में होती है जिनका अस्तित्व कठिन चुनौतियों के दौर से गुजर रहा है. बाघों के संरक्षण के लिए गुरु घासीदास-तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व की स्थापना तो कर दी गई पर अभी कई सवाल यहां मुंह बाए खड़े हैं. इनमें से प्रमुख है रिजर्व क्षेत्र से इंसानी बस्तियों को हटाना.
गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान और तमोर पिंगला अभ्यारण्य को मिलाकर बनाए गए गुरु घासीदास तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व के रूप में भारत को तीसरा सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व मिल गया है. इससे सरगुजा संभाग और कोरिया को विश्व स्तर पर पहचान भी मिली है.
यह टाइगर रिजर्व 2,829.38 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर (एमसीबी), कोरिया, सूरजपुर और बलरामपुर जिलों में फैले इस अभयारण्य में बाघ, तेंदुए, भालू, हाथी, सांभर, चीतल, और कई पक्षी प्रजातियों सहित विविध वन्यजीव पाए जाते हैं. यह बांधवगढ़ और पलामू बाघ अभयारण्य के बीच बाघों के आवागमन के लिए एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिक गलियारा है.
यह टाइगर रिजर्व प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण तो है, लेकिन नेशनल पार्क को टाइगर रिजर्व मे अपग्रेड करने के लिए सिर्फ क्षेत्रफल, प्राकृतिक संसाधन और शेरों की संख्या ही काफी नहीं होता. टाइगर रिजर्व एरिया में काम करने वाले अधिकारी-कर्मचारी भी प्रॉपर ट्रेंड होने चाहिए.
नेशनल पार्क में 35 राजस्व गांव और कोर एरिया के 5 किमी के दायरे में 43 गांव हैं. इन 78 गांवों में 10 हजार के करीब लोग रहते हैं. यह क्षेत्र राष्ट्रपति के द्वारा घोषित अनुच्छेद 4 का क्षेत्र है, ऐसे में विस्थापन आसान नहीं होगा. यहां 15 से 16 हजार मवेशी भी हैं. 2 साल में 2 बाघों की संदिग्ध मौतें हुईं. क्षेत्र बाघ के अलावा तेंदुआ, भालू और हाथी सहित 27 प्रकार के जीवों का आवास हैं.