हासन की मौतों ने खोली बूढ़े दिल वाले युवाओं की पोल
कर्नाटक के हासन में हार्ट अटैक से मौतों ने पूरे देश को झकझोर दिया है. वैसे तो यह स्थिति कई शहरों की होगी पर कहीं इसके आंकड़े इकट्ठे नहीं किये जाते होंगे या किये भी जाते होंगे तो पूल नहीं किये जाते होंगे. वैसे कायदे से प्रत्येक जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के पास इसके आंकड़े होते हैं. बड़े शहरों में ये आंकड़े इससे भी ज्यादा हो सकते हैं. चिंता इसलिए भी ज्यादा है कि हासन में 40 दिनों में हार्ट अटैक से 23 मौतें हुईं. इनमें से छह की उम्र 19 से 25 तो आठ की उम्र 25 से 45 साल के बीच थी. अर्थात मरने वाले 23 में से 14 लोग युवा थे. इसके बाद शहर में हड़कम्प मच गया है. बेंगलुरु और मैसुरु के जयदेव अस्पताल में हार्ट से जुड़ी जांच के लिए रोजाना हजारों लोग पहुंच रहे हैं. काश! ये जागरूकता तब दिखाई होती जब सरकार से लेकर अस्पताल तक लगातार हार्ट हेल्थ की जांच के लिए शिविर लगा रहे हैं, लोगों को आगाह कर रहे हैं. दरअसल, भारत की खुशहाली इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह है. लोगों के पास चार पैसे क्या आए खानपान से लेकर रहन सहन तक सबकुछ बदल गया. ऊपर से युवाओं को लगता है कि उन्हें कुछ नहीं हो सकता. अभी उनकी उम्र ही क्या है. इस मायने में हासन में सामने आए आंकड़ों का धन्यवाद करना चाहिए. सबसे पहले बात करते हैं खान पान की. भारत में शाकाहारियों का काम केवल मांसाहारियों को कोसने से चल जाता है. जबकि सबसे ज्यादा बुरा हाल सम्पन्न शाकाहारियों का हो रखा है. दूध, घी, पनीर, चीज़ का अत्यधिक सेवन भी कोलेस्ट्रॉल बढ़ने का कारण हो सकता है. घी के पराठे का शौक रखने वालों को खतरा दोगुना है. सबसे बड़ी तकलीफ यह है कि एक संतुलित आहार का पूरा कांसेप्ट ही बाजारवाद ने खत्म कर दिया है. भारतीय थाली में चावल, दाल, रोटी, सब्जी के साथ गरिष्ठ भोजन एक अतिरिक्त कटोरा हुआ करती थी. पर अब यही गरिष्ठ भोजन मुख्य आहार हो गया है. वैज्ञानिक चमत्कारों ने शारीरिक श्रम को लगभग खत्म कर दिया है. नए दौर के डिजिटल शौक ने नींद का भी सत्यानाश किया हुआ है. बायोलॉजिकल क्लॉक बिगड़ चुका है. उठना तो मजबूरी है, सोने का कोई निश्चित टाइम ही नहीं है. सोने का ही क्यों, खाने का भी कोई टाइम नहीं है. घर का खाना तो अब घर पर भी नसीब नहीं है. स्वादिष्ट भोजन की एक ऐसी लत लग गई है कि घर पर बैठकर भी लोग रेस्तरां या क्लाउड किचन से खाना आर्डर करते हैं. बीते कुछ सालों में युवाओं में हार्ट अटैक के जोखिम क्यों बढ़ रहे हैं? जवाब इसका भी वही है. फर्क बस इतना है कि इन लोगों का दिल उम्र से पहले ही बूढ़ा हो गया है. इसलिए अब उम्र के आधार पर लोगों को युवा कहना छोड़ देना चाहिए.