The truth about liver detox potions

लिवर हेल्थ के लिए डिटॉक्स से ज्यादा जरूरी है इन बातों का ख्याल रखना

भिलाई। पिछले कुछ दशकों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता तो बढ़ी है पर सोशल मीडिया ने मिथकों के एक नये संसार की भी रचना कर डाली है. इन्हीं में से एक है डिटॉक्स. लिवर डिटॉक्स के नाम पर तरह-तरह के रसों और मिश्रणों की रेसिपी परोसी जा रही है जिसके बारे में यह कहना मुश्किल है कि वो कोई लाभ पहुंचाती भी हैं. लिवर की बीमारियां चुपचाप आगे बढ़ती हैं और अकसर इसके लक्षणों को पहचानना मुश्किल होता है. इसलिए कुछ जांचें जरूरी हो जाती हैं.
हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल में पाचन संस्थान के विशेषज्ञ डॉ आशीष देवांगन बताते हैं कि यकृत या लिवर हमारे शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंगों में से एक है, जो प्राकृतिक विषहरण, चयापचय और अन्य आवश्यक जिम्मेदारियां निभाता है. इसे स्वस्थ रखने के लिए संतुलित आहार, व्यायायाम और स्वच्छता की सबसे अधिक आवश्यकता होती है.
अमेरिकन लिवर फाउंडेशन का भी मानना है कि लिवर शरीर को डिटॉक्स करने के लिए किसी विशेष आहार या सफाई की आवश्यकता नहीं होती. लिवर रक्त को छानने और पित्त बनाने जैसी प्रक्रियाओं के माध्यम से शरीर से विषाक्त पदार्थों को स्वाभाविक रूप से बाहर निकालता है. डिटॉक्स डाइट या ड्रिंक के बजाय, फलों, सब्जियों, लीन प्रोटीन और साबुत अनाज से भरपूर संतुलित आहार पर ध्यान देना चाहिए. इसके साथ ही व्यायाम करें.
अत्यधिक शराब के सेवन और नशीली दवाओं के उपयोग से लिवर को नुकसान हो सकता है. लिवर की बीमारी जन्मजात हो सकती है. आप जो खाते-पीते हैं उससे यह विकसित हो सकता है. यह वायरस से संक्रमित हो सकते हैं. आरंभिक चरणों में इसकी पहचान मुश्किल होती है पर चिकित्सकीय परीक्षणों से सावधान रहा जा सकता है. हालांकि लिवर ट्रांसप्लांट का विकल्प उपलब्ध है पर यह बहुत खर्चीला है.
डॉ देवांगन बताते हैं कि लिवर क्षतिग्रस्त होने पर भी सामान्य रूप से काम कर सकता है. शुरुआती चरणों में इसके लक्षण स्पष्ट नहीं होते. अलबत्ता थकान, त्वचा का पीला पड़ना (पीलिया), पेट में दर्द और सूजन जैसे लक्षण तभी दिखाई दे सकते हैं जब लीवर की क्षति गंभीर हो. इसलिए नियमित जांच, स्वस्थ जीवनशैली महत्वपूर्ण है.
डॉ देवांगन बताते हैं कि कोई जादुई गोली या सप्लीमेंट लिवर को ठीक नहीं कर सकता. उलटे ये लिवर को नुकसान पहुंचा सकते हैं. नियमित जांच से संभावित स्वास्थ्य समस्याओं की शुरुआती पहचान हो सकती है. यकृत की स्थिति जैसे स्टेटोटिक (वसायुक्त) यकृत रोग, हेपेटाइटिस तथा सिरोसिस अक्सर गुपचुप आगे बढ़ते हैं. नियमित रक्त परीक्षण, इमेजिंग अध्ययन और लिवर फ़ंक्शन परीक्षण से रोग को पहचानने में मदद मिल सकती है.

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