Teacher faces wrath for advice against Kanwad Yatra

गुरूजी को जूते मारो? क्या कांवड़ उठाने भेजा था बच्चे को स्कूल?

हिन्दुओं के स्वर्ग उत्तर प्रदेश से एक विचलित करने वाली घटना सामने आई है. बरेली के बहेड़ी कस्बे के एक शिक्षक को जूतों से मारने की, जूते से मारने वाले को ईनाम देने की, रास्ते में रोककर उसकी पिटाई करने की धमकी दी जा रही है. उन्हें सनातन का गद्दार बताया जा रहा है. एफआईआर दर्ज करना तो दूर – पुलिस उक्त शिक्षक का आवेदन तक स्वीकार नहीं कर रही है. उसे सुरक्षा दिलाना तो बहुत दूर की बात है. दरअसल, हुआ यूं कि बच्चों को स्कूल और शिक्षा का महत्व समझाने के लिए महात्मा गांधी मेमोरियल इंटर कॉलेज के हिन्दी शिक्षक रजनीश गंगवार ने एक कविता सुनाई थी. इस स्कूल में आसपास के गांवों के 1200 बच्चे पढ़ते हैं. कांवड़ यात्रा के दिनों में बच्चों की स्कूल में उपस्थिति काफी कम हो जाती है. कविता का अर्थ यह था कि कांवड़ उठाने की बजाय बच्चों को पढ़ाई में ध्यान लगाना चाहिए. मानवता की सेवा करके सच्चा मानव बनना चाहिए. कांवड़ ढोकर कोई वकील, डीएम या एसपी नहीं बनता. कांवड़ जल से कोई बनिया, हाकिम, वैद्य भी नहीं बना है. दिक्कत यह है कि इस कविता के आरंभ से लेकर अंत तक तीन बार कांवड़ शब्द का उपयोग हुआ है. स्कूल के बच्चों और अन्य शिक्षकों को नहीं लगता कि इसमें कोई भी बात आपत्तिजनक है. बच्चों के माता पिता को भी इस कविता में कोई बुराई नजर नहीं आई. वैसे भी बच्चे स्कूल में पढ़ाई करने जाते हैं. वहां शिक्षा औऱ करियर की बातें प्रमुखता से रखी जाएंगी, इसमें बुरा क्या है. पर खुद को कट्टर समझने वाले हिन्दुओं को यह बात अखर गई. उन्होंने रजनीश को धमकियां देना शुरू कर दिया. उन्हें सनातन का गद्दार बोला गया. मास्टर को जूते मारने का पुरस्कार 1200 रुपए रख दिया गया. बरेली के विश्व हिन्दू परिषद और महाकाल सेवा समिति जैसे संगठनों ने कविता को धर्म विरोधी बताया. उन्होंने रजनीश का पुतला फूंका, फिर स्कूल से निकालने की मांग करते हुए उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा दी. आश्चर्य कि यह एफआईआर दर्ज हो गई. एक तरफ सरकार भारतीय ज्ञान परम्परा की बात कर रही है तो फिर समाज के ठेकेदार बताएं कि झुंड में कांवड़ ढोने या लाखों की भीड़ जुटाकर प्रवचन करने की परम्परा कितनी प्राचीन है. देश में राजा महाराजा तो रहे नहीं, फिर इतने बड़े तामझाम का खर्च आखिर कौन उठाता है? साथ ही समाज यह भी बताने का कष्ट करे कि इतना धर्म-कर्म करने के बाद भी समाज में बुराइयां क्यों बढ़ती चली जा रही हैं. दरअसल, यह सभी एक किस्म का व्यापार है. बड़ा आयोजन, लाखों श्रद्धालु जैसी बातों के आधार पर जमकर चंदा उगाही होती है. लोग शिक्षित हो गए तो सबसे बड़ा नुकसान इन्हीं का होना है. शिक्षित और समझदार लोग न तो मंदिर के लिए चंदा देंगे और न ही भंडारा कराएंगे. ऐसे में उन लोगों की दुकान बंद हो जाएगी.

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