Father shoots daughter over society troll

निखट्टू समाज के तानों की बलि चढ़ गया बाप-बेटी का रिश्ता

यही है वह पुरुषवादी मानसिकता जिसके कारण पूरा भारतीय समाज विश्व भर में बदनाम है. यहां बेटी पराया धन होती है. वह धन जो एक पुरुष दान में प्राप्त करता है और दान देकर मुक्त होता है. पुरुष ही नहीं, महिलाओं में भी यही सोच गहरे तक पैठी हुई है. माता-पिता बेटे का आश्रित बनकर जीवन गुजार दें तो समाज कुछ नहीं कहता बल्कि बेटे को श्रवण कुमार बताता है. पर यही काम अगर बेटी करे तो समाज की भ्रुकुटी तन जाती है. बेटी घर का खर्च चलाए तो यही समाज ताने मारता है कि बेटी की कमाई पर माता-पिता ऐश कर रहे हैं. कुछ ऐसा ही हुआ हरियाणा के गुरुग्राम में. कहने को तो यह शहर दुनिया के बड़े शहरों में शुमार है, यहां की संस्कृति भारतीय मानकों के हिसाब से काफी एडवांस्ड है. यहां के लोगों का रहन-सहन भी देश की तुलना में बेहतर है. पर मानसिकता वही 16वीं सदी की है. गुरुग्राम रईसों का शहर है. दीपक यादव भी अच्छे खासे पैसे वाले हैं. उनकी बेटी राधिका एक अंतरराष्ट्रीय टेनिस खिलाड़ी है. कुछ समय पहले चोट लग जाने के कारण उसे अपने करियर से हटना पड़ा. उसने एक टेनिस अकादमी खोलने का निर्णय लिया. पिता दीपक यादव ने उसे इसके लिए सवा करोड़ रुपए दिए. राधिका की टेनिस अकादमी अच्छी खासी चलने लगी. इसके साथ ही शुरू हो गया समाज का ताण्डव. लोगों ने दीपक यादव को ताने मारने शुरू कर दिये. जब भी वो लोगों से मिलते तो पहले तो वे राधिका की कामयाबी की बधाई देते और लगे हाथ यह भी कह देते की बेटी की कमाई पर माता-पिता की मौज हो रही है. यही बात दीपक को खलने लगी और उसने महीने भर के भीतर ही अकादमी बंद करने के लिए राधिका पर दबाव बनाना शुरू कर दिया. राधिका भी इस दौर की लड़की है. उसने दुनिया देखी है. टेनिस उसका पैशन भी था और प्रोफेशन भी. इसलिए उसने साफ इंकार कर दिया. पिछले गुरुवार को बाप बेटी में इसी बात को लेकर तकरार हो गई और दीपक ने राधिका को उस समय गोली मार दी जब वह किचन में नाश्ता तैयार कर रही थी. इसके बाद वह टूटकर बिखर गया. हाथ में पिस्तौल लिये वह वहीं उकड़ूं बैठा रह गया. न केवल राधिका का जीवन समाप्त हो गया बल्कि दीपक और उसके परिवार का भविष्य भी खत्म हो गया. जिस समाज के उकसावे पर यह सब हुआ उससे किसी का आंसू तो पोंछा नहीं जाता पर ताना मारना उसे खूब आता है. अच्छा है कि अब इस समाज से लोग बगावत कर रहे हैं. ऐसे परिवारों की अब कमी नहीं जहां सिर्फ बेटियां हैं. बेटियां ही माता-पिता की मुखाग्नि कर रही हैं, दाह संस्कार कर रही हैं. उन्हें धेला भर फर्क नहीं पड़ता कि निकम्मा समाज क्या सोचता है. ऐसे ही लोगों से समाज बदलता है. काश! दीपक भी ऐसा होता.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *