No love only relationship and breakups is the new trend

प्यार के नये दौर में सिर्फ रिलेशनशिप और ब्रेकअप

बॉलीवुड और क्रिकेट को इस देश का ट्रेंड-सेटर माना जाता है. यहां होने वाली चीजें देर-सबेर समाज में भी दिखाई पड़ने लगती हैं. स्टार अविवाहित रहने का फैसला करते हैं तो उन्हें फालोअर्स मिल जाते हैं. विजातीय विवाह का चलन भी सेलेब्रिटी लाइफ से ही आया. लोगों को हिम्मत मिली. लिव इन रिलेशनशिप के बीज भी यहीं पड़े. बिन ब्याहे मां बनने का चलन भी यहीं शुरू हुआ. पर अब यह बॉलीवुड और क्रिकेट की दुनिया तक सीमित नहीं रहा. इंटरनेट और हर हाथ में स्मार्टफोन दुनिया को मुट्ठी में ला चुके हैं. अब लोग अपने प्रेरणास्रोत पूरी दुनिया में कहीं से भी खोजकर निकाल सकते हैं. इसी दौर का एक और तोहफा है ब्रेकअप. अब दो वयस्कों को यदि लगता है कि साथ-साथ रहने से उनके करियर नष्ट हो रहे हैं या उनका ग्रोथ रुक रहा है तो वो आपस में मिल बैठकर अलग होने का फैसला ले लेते हैं. मशहूर टेनिस स्टार और ओलम्पिक मेडलिस्ट साइना नेहवाल ने तलाक की घोषणा कर सबका ध्यान आकर्षित किया है. साइना ने 2018 में पारुपल्ली कश्यप से विवाह किया था. 7 साल बाद उन्हें लगा कि उनका करियर उन्हें अलग-अलग दिशाओं में लेकर जा रहा है. इसलिए रिश्तों को तनाव से बचाने के लिए दोनों ने ऑफिशियली अलग होने का फैसला कर लिया. ये कोई पहला सेलेब्रिटी जोड़ा नहीं है जिसने ऐसा किया. पिछले एक साल में युजवेन्द्र चहल, हार्दिक पंड्या, सानिया मिर्जा जैसे चोटी के खिलाड़ी तलाक ले चुके हैं. बॉलीवुड में तो यह बेहद आम है. हर दिल अजीज ही-मैन धर्मेन्द्र ने 1980 में पत्नी के रहते हेमामालिनी से ब्याह रचाकर सबको चौंका दिया था. पर वहां कोई प्रत्यक्ष ट्रैजेडी नहीं हुई. लोगों ने भी इसे स्वाभाविक ढंग से लिया. किशोर कुमार तो अपनी शादियों के लिए भी चर्चित रहे. इन घटनाओं ने समाज में शादी और तलाक की स्वीकार्यता को बढ़ावा दिया. पुनर्विवाह का रास्ता भी साफ हुआ. समाज के एक बड़े हिस्से को हालांकि तकलीफ होती रही. भारतीय मान्यता विवाह को जन्म जन्मांतर का संबंध मानती रही है. शादी एक बार हो गई तो हो गई. अकसर प्रेम की बलि चढ़ जाती थी. अपने प्रियतम के बेहतर भविष्य के लिए प्रेम पीछे हट जाता था. वह समय था जब प्रेम कुर्बानी मांगता था पर अब ऐसी बात नहीं है. अब प्रेम स्पेस देना जानता है. यदि प्रेम में पर्याप्त स्पेस हो तभी वह दीर्घस्थायी हो सकता है. पर एकल परिवारों में अगर कुछ तेजी से सिकुड़ा है तो वह स्पेस है. छोटे से परिवार में परस्पर निर्भरता और भी ज्यादा होती है. वैसे भी 90 फीसद भारतीय रिश्ते इसी निर्भरता की जमीन पर टिके हुए हैं. पर अब स्थिति बदल रही है. बेशक, कुछ लोग लोकलाज के भय से परिवार नहीं तोड़ते बल्कि घर के भीतर एक महाभारत जीवन भर चलाते रहते हैं. यह अच्छा है या बुरा, इसका फैसला करने का अधिकार किसे है?

Pic credit : shutterstock.com

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