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जशपुर के आदिवासियों ने दिया मधुमक्खी भगाने का फार्मूला, इंटैक की परिचर्चा में हुआ खुलासा

भिलाई। मधुमक्खियों को भगाने के लिए शहद चुराने वाले अकसर धुएं का उपयोग करते हैं. खुद भी भस्म लगा लेते हैं और मधुमक्खियों के हटते ही छाता चुरा लेते हैं. पर समस्या तब विकट हो जाती है जब मधुमक्खी का छाता किसी प्राचीन विरासत स्थल के करीब हो. एक ऐसे ही मामले में जब शोध किया गया तो जशपुर के आदिवासियों का एक प्राचीन तरीका सामने आया. यह तरीका मधुमक्खियों के साथ-साथ पर्यटकों एवं पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित था.
उक्त बातें नेशनल रिसर्च लैबोरेटरी फॉर कंजर्वेशन ऑफ कल्चरल प्रॉपर्टी के वैज्ञानिक डॉ संजय कुमार गुप्ता ने कही. वे भारतीय राष्ट्रीय कला एवं सांस्कृतिक विरासत न्यास के भिलाई दुर्ग चैप्टर द्वारा आयोजित परिचर्चा को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने बताया कि जब एक विरासत स्थल पर मधुमक्खियों ने पर्यटकों पर हमला कर दिया तो पुरातत्व विभाग के खिलाफ एफआईआर हो गया. इसके बाद हमने मधुमक्खियों को मारने के लिए स्प्रे किया तो पर्यावरण वाले, जीव जन्तु संरक्षण वालों ने भी एफआईआर कर दिया. तब किसी ऐसी औषधि की आवश्यकता महसूस की गई जो न तो मधुमक्खियों को मारे, न विरासत स्थल को कोई नुकसान पहुंचाये, न पर्यटकों के फेफड़े पर भारी हो और जो पर्यावरण के भी अनुकूल हो.
इसी बीच अंडमान में जा बसे जशपुर के आदिवासियों की एक तरकीब के बारे में पता चला. ये आदिवासी सीताफल के पत्तों को मुंह में चबाकर उसकी फुहार मधुमक्खी के छत्ते के पास छोड़ते थे. इससे मधुमक्खियां भाग जाती थीं. गंध खत्म होने पर मधुमक्खियां लौट भी आती थीं. पर तब तक शहद चोरी का काम हो जाता था. हमने इसपर शोध किया और हमें वह पदार्थ मिल गया जिसकी हमें जरूरत थी.
डॉ गुप्ता ने बताया कि पुरानी इमारतों के साथ ही प्राचीन पारम्परिक ज्ञान और परिवेश भी विरासत का हिस्सा है. हमें इन सभी की सुरक्षा और संरक्षण करना चाहिए. इसमें पैर छूने की परम्परा भी शामिल है. भारतीय ज्ञान परम्परा की रक्षा करना भी विरासत के संरक्षण का हिस्सा है.
जिला स्थाई व निरंतर लोक अदालत की अध्यक्ष सुषमा लकड़ा ने मुख्य अतिथि की आसंदी से परिचर्चा को संबोधित करते हुए उन नियमों और कानूनों की जानकारी दी जिसके तहत विरासत का संरक्षण किया जाता है. उन्होंने बताया कि प्राचीन धरोहरों के विरूपण के खिलाफ सख्त कानून हैं. कई बार जानकारी के अभाव में मरम्मत के नाम पर विरासत को क्षति पहुंचाई जाती है जिसकी रोकथाम के लिए भी कानूनी उपचार मौजूद हैं. उन्होंने उन कानूनों और धाराओं का भी जिक्र किया जिसके तहत ऐसे उपचार उपलब्ध हैं.
इंटैक भिलाई दुर्ग चैप्टर की संयोजक डॉ हंसा शुक्ला ने स्वागत भाषण किया. आरंभ में इंटैक के पूर्व संयोजक प्रो डीएन शर्मा ने अतिथियों एवं उपस्थित जनों का परिचय कराया. धन्यवाद ज्ञापन वरिष्ठ साहित्यकर्मी रवि श्रीवास्तव ने किया. परिचर्चा में विनोद साव, परदेसी राम वर्मा, शरद कोकास, महेश चतुर्वेदी, पुनीत चौबे, डा सुनीता वर्मा, डा अनिल चौबे, रविन्द्र खंडेलवाल, कांति भाई सोलंकी, विजय वर्तमान, विभाष व अनीता उपाध्याय, शरद शर्मा, रत्ना नारमदेव, प्रीति अजय बेहरा, राजेन्द्र राव, शालू मोहनन, दीपक रंजन दास, ज़ाकिर हुसैन, विश्वास तिवारी, आदि ने हिस्सा लिया.

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